जहां आसमान से बरसते हैं हीरे! हैरान करने वाली ये बातें फेंक नहीं फैक्ट है! जानें ऐसे 5 फैक्ट्स!
हिरा/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Facebook)

आज सोशल मीडिया के युग में अकसर चौंकानेवाली खबरें वायरल होती रहती हैं. इसलिए फैक्ट और फेंक खबरों के बीच के फर्क कर पाना आसान नहीं. अब ‘आकाश से हीरों की बरसात होना’, ‘अंतरिक्ष में इंसान की लंबाई का बढ़ना’, अथवा ‘चांद पर जाने के लिए नील आर्मस्ट्रांग का ब्रा बनाने वाली फैक्ट्री से स्पेस सूट तैयार करवाना.’ इस तरह की बातों पर अचानक कैसे विश्वास किया जा सकता है? लेकिन आप यह जानकर जरूर चौंकेंगे कि उपयुक्त खबरें सौ प्रतिशत सच है. आइये जानें ऐसे ही पांच फैक्ट...

अंतरिक्ष में इंसान की लंबाई बढ़ जाती है!

सुनते हुए पहली नजर में इस बात पर विश्वास नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि अंतरिक्ष पर जाने वालों की लंबाई पृथ्वी की तुलना में बढ़ जाती है. नासा (National Aeronautics and Space Administration) की ओर से हुए एक शोध में पाया गया कि जो भी व्यक्ति अंतरिक्ष में जाता है, उनकी लंबाई जितनी होती है, उसमें करीब तीन फीसदी लंबाई बढ़ जाती है. उदाहरणस्वरूप अगर किसी व्यक्ति की लंबाई 180 सेमी है तो अंतरिक्ष में रहते हुए उसकी लंबाई लगभग 5 सेमी बढ़ जाती है.

मानव जब धरती पर रहता है, तो वह गुरुत्वाकर्षण की सीमाओं की परिधि में रहता है. गुरुत्वाकर्षण वह शक्ति है, जिससे पृथ्वी हर चीज को अपनी ओर खींचती है. यानी आप कोई चीज आसमान की ओर उछालेंगे तो पृथ्वी उसे खींच लेती है. यही गुरुत्वाकर्षण का नियम है. अंतरिक्ष में यह शक्ति नहीं होती. इंसान जब पृथ्वी पर रहता है, गुरुत्वाकर्षण के कारण उसकी रीढ़ की हड्डी एक सीमा के बाद नहीं बढ़ती, लेकिन जैसे ही वह अंतरिक्ष में जाता है, गुरुत्वाकर्षण के दायरे से बाहर जाने के कारण उसकी रीढ़ की लंबाई करीब 3 से 5 सेमी तक बढ़ जाती है. लेकिन पृथ्वी पर वापस आने के पश्चात उसकी लंबाई पूर्ववत हो जाती है. यह भी पढ़ें : आतंकवादी मॉड्यूल के चार सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद पंजाब में हाई अलर्ट

बृहस्पति और शनि ग्रहों पर होती है हीरों की बारिश

बृहस्पति (Jupiter) और शनि (Saturn) इन दो बेहद प्रभावशाली ग्रहों के पास हीरे (Diamonds) उत्पन्न करनेवाला चमत्कारी आसमान है. इस बात पर भी लोग अचानक विश्वास नहीं करेंगें. लेकिन प्राप्त सूत्रों के अनुसार वैज्ञानिकों का कहना है कि इन विशाल ग्रहों के अंदर का दबाव बड़ी सहजता से कार्बन को हीरे में बदल सकता है. सर्वप्रथम आकाशीय बिजली के गिरने के बाद मीथेन कार्बन में बदल जाती है, वह जब नीचे गिरती है तो कठोर ठोस में परिवर्तित हो जाती है. यानी 1600 किमी नीचे आने पर ग्रेफाइट के टुकड़ों में बदलती है और अंतिम 6,000 किमी की दूरी तय कर सतह तक आने के बाद हीरे (Diamonds) में बदल जाती है.

नील आर्मस्ट्रांग का स्पेस सूट ब्रा फैक्ट्री में बनाया गया था।

20 जुलाई 1969 नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) ने पहली बार चंद्रमा पर अपने कदम रखे तो अचानक किसी को विश्वास ही नहीं हुआ था. नील आर्म स्ट्रांग शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे, इसीलिए चंद्रमा की सैर पर अकेले निकलने का दुस्साहस कर सके थे, लेकिन उनके साथ जुड़ी यह खबर आपको हैरान कर सकती है कि इतने मजबूत इंसान जिस स्पेस सूट को पहनकर चंद्रमा पर पहुंचे थे, उसकी डिजाइनिंग एक ब्रा बनाने वाली फैक्ट्ररी ने किया था. क्योंकि नासा ने स्पेस सूट डिजाइन करने वाले के सामने यही शर्त रखी थी कि नील आर्मस्ट्रांग का ड्रेस ऐसा हो कि वे सहज महसूस करें.

हमारे अंगों की ये अजूबी गणित

आप अपने शरीर के हर अंग लगभग हर दिन ही देखते होंगे और उनसे भली-भांति परिचित भी होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारा पैर हमारी बांह (forearm) जितना लंबा है. हमारे हाथों के अंगूठे (अंगूठे) की लंबाई हमारे नाक (Nose) के बराबर है, हमारे होंठ की साइज हमारी तर्जनी (index finger) की साइज के बराबर होते हैं. अगर आपको नहीं विश्वास हो रहा है तो आप स्वयं इसकी जांच कर सकते हैं. ये मानव शरीर के मानक और उपयुक्त अनुपात हैं, जिनका इस्तेमाल कलाकारों द्वारा स्केच बनाने के लिए किया जाता है. इन तथ्य़ो की पहचान सुप्रसिद्ध कलाकार लियोनार्डो विंची ने किया था, जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध मोनालिसा की पेंटिंग बनाई थी.

मॉर्डन नहीं सैकड़ों साल पुरानी है ‘पिंकी प्रॉमिस’ संस्कृति

अकसर बच्चे जब कोई कार्य करते हैं तो इसके लिए प्रॉमिस करते हुए एक दूसरे से अपनी कनिष्ठ उंगलियां मिलाते (क्रॉस करते) हैं. जिसे ‘पिंकी प्रॉमिस’ कहते हैं. अमूमन इस तरह ‘पिंकी प्रॉमिस’ मॉर्डन विचारों वाली लड़कियों के बीच ज्यादा होती है. यह संस्कृति मूलतः जापान की उपज बताई जाती है. लेकिन जब आप सुनेंगे कि यह मॉर्डन संस्कृति नई नहीं बल्कि 421 साल पुरानी है तो आप जरूर चौंक पड़ेंगे. जी हां, यह इडो काल (1603-1868) की अति प्राचीन संस्कृति है. उन दिनों डाकू कुलों में अपनी वफादारी को साबित करने के लिए दाहिनी हाथ की छोटी उंगलियों को क्रॉस किया जाता था. बाद में बच्चों ने इस परंपरा को खेल में बदल दिया.