जरा सी प्राइवेसी के लिए तरसतीं गाजा की महिलाएं
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

गाजा में विस्थापन की शिकार महिलाएं दयनीय जीवन जी रही हैं. उन्हें सैनिटरी पैड्स तक नहीं मिल पा रहे हैं. इससे उनके स्वास्थ्य पर भी खतरा मंडराने लगा है. सर्दियों ने भी गाजा के लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है.युद्ध के माहौल में अपनी जान बचाने के लिए गाजा के अस्थायी शिविरों में रह रहे लोगों का तो पूरा जीवन ही कठिनाइयों से भरा है. ऊपर से छोटे बच्चों और महिलाओं की समस्याएं दोहरी हो जाती हैं. महिलाओं को कपड़े बदलने से लेकर, पीरियड के दिनों में जरा सी प्राइवेसी पाने के लिए भी भारी संघर्ष करना पड़ रहा है. शिविर में लगे तंबुओं में वे अपने परिवार के सदस्यों के अलावा कई दूसरे रिश्तेदारों के साथ रह रही हैं. कुछ ही कदम दूर और लोगों के तंबू लगे हैं और बहुत दूर निकलना सुरक्षित नहीं होता.

महिलाओं के पारियड्स में काम आने वाले उत्पादों तक पहुंच भी सीमित है. ऐसे में वे चादर के टुकड़ों या पुराने कपड़ों को पैड की तरह इस्तेमाल करती हैं. अस्थायी शौचालयों में आमतौर पर रेत में एक गड्ढा बनाया हुआ होता है. इसे चारों तरफ चादरें लगाकर ढका जाता है. दर्जनों लोग इन शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं.

महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर नहीं होती बात

गाजा हमेशा से एक रुढ़िवादी समाज रहा है. यहां ज्यादातर महिलाएं, बाहरी पुरुषों के मौजूद होने पर हिजाब या सिर पर स्कार्फ पहनती हैं. महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों जैसे- गर्भावस्था, मासिक धर्म और गर्भनिरोधकों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती है.

इस्राएल-हमास युद्ध: गाजा में पसरा सदमा और बर्बादी

विस्थापितों के लिए बने एक शिविर में रह रहीं अला हमामी तीन बच्चों की मां हैं. वे हमेशा अपनी प्रार्थना वाली शॉल पहने रहती हैं. यह एक तरह का काला कपड़ा है, जिससे उनका सिर और शरीर का ऊपरी हिस्सा ढक जाता है. वे कहती हैं, "हमारी पूरी जिंदगी इस प्रार्थना वाली शॉल में सिमटकर रह गई है. हम बाजार में भी यही पहनकर जाते हैं. अब कोई गरिमा नहीं बची है.”

वे कहती हैं, "आम तौर पर मैं नमाज पढ़ते समय ही इस शॉल को पहनती थी. लेकिन आसपास कई पुरुषों के मौजूद होने के चलते अब मैं हर समय इसे पहने रहती हूं. यहां तक कि सोते समय भी इसे पहन कर रखती हूं क्योंकि पता नहीं होता कि रात में कब इस्राएल का हमला हो जाएगा और हमें तुरंत यह शिविर छोड़कर भागना पड़ेगा.”

गाजा में ठंड से बचना भी मुश्किल

गाजा में इस्राएल का अभियान पिछले 14 महीनों से जारी है. यहां की कुल आबादी करीब 23 लाख है. इस्राएल के अभियान की वजह से 90 फीसदी से ज्यादा फिलिस्तीनियों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. फिलहाल, लाखों फिलिस्तीनी तंबुओं से बने शिविरों में बेहद बेकार स्थिति में रह रहे हैं.

नालियों का पानी गलियों में बह रहा है. खाना और पानी मिलना बेहद मुश्किल है. सर्दियां आ चुकी हैं और लोगों के पास ठंड से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं हैं क्योंकि उनके ज्यादातर कपड़े और अन्य चीजें घरों में ही छूट गईं. ऐसे में लोग एक ही कपड़े को हफ्तों तक पहनने के लिए मजबूर हैं.

यहां लोगों को हर रोज खाना, साफ पानी और जलाने योग्य लकड़ी ढूंढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. महिलाओं को हमेशा डर लगा रहता है कि कोई उन्हें देख रहा है. हमामी कहती हैं, "पहले हमारे पास छत थी. अब वह भी नहीं है. हमारी पूरी जिंदगी अब लोगों के सामने है. महिलाओं के लिए कोई निजता नहीं बची है.”

बुनियादी जरूरतें भी नहीं हो रहीं पूरी

शिविर में रह रही दो बच्चों की मां वफा नसरल्लाह कहती हैं कि शिविरों में साधारण जरूरतें पूरा करना भी बेहद मुश्किल होता है. जैसे सैनिटरी पैड हासिल करना, जिन्हें वे खरीद नहीं सकती हैं. उन्होंने कपड़े के टुकड़ों और यहां तक कि डायपर्स का इस्तेमाल करने की भी कोशिश की, लेकिन अब उनकी भी कीमत बढ़ गई है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि गाजा में करीब सात लाख महिलाओं और लड़कियों को पीरियड से जुड़े उत्पादों, शौचालयों और साफ पानी की जरूरत है. सहायताकर्मी इस मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं. वहीं, आपूर्ति इस्राएल द्वारा बनाई गई क्रॉसिंगों पर अटकी हुई है. स्वच्छता किटों का स्टॉक खत्म हो चुका है और इनकी कीमत बहुत ज्यादा है. कई महिलाओं के पास इतने कम पैसे होते हैं कि या तो वे सैनिटरी पैड ही खरीद सकती हैं या फिर सिर्फ खाने-पीने की चीजें.

जर्मनी में भारी विरोध के बावजूद पारित हुआ एंटीसेमिटिज्म प्रस्ताव

दोआ हेलिस तीन बच्चों की मां हैं और शिविर में ही रहती हैं. वे कहती हैं, "मैंने पीरियड के दौरान इस्तेमाल करने के लिए अपने पुराने कपड़े फाड़ लिए हैं. हमें जहां भी कपड़ा मिलता है, हम उसे फाड़कर इस्तेमाल कर लेते हैं. सैनिटरी पैड्स के एक पैकेट की कीमत 45 शेकेल (12 डॉलर) है और यहां पूरे तंबू में लोगों के पास पांच शेकेल भी नहीं हैं.”

महिलाओं के स्वास्थ्य पर मंडरा रहा खतरा

गाजा में काम करने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता अनेरा बताती हैं कि कई महिलाएं माहवारी को रोकने के लिए गर्भ निरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं. वहीं कई ने अनुभव किया है कि बार-बार विस्थापित होने से पैदा हुए तनाव और आघात की वजह से उनकी पीरियड की साइकिल ही बदल गई है.

वुमन अफेयर्स सेंटर गाजा में महिलाओं को सामान उपलब्ध करवाता है और उनके अनुभवों के बारे में जानने के लिए सर्वे करता है. इसकी डायरेक्टर अमाल सेयाम कहती हैं कि शिविर की भयावह स्थितियां महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए वास्तविक खतरे पैदा करती हैं.

वे कहती हैं, "कुछ महिलाओं ने 40 दिनों से कपड़े नहीं बदले हैं. वहीं, कपड़े से बनाए गए कामचलाऊ पैड्स निश्चित तौर पर त्वचा रोग, प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित रोग और मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा करेंगे.” वे आगे कहती हैं कि, सोचिए बुनियादी सफाई और पीरियड जैसी चीजों तक पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाने पर गाजा में एक महिला कैसा महसूस करती होगी.

"महिलाएं चुकाती हैं युद्ध की सबसे बड़ी कीमत”

दोआ हेलिस उस समय को याद करती हैं जब महिला होना बोझ नहीं लगता था बल्कि खुशी होती थी. वे कहती हैं, महिलाएं अब सब चीजों से वंचित हैं. ना कपड़े हैं, ना शौचालय हैं. सेयाम कहती हैं कि सेंटर ने ऐसे कई मामलों का पता लगाया है जहां लड़कियों की कम उम्र में और 18 साल का होने से पहले ही शादी कर दी गई ताकि वे परिवार के तंबुओं के घुटन भरे माहौल से बाहर निकल सकें. वे आगे कहती हैं, "युद्ध हर तरह से मानवीय आपदा का कारण बनता रहेगा और महिलाएं हमेशा इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाती हैं.”

बच्चों का विकास कैसे प्रभावित करता है युद्ध?

गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, इस्राएल के अभियान में 45 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनियों की जान जा चुकी है. इनमें से आधी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं. सात अक्टूबर, 2023 को हमास ने दक्षिणी इस्राएल में हमला किया था, जिसमें आतंकवादियों ने लगभग 1,200 लोगों की हत्या कर दी थी और करीब 250 लोगों का अपहरण कर लिया था. इसके बाद इस्राएल ने जवाबी हमला शुरू किया था.

पुरानी जिंदगी की यादें भी धुंधलाने लगी हैं

हमामी का छोटा सा तंबू कुछ ही कदमों में खत्म हो जाता है. वे इसमें अपने 13 नाते-रिश्तेदारों के साथ रहती हैं. युद्ध के दौरान, उन्होंने एक बेटे अहमद को जन्म दिया जो अब आठ महीने का है. वे अब अपने तीन बच्चों की देखभाल करती हैं. सभी के कपड़े धोती हैं. खाना पकाती हैं. लाइन में लगकर पानी भरती हैं. वे कहती हैं कि इसके बाद उनके पास खुद के लिए वक्त ही नहीं बचता है.

उनके पास कुछ चीजें हैं जो उन्हें उनकी पुरानी जिंदगी की याद दिलाती हैं. इनमें से एक कॉम्पैक्ट पाउडर है जिसे वे घर छोड़ते वक्त साथ लेकर आयी थीं. यह अब जम गया है और उखड़ रहा है. इसके अलावा, उनके पास एक शीशा भी है, जिसे उन्होंने चार बार विस्थापित होने के बावजूद अपने पास रखा हुआ है. हालांकि, अब इसके टूटकर दो टुकड़े हो चुके हैं, फिर भी वे इसे अपने पास रखती हैं ताकि वे इसमें खुद को देख सकें.

वे कहती हैं, "पहले मेरे पास पूरी अलमारी थी, जिसमें मेरे मन की सारी चीजें थीं. हम हर दिन टहलने जाया करते थे, शादियों में जाते थे, पार्कों में घूमने जाते थे और मनपसंद चीजें खरीदने के लिए शॉपिंग मॉल भी जाते थे.” वे आगे कहती हैं, "महिलाओं ने इस युद्ध में अपना अस्तित्व और सबकुछ खो दिया है.”

एएस/आरपी (एपी)