Eid Milad Un Nabi 2024: ईद मिलाद-उन-नबी अथवा ईद-ए-मिलाद मुसलमानों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. इस पर्व को सभी मुसलमान बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं, क्योंकि यह दिन अल्लाह के अंतिम दूत, पैगंबर मोहम्मद की जयंती का प्रतीक माना जाता है.
इस पर्व को मावलिद और नबी के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन हर साल रबी उल अव्वल के दौरान आता है. आइये जानते हैं इस साल कब मनाया जाएगा यह पर्व एवं क्या है इसका इतिहास एवं महत्व, साथ ही जानेंगे शिया और सुन्नी समुदाय के मुस्लिम इस पर्व को कैसे सेलिब्रेट करते हैं. ये भी पढ़े :Eid Milad-Un-Nabi Quotes 2024: ‘सबसे बड़ा जिहाद अपनी आत्मा से लड़ना है.’ ईद-मिलाद-उन-नबी पर ऐसे प्रभावशाली कोट्स भेजकर अपनों को दें मुबारकबाद!
कब मनाया जाएगा ईद-ए-मिलाद?
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, ईद ए मिलाद उन नबी को रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है. अब जबकि भारत में रबीउल अव्वल का चांद 4 सितंबर 2024 को नजर आ चुका है, ऐसे में इस साल ईद-ए-मिलाद 16 सितंबर को मनाया जाएगा.
ईद-ए-मिलाद का इतिहास एवं महत्व
रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को शुरू-शुरू यानी 632 ई. में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के कारण शोक दिवस के रूप में मनाया जाता था. 10वीं शताब्दी में फ़ातिमी खलीफ़ा ने ईद-ए-मिलाद को एक उत्सव के रूप में औपचारिक रूप दिया. शिया राजवंश फ़ातिमी ने सार्वजनिक सभाओं, प्रार्थनाओं और पैगंबर की प्रशंसा में कविता के साथ इस दिन को सेलिब्रेट करना शुरू किया.
इस वजह से उनके जीवन और शिक्षाओं का सम्मान करने का एक नया तरीका प्रस्तुत किया गया. इस तरह एक गमजदा पर्व उल्लास उत्सव के रूप में बदल गया. बदलते समय के साथ, इसमें जुलूस, दान और सामूहिक भोज इत्यादि शामिल हो गए. यह मुसलमानों के लिए पैगंबर की शिक्षाओं पर चिंतन करने और सामुदायिक बंधनों को मजबूत करने का समय बन गया. आज दुनिया भर में ईद-ए-मिलाद उत्साह के साथ मनाया जाता है
शिया सुन्नी कैसे मनाते हैं ईद-ए-मिलाद
शिया और सुन्नी दोनों समुदाय के मुसलमान ईद-ए-मिलाद को दान और कल्याणकारी कार्यों के साथ मनाते हैं, जो पैगंबर मुहम्मद की उदारता का प्रतीक है. इस दिन जरूरतमंदों को सामुदायिक सेवा, मसलन भोजन वितरण, वित्तीय मदद की कोशिश की जाती है. इस दिन घर-परिवार में विशेष व्यंजनों एवं मिठाइयों का आनंद लिया जाता है. दोनों समुदाय के लोग धार्मिक समारोहों के माध्यम से चिंतन और शिक्षा पर जोर देते हैं, जहां पैगंबर के जीवन और महत्व पर चर्चा होती है.
सुन्नी समुदाय इस अवसर पर नशीद पढ़ते हैं, पैगंबर की प्रशंसा में भक्ति-गीत गाते हैं. उत्सव को भव्य बनाने के लिए मस्जिदों को रोशनी और उपदेश लिखे बैनरों से सजाया जाता है. वहीं शिया समुदाय इस दिन धार्मिक सभाओं का आयोजन करते हैं जहां प्रशंसा और शोकगीत सुनाए जाते हैं, जो उत्सव और शोक दोनों का प्रतीक होता है. शिया समुदाय के लोग इस दिन मोमबत्ती जुलूस निकालते हैं, जो प्रकाश और मार्गदर्शन का प्रतीक है.