कम नहीं हो रही हैं जर्मनी की आर्थिक मुश्किलें
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी की आर्थिक मुश्किलें थम नहीं रही हैं. साल की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी महज 0.1 फीसदी का विकास ही हासिल कर सकी. कार कंपनियों का संकट बढ़ रहा है.दिग्गज कार कंपनी फोर्ड मोटर का कहना है कि वह यूरोप और ब्रिटेन में अपने 4,000 कर्मचारियों की छंटनी करेगी. यह छंटनी 2027 के आखिर तक हो जाएगी. कंपनी ने इसके लिए अर्थव्यवस्था, बढ़ती प्रतियोगिता और इलेक्ट्रिक कारों की उम्मीद से कम बिक्री को जिम्मेदार माना है.

फोर्ड की इस घोषणा का सबसे ज्यादा असर जर्मनी पर होगा जहां करीब 2,900 नौकरियां खत्म होंगी. इसके अलावा ब्रिटेन में 800 और यूरोपीय संघ के दूसरे देशों में करीब 300 नौकरियां जाएंगी. फोर्ड के यूरोप में 28,000 कर्मचारी हैं और पूरी दुनिया में करीब 1,74,000.

यूरोप में फोर्ड का मार्केट शेयर पिछले साल के 3.5 फीसदी से घट कर 3 फीसदी पर आ गया है. पिछले साल की तुलना में इस साल के पहले 9 महीनों में फोर्ड की कारों की बिक्री 15.3 फीसदी तक गिरी है.

जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यूरोपीय संघ ने जो नियम बनाए हैं उन्होंने सबसे ज्यादा कार कंपनियों को प्रभावित किया है. इसका असर अब हर तरफ दिख रहा है.

जर्मन अर्थव्यवस्था की मुश्किलें

जर्मनी की अर्थव्यवस्था पहले ही कई मुश्किलों का सामना कर रही है. शुक्रवार को जर्मन सांख्यिकी विभाग ने आंकड़े जारी कर बताया कि तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का विकास मात्र 0.1 फीसदी रहा. यह शुरुआती अनुमानों की तुलना में थोड़ा कम है. पिछले महीने ही जुलाई से सितंबर के बीच इसके 0.2 फीसदी रहने का आकलन किया गया था.

यह आंकड़ा दिखा रहा है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था लगातार संघर्ष कर रही है. इस साल लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी का विकास नीचे गया. दूसरी तिमाही में तो यह 0.3 फीसदी नीचे गया था. इसके बाद अब तीसरी तिमाही में ऊपर आया भी तो महज 0.1 फीसदी.

यह विकास भी वेतन बढ़ने की वजह से निजी उपभोग बढ़ने और सरकारी खर्च का नतीजा है. देश के केंद्रीय बैंक का कहना है कि कमजोर स्थिति अभी चौथी तिमाही में भी बने रहने की आशंका है. इसकी वजह है, चीन की अर्थव्यवस्था का धीमा पड़ना और जर्मनी में कई कंपनियों का दिवालिया होना.

जर्मनी की अर्थव्यस्था पर दोहरी मार

जर्मनी की ढांचागत मुश्किलें

देश में औद्योगिक निर्यात की संभावनाएं कमजोर हैं और ऊर्जा की ऊंची कीमतों के साथ ही जर्मनी की नौकरशाही इसे कारोबारी ठिकाना बनाने की राह का रोड़ा बन रही है. इन सबने अर्थव्यवस्था की समस्याओं को और कठिन बना दिया है.

रसायन और कार उद्योग संकट में है. कार कंपनी फोर्ड ने जर्मनी में 2900 नौकरियां खत्म करने की योजना बनाई है तो फोक्सवागेन कई संयंत्रों को बंद करना चाहती है.

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कंपनियों और ग्राहकों के लिए कर्ज को सस्ता बनाने वाली यूरोपीय सेंट्रल बैंक की गिरती दरें शायद कुछ सकारात्मक असर डालेंगी. हालांकि अर्थव्यवस्था पर इस तरह के ब्याज दरों के प्रोत्साहन का असर दिखने में कुछ वक्त लगेगा.

बीमार अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाएगा जर्मनी

समस्याएं और भी हैं

बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के साथ अनिश्चितता बढ़ रही, इसी बीच जर्मनी का सत्ताधारी गठबंधन भी टूट गया है. कुछ अर्थशास्त्री पहले ही जर्मनी की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के लिए पूर्वानुमानों को घटा चुके हैं. यह खासतौर से ट्रंप के शुल्क बढ़ाने के वादे की वजह से भी हुआ है.

जर्मन सरकार को इस साल जीडीपी में 0.2 फीसदी की कमी की आशंका है. ऐसा हुआ तो नकारात्मक विकास का यह लगातार दूसरा साल होगा. सरकार अगले साल 1.1 फीसदी के विकास की उम्मीद कर रही है. हालांकि जर्मन काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स ने 2025 में भी विकास दर 0.4 फीसदी रहने की ही उम्मीद जताई है.

एनआर/एडी (डीपीए)