हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हिंदी मास की चतुर्थी की तिथि गणेश जी को समर्पित है. अमावस्या के बाद आने वाली शुक्लपक्ष की चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ तथा कृष्णपक्ष की चतुर्थी को ‘संकष्टी चतुर्थी’ कहते हैं. कुछ स्थानों पर विनायक चतुर्थी ‘वरद विनायक चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है. विनायक चतुर्थी के दिन श्री गणेश जी की पूजा दोपहर के समय की जाती है. उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ यानी सभी दुखों को दूर करने वाले देवता माना जाता है. गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए‘विनायक चतुर्थी’ और ‘संकष्टी चतुर्थी’ का व्रत किया जाता है. इस दिन गणेश का व्रत एवं पूजा-अर्चना करने से घर में सुख-समृद्धि के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है.
विनायक चतुर्थी व्रत का महात्म्य
इस बार यानी आषाढ़ मास की विनायक चतुर्थी 6 जुलाई यानी आज है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि गणेश चतुर्थी का नियमित व्रत एवं पूजन करने से बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है. छात्रों को भी श्री गणेश का पूजन अवश्य करना चाहिए. श्री गणेश के आशीर्वाद से छात्र मेधावी बनते हैं और उनका भविष्य उज्जवल होता है. व्रती को विनायक चतुर्थी की पूजा-अर्चना मध्याह्न काल में करने से ही श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है.
विनायकी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा-अर्चना
ब्रह्म मूहर्त में उठकर स्नान ध्यान करने के पश्चात लाल वस्त्र धारण करें. दोपहर पूजन से पूर्व चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी से निर्मित गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. व्रत एवं पूजा का संकल्प लेने के बाद पूरे विधि विधान के साथ गणेश जी का पूजन करें. गणेश जी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाएं. 'ॐ गं गणपतयै नम:' का उच्चारण करते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं. प्रसाद में गणेश जी को बूंदी के 21 लड्डू चढ़ाएं. पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें. प्रसाद में चढ़े लड्डुओं में से 5 लड्डू ब्राह्मण को दें तथा 5 लड्डू श्री गणेश के चरणों में रखकर बाकी को प्रसाद के रूप में वितरित कर दें. सायंकाल ब्राह्मण को दान देने के पश्चात ही भोजन करें. पूजा का उत्तम फल प्राप्त होता है.
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा
एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे. मां पार्वती ने अपने पति श्री शिव जी से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने की इच्छा दर्शाई. शिव तैयार हो गए, परंतु अब प्रश्न उठा कि इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा? भगवान शिव ने कुछ तृण एकत्र कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. अब तुम बताना कि हममें से कौन हारा और कौन जीता?'
शिव जी और मां पार्वती के बीच चौपड़ का खेल शुरू हो गया. यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं. खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजई बताया. बालक को झूठ बोलते देख माँ पार्वती क्रोधित हो उठीं. क्रोधवश उन्होंने बालक को लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. बालक ने मां पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया. मां पार्वती ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए जब नागकन्याएं आएंगी, तब उनके कथनानुसार तुम गणेश व्रत करके तुम मुझे पुनः प्राप्त कर सकोगे.'यह कहकर मां पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं. एक वर्ष पश्चात उस स्थान पर नागकन्याएं आईं. उनसे गणेश के व्रत की विधि मालूम कर बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया. उसकी श्रद्धा से गणेशजी ने प्रसन्न होकर बालक से मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा.