गौरतलब है कि भगवान विष्णु प्रत्येक वर्ष चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवउठनी, देव प्रबोधन या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, के दिन जागृत होते हैं. इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. क्योंकि भगवान विष्णु के जागने के पश्चात ही मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं, सर्वप्रथम तुलसी विवाह सम्प्न्न होता है. यहां हम बात करेंगे कि किस विधि एवं मंत्रों का जाप करके भगवान विष्णु को योग निद्रा से बाहर लाने का प्रयास करना चाहिए.
इस तरह भगवान विष्णु को योग निद्रा से बाहर लायें
देव प्रबोधन एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का ध्यान करें और निम्न मंत्र का जाप करें.
ॐ ब्रह्म बृहस्पताय नमः
इसके पश्चात एक टोली बनाकर नगर-नगर भगवान राम का स्मरण करते हुए प्रभात फेरी निकालते हैं, जिसमें बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष आदि शामिल होते हैं और ‘राम धुन श्री राम जय राम जय जय राम’ का गान करते हुए नगर का परिक्रमा करते हैं. इस टोली में घर की सुहागन महिलाएं हाथ में कलश एवं उसके ऊपर प्रज्वलित दीपक लेकर चलती हैं.
इसके पश्चात संध्याकाल के समय देव देवियों के पृथ्वी पर अवतरण होने की खुशी में आतिशबाजियों के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं. और भगवान को जागृत करने के लिए निम्न मंत्रों का जाप करते हैं.
देव प्रबोधन मंत्र और उनका अर्थ
ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
अर्थात- ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि से वंदनीय, हे जगन्निवास, देवताओं के स्वामी आप मंत्र के प्रभाव से सुखपूर्वक उठें.
उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव॥
अर्थात- हे गोविंद! आप जग जाइए. आप निद्रा का त्याग कर उठ जाइए. हे जगन्नाथ! आपके सोते रहने से यह सम्पूर्ण जगत सोता रहेगा. आपके उठने पर सभी लोग कार्यों प्रवृत्त हो जाएंगे. हे माधव! उठ जाइए.
मान्यता है कि इस प्रकार भगवान विष्णु के जागृत होने पर ही शुभ मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं.
इस दिन तुलसी का भी विशेष महत्व होता है.
देवी तुलसी का महात्म्य एवं मंत्र
तुलसी के महत्व का अंदाज इसी से लगाना चाहिए कि तुलसी का पत्ता भगवान विष्णु अपने मस्तक पर धारण करते हैं, क्योंकि यह मोक्ष कारक है. यही वजह है कि व्यक्ति जब देह त्यागता है तो उसके पूर्व उसके मुख में तुलसी का पत्ता एवं गंगाजल डालते हैं, ताकि वह बिना कष्ट भोग मोक्ष को प्राप्त करे. प्रतिदिन घर के बाहर तुलसी की पूजा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं, तथा घर का पूरा वातावरण पवित्र रहता है.
शास्त्रों में देवी तुलसी के साथ भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की भी पूजा अनिवार्य मानी गयी है. पूजा की शुरुआत शुद्ध घी का दीप एवं धूप प्रज्वलित करके करना चाहिए. इसके बाद सिंदूर, पीला फूल, पीला चंदन एवं शुद्ध घी से बने मिष्ठान आदि अर्पित करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन भोग के साथ अगर तुलसी दल नहीं चढ़ाया जाये तो श्रीहरि भोग स्वीकार नहीं करते हैं. पूजा के दरम्यान तुलसी जी के आठ नामों का मंत्र या उनके आठ नामों का उच्चारण करने मात्र से भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी एवं तुलसी प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. भागवत पुराण में इस तिथि के दिन विष्णु जी के साथ लक्ष्मीजी एवं तुलसीजी की पूजा करना विशेष फलदाई माना गया है.
तुलसी जी के आठ नाम
पुष्पसारा, नंदिनी, वृंदा, वृंदावनी, विश्व पावनी, तुलसी एवं कृष्ण जीवनी
तुलसी के आठ नामों का मंत्र
वृंदा, वृंदावनी, विश्व पूजिता विश्व पावनी, पुष्पसारा नंदनीच तुलसी कृष्ण जीवनी
एतनामाष्टकं चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुक्तम, य पठेत तां च सम्पूज् सौश्रमेघं फललंमेता
भागवद पुराण में उल्लेखित है कि जिस घर में देवी तुलसी के साथ भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा होती है. उस घर में किसी को कोई कष्ट नहीं रहता, घर में सुख समृद्धि बनी रहती है.