हिंदू धर्म शास्त्रों में माघ मास भगवान श्रीहरि को समर्पित मास माना जाता है, वहीं एकादशी तिथि भी भगवान विष्णु का प्रिय दिवस बताया गया है. यह दोनों अद्भुत संयोग षटतिला एकादशी को प्राप्त हैं, इसलिए षटतिला एकादशी की गणना सर्वाधिक महत्वपूर्ण एकादशियों में की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, एवं कुंडली में व्याप्त सारे दोष दूर हो जाते हैं. इस वर्ष षट्तिला एकादशी व्रत के संदर्भ में दुविधा है कि यह व्रत 25 जनवरी को रखा जाएगा या 26 जनवरी 2025 को! यहां ज्योतिषाचार्य पंडित भागवत जी महाराज षटतिला एकादशी व्रत की मूल तिथि, मुहूर्त, महात्म्य आदि के बारे में बता रहे हैं. साथ ही जानेंगे षट्तिला एकादशी व्रत कथा..
क्या है षटतिला एकादशी का महत्व
पद्म पुराण के अनुसार, षटतिला एकादशी पर श्रीहरि की पूजा और तिल का भोग लगाने का विशेष महत्व है. इस दिन तिल का दान करने तथा इस दिन तिल-स्नान, तिल के व्यंजनों का सेवन करने और तर्पण करने से विशेष अक्षुण्य पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन तिल का विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल करने के कारण ही इसे षट्तिला एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन जितने तिल दान किये जाते हैं, उतने ही पापों से मुक्ति मिलेगी. स्कंद पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि इस एकादशी का व्रत रखनेवाले जातकों की दरिद्रता दूर होती है, अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है, शत्रु परास्त होते हैं, और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह भी पढ़ें : Republic Day 2025 Speech In Hindi: गणतंत्र दिवस के अवसर पर दें ये ओजस्वी भाषण! नहीं थमेगी लोगों की तालियां !
षटतिला एकादशी व्रत मूल तिथि एवं मुहूर्त
षट्तिला एकादशी प्रारंभः 07.25 PM (24 जनवरी 2025), शनिवार
षटटिला एकादशी समाप्तः 08.31 PM (25 जनवरी 2025), रविवार
उदया तिथि के अनुसार 25 जनवरी 2025 को षटतिला एकादशी व्रत रखा जाएगा.
षट्तिला एकादशी व्रत का पारणः 07.12 AM से 09.21 AM (25 जनवरी 2025)
षटतिला एकादशी पूजा-विधि
इस दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. पूजा स्थल को स्वच्छ करें. एक चौकी पर श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. भगवान विष्णु का सहस्त्रनाम का पाठ करें. तुलसी, जल, फल, नारियल एवं फूल के साथ कुछ फल एवं मिष्ठान अर्पितु करें. भगवान श्रीकृष्ण का भजन करें अंत में श्रीहरि की आरती उतारें. एवं प्रसाद का वितरण करें, अगले दिन शुभ मुहूर्त पर व्रत का पारण करें.
षटतिला एकादशी व्रत कथा!
एक विधवा ब्राह्मणी ज्यादातर श्रीहरि की पूजा-अर्चना करती थी. एक बार उसने श्रीहरि की उपासना की, परंतु दान-पुण्य ना करने से उसका पुण्य अधूरा रह गया. एक दिन श्रीहरि एक भिक्षुक रूप में उसकी कुटिया पर पहुंचे. ब्राह्मणी से भिक्षा मांगी, ब्राह्मणी ने उसे एक ढेला पकड़ा दिया. श्रीहरि वैकुण्ठधाम लौट गये. कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई. वह वैकुण्ठलोक पहुंची, मगर अपनी कुटिया को खाली देख, वह श्रीहरि के पास पहुंची, कहा, -हे प्रभु. मैंने पूरी जिंदगी आपकी पूजा-उपासना की, पर मुझे खाली कुटिया मिली. तब श्रीहरि ने उसे बताया कि एक माह उसने अन्न-दान नहीं किया, जब मैं साधुवेश में आया तो एक ढेला दिया था. श्रीहरि ने उसे षट्तिला एकादशी का व्रत की सलाह दी, ब्राह्मणी ने अगले माघ एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत रखा. इसके बाद उसकी कुटिया धन-धान्य से भर गयी. तभी से षटतिला एकादशी व्रत की परंपरा चल पड़ी.













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