Shani Jayanti 2025: शनिदेव की पूजा घर पर क्यों नहीं करते? जानें शनि जयंती का महत्व, मूल तिथि, पूजा का मुहूर्त एवं विधि!

   हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है. हिंदू धर्म शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है, विशेष रूप से उनके लिए जिनकी कुंडली में शनि दोष आदि हो, क्योंकि शनि-दोष दूर करने के लिए शनि जयंती में किये गये विविध अनुष्ठान या उपाय शीघ्र लाभ पहुंचाते हैं. इस वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार शनि जयंती की तिथि को लेकर दुविधा है कि शनि जयंती 26 मई 2025 को मनाई जाएगी या 27 मई 2025 को. यहां आचार्य भागवत जी महाराज इस वर्ष की शनि जयंती की मूल तिथि, मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि आदि बारे में  महत्वपूर्ण जानकारियां शेयर कर रहे हैं.      

शनि जयंती मूल तिथि एवं पूजा मुहूर्त

ज्येष्ठ माह अमावस्या प्रारंभः 12.10 PM (26 मई 2025, सोमवार)

ज्येष्ठ माह अमावस्या समाप्तः 08.31AM (27 मई 2025, मंगलवार)

  आचार्य भागवत जी के अनुसार उदयाकालिक अमावस्या के कारण 27 मई 2025, को शनि जयंती मनाई जाएगी. पूजा का शुभ मुहूर्त 09.01 AM से 10.40 AM तक रहेगा. इस मुहूर्त में शनि जयंती की पूजा करना शीघ्र फलदायी होता है. यह भी पढ़ें : National Dengue Day 2025: डेंगू आया तो घबराएं नहीं, अपनाएं ये आसान उपाय!

शनि जयंती का महत्व

  हिंदू धर्म में शनि जयंती का विशेष धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है. मान्यताओं के अनुसार शनि न्याय एवं कर्म के देवता हैं. शनि जयंती के दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान करने से जातक के जीवन में नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक परिवर्तनों का आगमन होता है. जो लोग पितृ दोष अथवा शनि दोष से पीड़ित होते हैं, इस दिन पुरोहित के दिशा निर्देशन में शनि देव की पूजा करने से सारे दोषों का प्रभाव मिटता है. जीवन में खुशियां आथी हैं. ध्यान रहे शनि एकमात्र ऐसे देव हैं, कि अगर वे प्रसन्न हो जाएं तो जातक को रंक से राजा बनाने में समय नहीं लगाते.

शनि जयंती पूजा विधि

मान्यता है कि शनि देव किंचित भूल अथवा गलती से तत्काल रुष्ठ हो जाते हैं, इसलिए उनकी पूजा शनि मंदिर में पुजारियों के दिशा-निर्देश के अनुसार करें. इसलिए शनि जयंती के दिन स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर निकटतम शनि मंदिर जाना चाहिए. शनिदेव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, शनि देव को सरसों तेल तथा काला या नीला फूल अर्पित करें. निम्न मंत्र का जाप करें.

‘नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्,

छाया मार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्’

  शनि स्तोत्र का पाठ करें. अंत में शनि देव की आरती उतारें. पूजा के पश्चात काला कपड़ा, छाता, काला तिल दान करें. इसके अलावा चींटियों को गुड़ और तिल खिलाने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं.