छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र वीर संभाजी महाराज का जीवन भी पिता की तरह ही देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा है. संभाजी बालपन से ही राजनीतिक समस्याओं का निवारण करते रहे. पिता शिवाजी महाराज का संपूर्ण समर्थन ना मिलने से उनका जीवन दो धारी तलवार-सा बन गया था, मगर उन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम से हर चुनौतियों का सामना किया. बालपन से जीवन पर्यन्त मिले संघर्ष और शिक्षा-दीक्षा के कारण बाल शम्भुजी राजे कालान्तर में वीर संभाजी राजे बन सके थे. जाने इस शूरवीर के शौर्य की गाथा…
जन्म और शिक्षा
संभाजी का जन्म 14 मई 1657 को महाराष्ट्र स्थित पुरंदर किले में शिवाजी की दूसरी पत्नी सईं के गर्भ से हुआ था. दरअसल शिवाजी की 3 पत्नियां थी, सईंबाई, सोयरा बाई और पुतलाबाई. सम्भाजी के एक भाई राजाराम थे, जो सोयराबाई के पुत्र थे. जन्म के 2 वर्ष बाद माँ सईंबाई का देहांत हो जाने के कारण उनकी परवरिश शिवाजी की माँ जीजाबाई ने किया था. संभाजी को प्यार से ‘छवा’ भी कहा जाता था, मराठी में इसका अर्थ ‘शेर का बच्चा' होता है. संभाजी का विवाह येसूबाई से हुआ था, इनके पुत्र का नाम छत्रपति साहू था.
संभाजी के लिए क्यों थे खास कवि कलश!
संभाजी जब औरंगजेब के राजमहल से भागे थे, तो करीब डेढ़ साल के लिए वे अज्ञातवास के तौर पर शिवाजी के एक मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के पास रहे. इस दौरान मथुरा में उनका उपनयन संस्कार किया गया और संस्कृत सिखाई गई. यहीं उनका परिचय कवि कलश से हुआ. कलश के सानिध्य और मार्गदर्शन से संभाजी की साहित्य की तरफ भी रुचि बढ़ी. कहते हैं उनके उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कलश ही संभाल सकते थे.
विश्व के प्रथम बाल साहित्यकार!
संभाजी शूरवीर ही नहीं थे, बल्कि साहित्य के क्षेत्र में भी काफी कुछ किया. मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने आठ भाषाओं में दक्षता हासिल कर ली थी. उन्होंने पिता शिवाजी के सम्मान में संस्कृत भाषा में ‘बुधाचरित्र’ लिखा. इसके बाद ‘श्रृंगारिका’, ‘बुधभूषणम्’, ‘नायिकाभेद’, ‘सातसतक’, ‘नखशिख’ इत्यादि ग्रंथों की रचना की. इस तरह उन्हें विश्व का प्रथम बाल साहित्यकार भी माना जाता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.