Sambhaji Maharaj Jayanti 2022: छत्रपति संभाजी ने साबित किया कि शेर का बच्चा शेर ही होता है. जानें संभाजी की शौर्य गाथाएं...
छत्रपति संभाजी महाराज पुण्यतिथि 2022 (Photo Credits: File Image)

मराठा साम्राज्य के संस्थापक, शासक और अद्भुत योद्धा शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र संभाजी महाराज (Sambhaji Maharaj) का जन्म 14 मई 1657 में पुणे के पुरंदर नामक नामक स्थान पर हुआ था. इनका मूल नाम शंभू राजे था, जो शिवाजी महाराज की पत्नी रानी साईबाई के ज्येष्ठ पुत्र थे. पिता के निधन के बाद संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की ना केवल बागडोर संभाली, बल्कि उतनी ही कुशलता एवं बहादुरी से मुगल साम्राज्य की चूलें हिला कर रख दी थी. 14 मई को महाराष्ट्र समेत पूरे देश में इस दिव्य योद्धा एवं प्रशासक का जन्मदिन बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. आइये एक नजर डालते हैं संभाजी की शौर्य गाथाओं पर, जिसने साबित कर दिखाया कि शेर की संतान शेर ही होता है.

15 वर्ष की आयु में पहली जीत दर्ज की

संभाजी मात्र 2 साल के थे, माँ साईबाई का निधन हो गया था. उनकी परवरिश दादी जीजाबाई ने की. जीजाबाई ने ही उनमें वीरता, कुशल नेतृत्व एवं अच्छे संस्कार के बीज आरोपित किये. अगर कहा जाये कि शिवाजी एवं उनके पुत्र संभाजी की संयुक्त गुरु जीजाबाई थीं तो गलत नहीं होगा. सत्तासीन होते ही संभाजी ने 1672 में पेशवा मोरोपंत पिंगले के साथ कोलवा पर कब्जे के साथ ही विजय अभियान की शुरुआत की थी. माता जीजाबाई के संरक्षण में संभाजी ने शौर्यता के साथ-साथ 8 साल की उम्र में 14 भाषाएं सीख ली थी.

किशोर आयु में हर क्षेत्र में हो गये थे पारंगत!

शिवाजी महाराज कुशल एवं न्यायप्रिय प्रशासक थे, महिलाओं का सम्मान करते थे. बहादुर सैनिकों को सम्मानित करते थे, ये सारे गुण संभाजी को विरासत में मिले थे. शिवाजी महाराज जब युद्ध क्षेत्र में होते थे, तब राज दरबार में न्याय प्रक्रिया की जिम्मेदारी संभाजी ही संभालते थे. कहते है कि जब वे महज 14 वर्ष के थे, युद्ध की कूटनीति, न्यायिक प्रक्रिया मे एवं वित्तीय प्रणाली में पारंगत हो गये थे. जनता उनके हर आदेश का ससम्मान शिरोधार्य करती थी.

साल के शासनकाल में मुगलों से 210 युद्ध किए और सभी में जीते

संभाजी के जीवन का अधिकांश समय युद्ध के मैदान में बीता था, इस बात का इससे बड़ा प्रमाण क्यो हो सकता है कि संभाजी अपने छोटे से शासन काल में लगभग 210 युद्ध किये सभी में जीत दर्ज की. हैरानी की बात यह थी कि मुगलों के एक लाख सैनिकों पर 10 हजार सैनिकों के साथ भिड़ते और युद्ध जीत हासिल कर लौटते. संभा जी से निरंतर हार से त्रस्त होकर औरंगजेब ने कसम खाई कि जब तक छत्रपति संभाजी पकड़े नहीं जायेंगे.

अपनों ने दिया धोखा!

साल 1687 में मराठा और मुग़लों के बीच घमासान युद्ध हुआ. यद्यपि विजयश्री संभाजी को मिली, लेकिन युद्ध में संभाजी के बहादुर सेनापति हबीरराव मोहिते के मारे जाने से उनकी सेना कमज़ोर हो गई थी. उधर संभाजी के रिश्तेदार शिर्के परिवार उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने लगे थे. एक दिन संभाजी और कवि कलश गुप्त रास्ते से कहीं जा रहे थे, शिर्के ने यह खबर औरंगजेब तक पहुंचा दी. औरंगजेब ने एक सेनापति को 2 हज़ार सैनिकों के साथ संभाजी के पीछे भेजा. सेनापति ने धोखे से पीछे से हमला कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. सभाजी से खौफ खाये औरंगजेब ने जनता से उन पर पत्थर फिंकवाए, उन पर मूत्र करवाया. इसके बाद जेल में कैद कर उनके सामने 3 शर्ते रखीं. मुगल सेना में जुड़ जाओ, सारे मराठे किले हमें सौंपो और इस्लाम धर्म कबूल कर लो. संभाजी के इंकार करने पर औरंगजेब ने उनके सारे नाखून उखड़वा दिये, चमड़ी समेत बाल उखड़वा दिये, हाथों और पैरों की उंगलियां कटवा दी, फिर भी संभाजी ने उनकी शर्ते नहीं मानी तो औरंगजेब लोहे का रॉड गरम करवाकर संभाजी की आंखों में डलवा दिया. यह पीड़ादायक सिलसिला 40 दिनों तक चला. अंततः 11 मार्च 1689 को उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर नदी में फिंकवा दिया, जिसे बाद में मराठों ने सारे टुकड़ों को एकत्र कर उनका अंतिम संस्कार किया