Angarki Sankashti Chaturthi 2021: गणेश संकष्टि चतुर्थी का महत्व? जानें तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, एवं कथा!
भगवान श्री गणेश ((Photo Credits: File Image))

सनातन धर्मानुसार फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को फाल्गुन संकष्टी गणेश चतुर्थी कहते हैं. इस दिन संध्याकाल में विशेष मुहूर्त में श्रीगणेश जी का व्रत रखते हुए पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद कथा सुनी अथवा सुनाई जाती है. सूर्यास्त के पश्चात चंद्रमा का दर्शन करके अर्घ्य दिया जाता है, इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने वाले की विघ्नहर्ता श्रीगणेश सारे कष्ट हर कर सदा खुशहाल रहने का आशीर्वाद देते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 2 मार्च (मंगलवार) को गणेश चतुर्थी मनायी जायेगी. आइये जानें फाल्गुन मास के गणेश चतुर्थी का महात्म्य, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं पारंपरिक कथा.

गणेश संकष्टि चतुर्थी महत्व!

गणेश चतुर्थी हर माह में आती है लेकिन फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की संकष्टी चतुर्थी को काफी खास माना जाता है. चूंकि चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की मानी गई है, इसलिए उनका व्रत रखा जाता है. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत संतान की सुरक्षा, उनकी लंबी आयु और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता हैं. इस व्रत को रखने वाले का हर दुख विघ्नहर्ता हर लेते हैं.

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि!

प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान गणेशजी के व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हुए सायंकाल के समय श्रीगणेश जी का पूजन करें. एक चौकी को स्वच्छ कर उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. अब इस पर गंगाजल छिड़क कर गणेश जी की प्रतिमा अथवा फोटो रखें. प्रतिमा को स्नान करवाकर सामने दीप प्रज्जवलित करें. गणेश जी की स्तुति करते हुए मंत्र पढ़ें एवं भगवान को लाल फूल, अक्षत, दूर्वा एवं चंदन चढ़ाएं. नैवेद्य के रूप में तिल गुड़ के साथ लड्डू अथवा मोदक का भोग चढ़ाएं. अब भगवान श्रीगणेश की व्रत कथा पढ़ने के बाद उनकी आरती उतारें. इसके बाद चंद्रोदय होने पर चंद्रमा के सामने दीप प्रज्जवलित करते हुए अर्घ्य दें. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन दान देकर व्रत का पारण करें.

व्रत कथा!

प्राचीनकाल में युग नाशव नामक एक राजा थे. वह बहुत उदार, धर्मात्मा एवं देवताओं की पूजा करते थे. उनके राज्य में विष्णु शर्मा नामक एक योग्य ब्राह्मण थे. उनके सात पुत्र थे. उनमें आपस में वैमनस्य की भावना कूट कूट कर भरी थी. इसलिए वे अलग-अलग रहते थे. विष्णु शर्मा एक-एक दिन सारे पुत्रों के यहां भोजन करने जाते थे. पुत्र वधुओं द्वारा अपमानित करने पर वे रोने लगते थे. एक बार विष्णु शर्मा ने गणेश चतुर्थी का व्रत रखकर बड़ी पुत्रवधु के घर पहुंचे. कहा कि हे बहुरानी आज मैंने गणेशजी का व्रत किया है, तुम पूजन का सामान इकट्ठा कर दो.

पूजन के बाद गणेश जी खुश होकर बहुत सारा धन देंगे, पुत्रवधु बोली, ससुर जी, मेरे पास घर का बहुत काम है. मैं ना ही गणेशजी का व्रत जानती हूं ना ही गणेश जी को, कृपया आप यहां से चले जाइये. बड़ी बहु की तरह शेष पांच बहुओं ने भी विष्णु शर्मा को डांट-फटकार करके भगा दिया. अंत में वे छोटी बहु के घर गये, उसने कहा मैं तो बहुत निर्धन हूं, इस पर विष्णु शर्मा ने कहा कि बेटी मैं अब कहां जाऊं, मैं वृद्ध हो गया हूं. तब छोटी बहु ने कहा ससुर जी आप परेशान न हों, आप पूजा की तैयारी करिये, आपके साथ मैं भी यह व्रत करूंगा, गणेश जी हमारे सारे दुखों को दूर करेंगे. इसके बाद छोटी बहु लोगों के घर जाकर भीख मांगकर लाई और ससुर जी के साथ गणेश जी का विधिवत पूजन करने के बाद ससुर को सम्मान के साथ भोजन कराया, खुद भूखी रही.

रात में ससुर जी को उल्टी हुई, इससे उसके कपड़े खराब हो गये. छोटी बहु पूरी रात साफ-सफाई और ससुर की सेवा करती रही. इस तरह दोनों पूरी रात जागते रहे. सुबह होने पर बहु ने देखा कि उसका घर हीरे-मोती-मणिकों से लदा हुआ है. छोटी बहु ने ससुर से पूछा कि ये सब कब और कैसे हो गया?ससुर जी ने कहा बहु यह तुम्हारी सेवा और श्रद्धा का प्रतिफल है. तुम्हारी भक्ति से गणेश जी प्रसन्न होकर तुम्हें आशीर्वाद स्वरूप दिया है. फाल्गुन गणेश संकष्टि के व्रत का फल तुम्हे मिला है,

शुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी प्रारंभ प्रात: 05.46 बजे से (02 मार्च, मंगलवार)

गणेश चतुर्थी समाप्त भोर में 02.59 बजे (03 मार्च, बुधवार)

चंद्रोदयः

ऐसे में चतुर्थी की पूजा और व्रत 02 मार्च को की जाएगी.

चंद्रोदय का समय रात्रि 09.41 बजे