Sankashti Chaturthi 2021: आज है गणेश संकष्टी चतुर्थी? जानें गणेश संकष्टि चतु्र्थी का महात्म्य, पूजा विधान, मुहूर्त एवं व्रत कथा!
गणपति बाप्पा (Photo Credits: Facebook)

सनातन धर्म में आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी का काफी महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस चतुर्थी पर गणेशजी की पूजा करने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं.

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह दो चतुर्थियां आती हैं, और दोनों ही चतुर्थियों का विशेष महात्म्य होता है. पूर्णिमा के पश्चात आनेवाली चतुर्थी को गणेश संकष्टि चतुर्थी कहा जाता है. मान्यता है कि गणेश संकष्टि चतुर्थी का व्रत एवं पूजा-अर्चना करने से भगवान श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं, और निर्धनों को धन एवं सम्मान तथा निसंतान माओं को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं. इस वर्ष आश्विन मास की संकष्टि चतुर्थी 24 सितंबर 2021, शुक्रवार को पड़ रही है. आइये जानें संकष्टि चतुर्थी के इस व्रत एवं पूजा का विधान क्या है.

गणेश संकष्टि चतुर्थी का महात्म्य

हिंदू समाज में धार्मिक कर्मकाण्डों में गणेश संकष्टि चतुर्थी का विशेष महात्म्य है. संकष्टी के दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है. मान्यता है कि इस दिन सच्ची आस्था के साथ व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से घर की सारी विपदाएं दूर होती हैं. अगर यह व्रत कोई सुहागन महिला संतान प्राप्ति के लिए रखती है, तो गणेशजी की कृपा से उसे संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन चंद्र दर्शन का भी विशेष महत्व होता है. मान्यतानुसार सूर्योदय से शुरु होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के साथ ही संपूर्ण होता है.

पूजा विधिः

प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. अब गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए मनोवांछित फल की कामना करें. अब चंद्रोदय से पूर्व एक छोटी चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें. इस पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. पूजा के लिए इस तरह बैठें कि आपका मुंह पूर्व या उत्तर की ओर हो. एक स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेशजी के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करें. निम्न श्लोक पढ़ते हुए गणेश जी का आह्वान करें.

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

सर्वप्रथम गणेशजी को दूर्वा की 21 गांठे अर्पित करें. दूर्वा अर्पित करते समय ध्यान रहे कि पत्तियां आपकी ओर और जड़ें गणेश जी की ओर रहें. इसके बाद गणेश जी को रोली और चावल से तिलक लगाने के बाद इन्हें पुष्प, चंदन, तिल, सुपारी, पान, जनेऊ एवं नारियल अर्पित करें. अब पूष्प के साथ नैवेद्य के रूप में मौंसमी फल, एवं मोदक चढ़ाएं. गणेशजी की पूजा सम्पन्न होने के पश्चात व्रत कथा का पाठ सुनें अथवा सुनाएं. पूजा की समाप्ति गणेश जी की आरती से करें. अंत में चढ़ा हुआ नैवेद्य लोगों में वितरित करें. रात चंद्रोदय होने पर चंद्र दर्शन कर उन्हें जल का अर्घ्य दें. चंद्रमा की पूजा करें. इसके पश्चात व्रत का पारण किया जाता है. यह भी पढ़ें : Pitru Paksha 2021: पितृपक्ष के दिन ये गलतियां कर पितरों को ना करें नाराज!

संकष्टि चतुर्थी का पूजा मुहूर्त

चतुर्थी प्रारंभः 08.29 AM (24 सितंबर 2021, शुक्रवार) से

चतुर्थी समाप्तः 10.36 AM (25 सितंबर 2021) शनिवार तक

सर्वार्थ सिद्धि योगः 06.10 AM से 08.54 AM तक

राहू काल का योगः 10.42 AM से 12.13 PM तक

संकष्टि चतुर्थी व्रत कथा

प्राचीनकाल में बाणासुर की कन्या उषा ने स्वप्न में अनिरुद्ध को देखा और उस पर मोहित हो गयी. लेकिन सुबह उठने पर अनिरुद्ध को सामने ना पाकर दुखी हो गई. तब उषा की सखियों ने तीनों लोकों के चौदह प्राणियों के चित्र बनाकर उषा को दिखाया कि इसमें से कौन है अनिरुद्ध. उषा ने एक चित्र को देखते हुए कहा कि यही है वह अनिरुद्ध. इन्हें कहीं से भी लाओ. मैं इनके बिना जीवित नहीं रह सकती. तब चित्रलेखा नामक सखी ने द्वारिका में अनिरुद्ध को पहचान कर उसका हरण कर बाणासुर के नगर ले आई. उधर द्वारिक में अनिरुद्ध को ना पाकर रुक्मिणी ने अपने नाती को लुप्त देखकर श्रीकृष्ण से कहा कि अनिरुद्ध को अगर वह नहीं ला सके तो वह प्राण त्याग देंगी. श्रीकृष्ण जब दरबार में आये तो लोमश मुनि सारी स्थिति समझ गये. उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, हे कृष्ण, आप गणेशजी का व्रत-पूजा करेंगे तो आपको नाती के साथ ही आपकी पुत्रवधु भी प्राप्त हो जायेगी. आप आश्विन मास में संकष्टि चतुर्थी का व्रत रखते हुए गणेश जी की पूजा करें. कृष्ण ने वैसा ही किया. व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्ण ने बाणासुर पर विजय प्राप्त कर उषा सहित अनिरुद्ध को घर ले आये.