पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक माह की चतुर्थी का दिन भगवान श्रीगणेश को समर्पित है. मान्यता है कि इसी दिन गणेश जी का पादुर्भाव हुआ था. इस दिन गणेश जी की विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान किया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार वस्तुतः प्रत्येक माह दो चतुर्थी आती है, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष चतुर्थी को संकष्टि चतुर्थी कहा जाता है. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा करने से जातक के सारे कष्ट मिट जाते हैं और उसे जीवन में कभी किसी प्रकार की संकट नहीं आते. श्रावण कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 06 जुलाई 2023, गुरूवार को पड़ रहा है. आइये जाने क्या है इसका महात्म्य, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि?
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महात्म्य
नारद पुराण के अनुसार श्रावण संकष्टी चतुर्थी को पूरे समय उपवास रखना चाहिए. संध्याकाल में गणेश जी की पूजा एवं संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा सुननी अथवा सुनानी चाहिए. इस पूजा से घर के भीतर की नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं, जिसकी वजह से घर में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है. भगवान गणेश अपने हर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गणेश जी की पूजा के पश्चात चंद्रोदय होने पर चंद्र दर्शन कर चंद्रमा को दीप प्रज्वलित कर अर्घ्य देने का विधान है. इस व्रत का विशेष महत्व यह है कि यह सूर्योदय से शुरू होकर चंद्रोदय के बाद समाप्त होता है. संकष्टि-पूजा से धन, यश, वैभव एवं अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. नारद पुराण के अनुसार श्रावण मास की गणेश संकष्टी चतुर्थी की पूजा के पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य एवं उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए, अन्यथा व्रत का पुण्य फल नहीं मिलता
संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त
श्रावण संकष्टी चतुर्थी प्रारंभः 06.30 AM (06 जुलाई 2023 गुरूवार),
श्रावण संकष्टी चतुर्थी समाप्तः 03.12 AM (07 जुलाई 2023, शुक्रवार)
संकष्टी चंद्रोदयः 10.12 PM
श्रावण संकष्टी व्रत-पूजा विधि
श्रावण संकष्टी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें. गणेशजी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. संध्याकाल में (सूर्यास्त से पूर्व) मंदिर के सामने चौकी स्थापित कर उस पर लाल वस्त्र बिछाकर श्रीगणेश जी एवं माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें. इन पर गंगाजल छिड़कें. धूप दीप प्रज्वलित कर भगवान श्रीगणेश का आह्वान मंत्र पढ़ें.
गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
भगवान गणेश एवं दुर्गाजी को रोली-अक्षत का तिलक लगाएं. दूर्वा, पान, सुपारी, इत्र तथा भोग में मोदक, मिष्ठान एवं फल चढाएं. गणेशजी एवं दुर्गाजी की चालीसा पढ़ें. संकष्टि व्रत की कथा सुनें. अंत में क्रमशः गणेश जी और दुर्गा जी की आरती उतारें. चंद्रोदय के पश्चात चंद्रमा के सामने दीप जलाकर अर्घ्य दें. ब्राह्मण, गरीब अथवा जरूरतमंद को दान दें, और व्रत का पारण करें.