हिंदू धर्म शास्त्रों में गणेश चतुर्थी का दिन भगवान गणेश को समर्पित माना गया है. इस दिन भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. हिंदी पंचांगों में हर मास दो चतुर्थी बताये जाते हैं, एक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और दूसरी कृष्ण पक्ष की. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, यानी इस दिन गणेश जी का व्रत एवं पूजा-अर्चना करने से जातक के सारे संकट मिट जाते हैं, तथा गणेश जी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इस वर्ष ज्येष्ठ संकष्टि चतुर्थी का व्रत 8 मई 2023, दिन सोमवार को रखा जायेगा. आइये जानें ज्येष्ठ मास की संकष्ठी चतुर्थी का महात्म्य, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि के बारे में विस्तार से. यह भी पढ़ें: Narada Jayanti 2023 Wishes: नारद जयंती पर ये हिंदी WhatsApp Stickers, GIF Greetings, SMS, Wallpapers भेजकर दें शुभकामनाएं
एकदंत संकष्टी चतुर्थी का महत्व!
पौराणिक ग्रंथों में भी एकदंत संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है. प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश का इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने से जातक के जीवन में आनेवाले सारे संभावित अवरोध मिटते हैं. नौकरी व्यवसाय में तरक्की होती है, विद्यार्थियों को बुद्धि की प्राप्ति एवं सफलता मिलती है. एकदंत चतुर्थी की यह पूजा सूर्योदय से प्रारंभ होकर चंद्रोदय तक चलती है. चंद्रोदय होने पर व्रती को चंद्रमा का दर्शन कर अर्घ्य देने के साथ ही चंद्रमा की पूजा भी करनी चाहिए. इस दिन चंद्रमा को देखना अत्यंत शुभ माना जाता है मान्यता है कि और अगर निसंतान संतान की चाहत के साथ यह व्रत एवं पूजा करे, तो उसकी ईच्छा अवश्य पूरी होगी.
ज्येष्ठ मास संकष्ठी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ संकष्ठी चतुर्थी प्रारंभः 6.18 PM (08 मई 2023, सोमवार)
ज्येष्ठ संकष्ठी चतुर्थी समाप्तः 04.08 PM (09 मई 2023, मंगलवार)
संकष्ठी चतुर्थी की पूजा सायंकाल ही की जाती है, इसलिए 08 मई 2023 को ही ज्येष्ठ संकष्ठी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा होगी.
ऐसे करें ज्येष्ठ संकष्ठी चतुर्थी की पूजा एवं व्रत
ज्येष्ठ मास की चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर सूर्य को जल अर्पित करें. अब स्वच्छ वस्त्र पहनकर खुद पर गंगाजल छिड़क कर अपनी शुद्धि करें, तथा गणेश जी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अगर मन में कोई कामना है, तो उसे मन ही मन उद्गार करें. अब इस मंत्र का जाप करते हुए पूजा की क्रिया प्रारंभ करें.
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥
भगवान गणेश की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़कें, धूप दीप प्रज्वलित करें, और गणेश जी का आह्वान मंत्र पढ़ें.
ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थमजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
गणेश जी को फूल, दूर्वा, चंदन, रोली, अक्षत, इत्र अर्पित करें. प्रसाद में फल एवं मोदक चढ़ाएं. अंत में आरती उतारें. इसके पश्चात चंद्रोदय होने पर चंद्रमा की आरती उतारकर अर्घ्य दें. अब फलाहार किया जा सकता है, लेकिन अन्न ग्रहण अगले दिन सूर्योदय एवं गणेश जी की पूजा के पश्चात ही करना चाहिए,