हिंदू धर्म में तिलक शुभता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए पुरोहित केवल शुभ मंगलं कार्यों में ही तिलक लगाते हैं. तिलक का अपना महात्म्य, नियम और परंपराएं हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है. बिना तिलक लगाये न कोई पूजा-अनुष्ठान मान्य होता है, ना ही अनुष्ठान की पूर्णता मानी जाती है. अमूमन तिलक मस्तष्क पर दोनों भौहों के बीच में, गले, ह्रदय अथवा नाभि पर लगाया जाता है. मस्तष्क पर तिलक आपके आकर्षक व्यक्तित्व की पहचान होती है और बताती है कि आप किस सम्प्रदाय विशेष से हैं. तिलक लगाने का भौतिक पहलू यह भी है कि इससे सेहत अच्छा रहता है, मन में शांति और एकाग्रता आती है, आपका आत्मविश्वास और आत्मबल में वृद्धि होती है. आपकी सोच सकारात्मक होती है. तिलक से ग्रहों की ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जो आपके कर्म और भाग्य में अहम् भूमिका निभाती है.
किस पदार्थ के तिलक से क्या लाभ मिलता है
तिलक अमूमन रोली अथवा चंदन का लगाया जाता है, लेकिऩ बहुत सारे अनुष्ठानों में अलग—अलग पदार्थों से तिलक लगाने का भी विधान है, मसलन गोरोचन का तिलक, केशर का तिलक और भभूत का तिलक. चंदन का तिलक मस्तष्क को ठंडा रखता है और इससे एकाग्रता बढ़ती है. मनुष्य के पापों का शमन होता है. घर में अन्न-धन भरा रहता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है. रोली और कुमकुम का तिलक आपके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के साथ-साथ आलस्य को दूर भगाता है. केसर के तिलक से आपके यश की वृद्धि और कार्य की सफलता की संभावना बढ़ती है. यह जीवन में सफलता, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्य, धन-संपदा, आयु, आरोग्य प्राप्त कराता है. गोरोचन का तिलक हारी हुई बाजी जीत में बदलने की क्षमता रखता है. भस्म या राख का तिलक से दुर्घटनाओं से सुरक्षा और मुकदमें में जीत दिलाती है. अष्टगंधा के तिलक से विद्या ज्ञान की वृद्धि होती है. हल्दी का तिलक त्वचा को शुद्ध रखता है. चूंकि हल्दी में एंटी बैक्टीरियल तत्व होते हैं तो यह तमाम रोगों से शरीर को मुक्त भी करते हैं.
नियम पूर्वक तिलक लगाना चाहिए
नियम पूर्वक तिलक ही यथेष्ट लाभकारी माना जाता है. स्नान करने के पश्चात ही तिलक लगाना चाहिए, लेकिन पहले अपने इष्ट देवता को तिलक लगाना न भूलें. अगर आप स्वयं को तिलक लगा रहे हैं तो अपनी अनामिका का प्रयोग करें और अगर दूसरे को लगा रहे हैं तो अंगूठे का इस्तेमाल करें. यहां एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि कोशिश करें कि तिलक लगाने के बाद तुरंत सोयें नहीं वरना तिलक का प्रभाव नहीं रहता.
तिलक के साथ चावल का प्रयोग जरूरी क्यों है
तिलक के साथ अक्षत के रूप में चावल के दाने भी तिलक के बाद लगाये जाते हैं. चावल शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और चावल के दाने हमारे इर्द-गिर्द के नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं. यही वजह है कि आचमन से लेकर हवन, विवाहितों की गोद भरने और दान-दक्षिणा तक करते समय चावल का इस्तेमाल किया जाता है.
यहां एक बात ध्यान देने की यह भी है कि अगर आपके मस्तष्क पर तिलक आपकी माता-पिता-बहन-भाई अथवा पुरोहित लगा रहे हैं तो तिलक के पश्चात उनका चरण स्पर्श करना ना भूलें.