Rani Awanti Bai Lodhi Punyatithi: कौन थीं रानी वीरांगना अवंतीबाई लोधी? जिसने 1857 के विद्रोह में ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी थी!
रानी अवंती बाई लोधी पुण्यतिथि (Photo: Twitter)

Rani Awanti Bai Lodhi Punyatithi: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 से 1947 तक हुई आजादी की लड़ाई में हजारों वीरों और वीरांगनाओं ने शहादत दी, जिनका उल्लेख इतिहास में मुश्किल से मिलता है. लेकिन सच छुपाया नहीं जा सकता. यहां ऐसी ही एक वीरांगना अवंतीबाई (Awanti Bai) की बात करेंगे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में अभूतपूर्व योगदान दिया, जिसका नाम सुनने मात्र से अंग्रेजों की नींद उड़ जाती थी. ऐसी जुझारू वीरांगना अवंती बाई लोधी (Rani Awanti Bai Lodhi) की 165वीं पुण्यतिथि पर आइये जानें इस वीरांगना की शौर्य गाथा. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmibai Punyatithi: रानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि पर जानें उनके जीवन की कुछ महत्वपूर्ण बातें

अवंती बाई का जन्म 16 अगस्त 1831 को मध्य प्रदेश के सिवनी स्थित मनकेडी ग्राम में हुआ था. पिता राव जुझार सिंह 187 गांव के जमींदार थे. अवंती बाई की शिक्षा घर पर हुई थी. तलवारबाजी, घुड़सवारी आदि में उन्होंने बचपन में ही दक्षता प्राप्त कर ली थी. अवंतीबाई का विवाह रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह लोधी के पुत्र विक्रमादित्य के साथ हुआ था. 1850 में राजा लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद 1850 में रामगढ़ की रियासत विक्रमादित्य ने संभाली. लेकिन वे ज्यादातर अध्यात्म में व्यस्त रहते थे, लिहाजा राजकाज के सारे महत्वपूर्ण निर्णय स्वयं अवंतीबाई लेती थीं.

चूंकि उस समय विक्रमादित्य के दोनों पुत्र अमर सिंह और शेर सिंह बहुत छोटे थे. एक दिन विक्रमादित्य विक्षिप्त हो गये. अब रामगढ़ का सारा दारोमदार रानी के कंधों पर आ गया. यह खबर जब अंग्रेज अधिकारियों को लगी तो उन्होंने कोर्ट ऑफ वार्डस के तहत कार्यवाही करके रामगढ़ अपने अधिकार में लेते हुए उसका प्रतिनिधि शेख मोहम्मद एवं मो अब्दुल को नियुक्त कर दिया. अवंती बाई अंग्रेजों के चाल-चरित्र और चेहरा से परिचित थीं. उन्होंने दोनों प्रतिनिधियों को राज्य से बाहर खदेड़ दिया. कुछ समय बाद विक्रमादित्य का निधन हो गया, उधर अंग्रेज एक-एक कर सतारा, नागपुर, झांसी समेत कई रियासतों को जबरन ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था. जब उन्होंने रामगढ़ पर भी यही नीति अपनाई तो अवंतीबाई ने इसका कड़ा विरोध किया.

अवंती बाई ने पड़ोसी राजाओं को भिजवाई चूड़ियां!

अंग्रेजों की रियासतों को हड़पने की कुटिल नीति के खिलाफ गोंड राजा शंकर शाह ने सभी को एकजुट होने के लिए कहा. इस एकजुटता के प्रचार-प्रसार का कार्य अवंती बाई को मिला. उन्होंने पड़ोसी राजाओं एवं जमींदारों को पत्र के साथ चूड़ियां भिजवाई. पत्र में लिखा कि देश की रक्षा के लिए या तो कमर कस लो, या चूड़ियां पहनकर बैठो. उनका यह पत्र लोगों को झिंझोड़ कर रख दिया. रानी के इस आह्वान का असर यह हुआ कि सारे राजा और जमींदार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ में एकजुट हो गये.

इस तरह 1857 का महासमर प्रारंभ हुआ!

एकजुटता रंग लाई. यानी 1857 का महासमर प्रारंभ हो चुका था. गोंड राजा ने ब्रिटिश के विरुद्ध क्रांति का अलख जगाते हुए अंग्रेजी सेना पर धावा बोल दिया, लेकिन दुश्मन की भारी-भरकम सेना और तोप के आगे वे ज्यादा देर टिक नहीं सके. 18 सितंबर 1857 अंग्रेजों ने शंकर शाह एवं उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप में बांध कर आ लगा दिया. पिता-पुत्र की इस शहादत लोग ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश की ज्वाला धधक उठी. उधर अवंतीबाई के नेतृत्व में बिछिया थाने एवं घुघरी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. विद्रोह की आग जंगल में लगी आग की तरह फैलते देख अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन की नींद उड़ा दी. 23 नवंबर 1857 को मंडला सीमा की रक्षार्थ अवंतीबाई और डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन के बीच खूनी संघर्ष हुआ. अवंतीबाई की तलवार का सामना नहीं करते हुए उसे मंडला से भागना पड़ा.

अवंतीबाई ने अपनी तलवार से अपनी गर्दन उड़ा दिया!

अंग्रेजी हुकूमत को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई, तो उन्होंने रीवा अवंतीबाई से बदला लेने के लिए रीवा के राजा की मदद से अवंती बाई पर हमला कर दिया. इस दोहरे हमले का भी अवंती बाई ने साहस से मुकाबला किया, लेकिन जब दुश्मन की भारी-भरकम सेना भारी पड़ने लगी, रानी देवहार गढ़ की पहाड़ियों में चली गई. 20 मार्च 1858 को अंग्रेजी सेना ने पुनः उन्हें घेर लिया, और जब रानी अवंतीबाई को लगा कि दुश्मन उन्हें गिरफ्तार कर लेगा, उन्हें रानी दुर्गावती की याद आई और तत्काल अपने तलवार से अपनी गर्दन काटकर शहादत स्वीकार लिया.

क्या था अवंती बाई का अंग्रेजों को लिखा वह पत्र?

रानी अवंतीबाई को अपनी मृत्यु का पूर्व अहसास हो गया था. उन्होंने शहादत देने से पहले अंग्रेजों के नाम एक पत्र लिखा था. इस पत्र में लिखा था, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ इस विद्रोह के लिए मैं अकेली जिम्मेदार हूं, मैंने ही अपने सैनिकों को आपके खिलाफ भड़काकर युद्ध के तैयार किया था. इसलिए मेरी मृत्यु के पश्चात उन्हें किसी प्रकार की यातना ना दी जाये.