![Nirjala Ekadashi Vrat 2022: कब है निर्जला एकादशी व्रत? जानें व्रत और पूजा के नियम? Nirjala Ekadashi Vrat 2022: कब है निर्जला एकादशी व्रत? जानें व्रत और पूजा के नियम?](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2022/06/Nirjala-Ekadashi-5-380x214.jpg)
सनातन धर्म में हर एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी जिसे निर्जला एकादशी, भागवत एकादशी अथवा भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं मान्यता है कि इस एकादशी व्रत को महाबली भीम ने भी किया था. ज्येष्ठ के माह में गर्मी अत्यधिक होने के कारण जल की आवश्यकता बढ़ जाती है. हिंदू धर्म में ज्येष्ठ मास में जल दान का विशेष महात्म्य है. मान्यता है कि इस माह में जल के दान से सभी मनोकामना पूरी होती है.
एकादशी के अन्य व्रतों की तुलना में यह सबसे कठिन व्रत होता है. मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. घर में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है. आइये जानें क्या है निर्जला एकादशी व्रत का महत्व, व्रत एवं पूजा का विधि-विधान एवं शुभ मुहूर्त.
निर्जला एकादशी महत्व-
पौराणिक ग्रंथों में निर्जला एकादशी व्रत को सर्वाधिक पुण्य देने वाला व्रत बताया गया है. मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, एवं उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. निर्जला एकादशी में भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. इस व्रत में नियम और अनुशासन का भी विशेष महत्व बताया गया है. जिनका पालन व्रती को करना चाहिए.
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी प्रारंभ: 07.25 AM (10 जून,2022)
एकादशी समाप्त: 05.45PM (11 जून,2022)
निर्जला एकादशी व्रत का पारणः 05.49 AM से 08.29 AM तक (11 जून 2022)
निर्जला एकादशी व्रत एवं पूजा विधान
एकादशी व्रत का नियम दशमी की शाम से लागू हो जाता है. यानी दशमी की शाम को शाकाहार भोजन करना चाहिए. अगले दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए निर्जला एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए. अब घर के मंदिर में भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी को गंगाजल से अभिषेक कर धूप दीप प्रज्ज्वलित करें. रोली से तिलक करें.
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
इस मंत्र का जाप करते हुए भगवान को तुलसी दल, पीला पुष्प, पीला चंदन, पीला फल, खोए की मिठाई चढ़ाएं. अब विष्णु जी की आरती उतारें.