30 जनवरी को सारा राष्ट्र अपने प्यारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 75वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करेगा. यही वो मनहूस तिथि थी, जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी पर सामने से तीन गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दिया था. हैरानी की बात यह कि इससे पहले हत्यारे उन पर पांच बार जानलेवा हमला कर चुके थे. लेकिन इसके बावजूद 30 जून 1948 के दिन हत्यारे सशस्त्र महात्मा गांधी के इतने करीब कैसे पहुंच गए? यह अनुत्तरित सवाल है. यहां प्रस्तुत है महात्मा गांधी पर हुए छः हमलों की सिलसिलेवार जानकारी...
हत्या का पहला प्रयास (25 जून 1934)
विदेश से भारत आने के बाद गांधीजी की हत्या का पहला प्रयास 25 जून 1934 को किया गया. पूना (पुणे) में गांधीजी अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ एक सभा में जा रहे थे. इस गुट में एक जैसी दो कारें चल रही थीं. पहली गाड़ी आते ही उसे बम से उड़ा दिया गया, जिसमें निगम के मुख्य अधिकारी, दो पुलिसकर्मी और 7 अन्य लोग बुरी तरह घायल हो गए. दरअसल रेलवे क्रॉसिंग के कारण दोनों मोटरों के बीच लंबा अंतराल हो गया. इस दुविधा में गांधीजी की गाड़ी बच गई. गांधीजी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक 'महात्मा गांधी: द लास्ट फेज' में लिखा है कि यह बम गांधी विरोधी हिंदू चरमपंथियों का काम था. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: सुंदर-पत्नी पति के लिए, मूर्ख-पुत्र माता-पिता के लिए क्या मायने रखता है? जानें चाणक्य की नीतियां?
दूसरा प्रयास साल 1944
जुलाई 1944 में गांधी को आगा खान पैलेस से नजरबंदी से रिहा करने के बाद उन्हें मलेरिया ग्रसित पाया गया. आराम के लिए उन्हें पंचगनी के रिसॉर्ट में भेजा गया. उसी दरम्यान 18 से 20 युवक बस में सवार पंचगनी पहुंचकर गांधी विरोधी नारे लगाने लगे. कहते हैं कि गांधीजी ने विरोध करने वाले गुट के नेता नाथूराम गोडसे को बातचीत के लिए बुलवाया, मगर गोडसे ने गांधीजी से मिलने से मना कर दिया. शाम के समय गांधीजी प्रार्थना सभा की ओर जा रहे थे, तभी एक युवक खंजर लेकर गांधी की तरफ बढ़ा, लेकिन पूना स्थित सूरत लाज के मालिक मणिशंकर पुरोहित और भीलारे गुरुजी नामक युवक ने युवक को पकड़ लिया. यहां पुलिस रिकॉर्ड में नाथूराम गोडसे का नाम नहीं है, लेकिन मणिशंकर पुरोहित और भीलारे गुरुजी ने गांधी-हत्या की जांच करने वाले कपूर-आयोग के सामने अपने बयान में नाथूराम का नाम लिया.
हत्या का तीसरा प्रयास (1944)
सीतलवाड़ लिखित पुस्तक के अनुसार एक बार गांधीजी मुहम्मद अली जिन्ना से बातचीत के लिए बंबई (मुंबई) जा रहे थे. नाथूराम गोडसे और एलजी थत्ते इस मुलाकात के खिलाफ थे. गांधीजी ने सेवाग्राम से बंबई की यात्रा शुरू की तभी नाथूराम ने अपने दल-बल के साथ, गांधीजी के आश्रम के सामने भीड़ इकट्ठी कर दी. डॉ. सुशीला नय्यर ने बताया कि नाथूराम को हिरासत में ले लिया गया था. उनके पास एक खंजर मिला था, जिससे मोटर का टायर पंचर करने की योजना थी. आयोग को दी गई एक पुलिस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 'समूह के नेता' के पास से एक तलवार जब्त हुई थी, जो संभवतया गांधीजी पर आक्रमण के लिए थी.
चौथा प्रयास साल 1944
29 जून 1946, गांधीजी एक विशेष ट्रेन से बम्बई से पूना जा रहे थे. नेरल और कर्जत स्टेशनों के बीच ट्रेन पटरी से उतर गई, और एक बड़े शिलाखंड से टकरा गई, इससे इंजन खराब होने के बावजूद लोको पायलट की सूझबूझ से एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गई. इस वजह से ट्रेन के सभी यात्रियों की तो जान बची ही, साथ गांधीजी भी सुरक्षित बच गये. अगले दिन 30 जून की प्रार्थना-सभा में गांधीजी ने बताया कि ईश्वर की कृपा से 5 बार मैं मृत्यु के मुंह से सकुशल वापस आया हूं. मैंने कभी किसी को दुख नहीं पहुंचाया, मैंने किसी के साथ दुश्मनी नहीं की, फिर भी लोग क्यों मेरे प्राण के पीछे पड़े हैं.
पांचवां प्रयास साल 1948
गांधीजी की हत्या की पांचवीं कोशिश 20 जनवरी 1948 में की गई थी. यह साजिश बिड़ला भवन में एक मीटिंग के दौरान की जानी थी. घटना को अंजाम देने के लिए मदनलाल पाहवा, नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, दिगंबर बैज, गोपाल गोडसे और शंकर किस्तैया मीटिंग में भाग लेने की योजना बनाई थी. ये लोग मंच पर बम और गोली से हमला करने वाले वाले थे, मगर मदनलाल का बम सौभाग्यवश ब्लास्ट नहीं हो सका. इससे पहले कि वे कुछ और करते इससे पहले पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया.
अंततः 30 जनवरी को आक्रमणकारियों के शिकार बन गये बापू?
30 जनवरी को दोपहर करीब डेढ़ बजे नाथूराम गोडसे नारायण आप्टे एवं विष्णु करकरे एवं एक अन्य साथी के साथ वहां से निकले. उस दिन गांधीजी शाम 5 बजे अपने कमरे से बिड़ला हाउस स्थित प्रार्थना स्थल पहुंचे. वस्तुतः उन्हें थोड़ी देर हो गई थी. गांधीजी मनुबेन और आभाबेन के कंधों के सहारे प्रार्थना स्थल पर पहुंचे, वहां खड़ी भीड़ का हाथ उठाकर अभिवादन किया. इसी भीड़ से नाथुराम गोडसे अपने हाथों में पिस्टल छिपाकर गांधीजी के सामने पहुंचा और उनका पैर छुआ और फिर एक के बाद एक तीन गोली सीने और पेट पर दाग दिया. गांधीजी के मुंह से हे राम निकला और वे वहीं गिर पड़े.
पुलिस ने नाथूराम गोडसे को तो तुरंत गिरफ्तार कर लिया, लेकिन बापू की इस हत्या प्रकरण में एक प्रश्न आज भी अनुत्तरित है, कि उन पर पांच बार जानलेवा आक्रमण होने के बावजूद भारत सरकार की सिक्योरिटी कैसे असफल रही राष्ट्रपिता की जान बचाने में?
तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा संकलित एवं संपादित पुस्तक 'बियॉन्ड डाउट- ए डोजियर ऑन गांधीजी असैसिनेशन' महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित अभिलेखीय दस्तावेजों के संग्रह से उद्धृत