आचार्य चाणक्य ने अपनी अचूक एवं बौद्धिक नीतियों से ना केवल एक सामान्य बालक को भारत का सशक्त सम्राट बनाया, बल्कि अपनी नीतियों में कई बातों का ऐसा चित्रण किया है, जो आज भी सामयिक लगता है. आचार्य चाणक्य ने अपने एक श्लोक के जरिये परिवार के चार सदस्यों के चार कारणों का खुलासा किया है, जो किसी भी स्त्री अथवा पुरुष के लिए अभिशाप साबित हो सकती है. आइये जानें ये श्लोक किसके ऊपर किस रूप में लागू होती है.
ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी
भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र: शत्रुरपण्डित:
पिता का कर्जदार होना!
आचार्य चाणक्य की इस नीति के अनुसार हर पिता का फर्ज होता है कि वह घर-परिवार की परवरिश कुछ ऐसी व्यवस्थाओं के साथ करे, कि उसे किसी भी सूरत में कर्ज ना लेना पड़े, क्योंकि पिता द्वारा लिये कर्ज की भरपाई उसकी संतान को ही करना पड़ता है, जो किसी भी संतान को पसंद नहीं हो सकता. ऐसी स्थिति में वह अपनी ही संतान की नजर में सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है. यह भी पढ़ें : Bhishma Ashtami 2023 Wishes: भीष्म अष्टमी की इन WhatsApp Messages, Greetings, HD Wallpapers, SMS के जरिए दें शुभकामनाएं
अपनी ही संतानों को दो नजर से देखना!
अपने इस श्लोक के जरिये आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा है, कि एक माँ को अपनी संतान के साथ दोहरा बर्ताव नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर वह ऐसा करती है तो बच्चों के बीच दरार पड़ सकती है, जिससे परिवार समय से पहले टूटने लगते हैं. ऐसी माँ अपनी संतान ही नहीं अपने परिवार की भी दुश्मन साबित होती है.
खूबसूरत पत्नी!
आचार्य चाणक्य के अनुसार हर पति खूबसूरत पत्नी की ख्वाहिश रखता है, लेकिन कभी-कभी पत्नी की यही खूबसूरती पति की जिंदगी तबाह कर देती है. क्योंकि अकसर देखा जाता है कि खूबसूरत पत्नी पति का यथोचित सम्मान नहीं करती, उसके बजाय किसी और से प्रेम संबंध बनाती है. ऐसी पत्नी पति के लिए समाज ही नहीं परिवार में भी अपमान का कारण बनती है.
बदमिजाज एवं बेवकूफ संतान!
संतान बुद्धिमान होती है, तो माता-पिता के साथ-साथ देश का नाम भी गौरवान्वित करती है, लेकिन इसके विपरीत परिस्थितियों को चाणक्य ने अपनी नीतियों में बखूबी उकेरा है. चाणक्य नीति के अनुसार मूर्ख या बदमिजाज संतान माता-पिता दोनों के लिए दुश्मन साबित होती है, क्योंकि अकसर ऐसी संतानों की परवरिश माता-पिता पर भारी पड़ती है, उन्हें संतान के होने का सुख आर्थिक या सामाजिक रूप से नहीं मिलता. माता-पिता संतान सुख से हमेशा वंचित रहते हैं.