देश में आजादी के लिए चिंगारी जलनी शुरू हो चुकी थी, उन्हीं दिनों एक महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म हुआ, जिन्होंने आगे चल कर अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दीं. हम बात कर रहे हैं, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Lokmanya Bal Gangadhar Tilak) की, जिनका प्रारंभिक नाम केशव गंगाधर था, लेकिन लोकमान्य तिलक के नाम से ज्यादा जाने गये. तिलक जी ने अपने संपूर्ण जीवन में देश की आजादी के साथ ही समाज से तमाम कुरीतियां दूर करने के लिए जागरूकता फैलाई. इसके लिए उन्होंने गीता रहस्य के नाम से रचना कर डाली, जिसके जरिए उन्होंने कर्म प्रधानता पर जोर दिया. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती पर उनके संक्षिप्त जीवन पर एक नजर डालते हैं…
लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र प्रांत के रत्नागिरी जिले के गांव चिखली में हुआ था. उनका प्रारंभिक नाम केशव गंगाधर था. अपने तर्क, वाक्य पटुता और सटीक और सर्वमान्य बातों की वजह से वह लोकमान्य कहलाये.
क्रांतिकारियों और सेनानियों के बीच बीता बचपन
लोकमान्य तिलक का जन्म ऐसे काल-खंड में हुआ था, जब देश में स्वतंत्रता के लिये एक बड़ी तैयारी हो रही थी. लोकमान्य तिलक का बचपन और शिक्षण उन परिस्थितियों में पूरा हुआ, जब देश में इस प्रथम सशस्त्र और संगठित क्रांति की असफलता के बाद अंग्रेजों के दमन का दौर चल रहा था. अंग्रेज क्रांति के प्रत्येक सूत्र का क्रूरता से दमन कर रहे थे. क्रांतिकारियों और सशस्त्र संघर्ष के सेनानियों को ढूंढ-ढूंढ कर सामूहिक फांसी दी रही थी, उनकी तलाश में गांव के गांव जलाये जा रहे थे. सामूहिक दमन के इस दृश्य के बीच तिलक ने होश संभाला.
यह स्वाभाविक ही था कि दमन के इन दृश्यों ने उनके मानस में स्वत्व का बोध और दासत्व की विवशता का चित्रण सशक्त हुआ था. इसलिए बाल्यकाल से ही उनके मन में संगठन, संघर्ष और स्वत्वाधिकार की भावना प्रबल होती चली गई. उनके परिवार की पृष्ठभूमि सांस्कृतिक जुड़ाव की रही. इसलिये भारतीय गरिमा की कहानियां उन्हे कंठस्थ थीं. उन्होंने उस समय की प्रचलित आधुनिक शिक्षा की सभी बड़ी डिग्रियां हासिल की, लेकिन उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी शिक्षा बड़ों का अनादर सिखाती है और परिवार तोड़ना सिखाती हैं.
जागरूकता के लिए समाचार पत्रों का शुरू किया प्रकाशन
दरअसल 1857 की क्रांति की असफलता के बाद देश का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजों की शैली को अपनाने की होड़ में आगे बढ़ने लगा था. तिलक इस समूह को सतर्क करना चाहते थे. उन्होंने एक शिक्षा समिति गठित की. उसका नाम दक्षिण शिक्षा सोसायटी रखा. उसमें शिक्षा तो आधुनिक शैली में थी, पर उसमें भारतीय चिंतन एक प्रमुख पक्ष था. इसके साथ उन्होंने दो समाचार पत्रों का प्रकाशन आरंभ किया. एक मराठी में और एक अंग्रेजी में. मराठी समाचार पत्र का नाम केसरी और अंग्रेजी समाचार पत्र का नाम मराठा दर्पण रखा. इन दोनों ही समाचार पत्रों में भारतीय संस्कृति की महत्ता और विदेशी शासन द्वारा दमन किये जाने का विवरण होता.
कांग्रेस से मतभेद के बाद अस्तित्व में आया गरम दल-नरम दल
जल्द ही वो समय भी आ गया जब तिलक स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े और कांग्रेस के सदस्य हो गये, लेकिन तिलक के जल्दी ही कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद हो गये. इसका कारण यह था कि तब कांग्रेस के एजेंडे में भारतीयों को सम्मान जनक अधिकार देना तो था, पर अंग्रेजी सत्ता का विरोध न था. जब कि तिलक अंग्रेजों और अंग्रेजी सत्ता के एकदम विरुद्ध थे. इसका सीधा टकराव 1991 में देखने को आया. इनकी टकराहट का विवरण कांग्रेस के इतिहास में दर्ज है. एक समूह गरम दल और दूसरा समूह नरम दल.
पांच महीने में पेंसिल से लिख डाला ‘गीता रहस्य’
अपनी असहमति और अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर तिलक जी ने केवल वक्तव्य या सभाओं तक ही सीमित न रखा, उन्होंने आलेख लिखने की भी श्रृंखला चलाई. इन लेखों के कारण उन पर अनेक मुकदमे बने. कई बार सजाये और जुर्माना हुआ, लेकिन 1897 में उन पर देशद्रोह का मुकदमा बना और 6 साल की कैद हुई. अपनी इसी जेल यात्रा में ही तिलक जी ने ‘गीता रहस्य’ नामक ग्रन्थ लिखा, जो आज भी गीता पर एक श्रेष्ठ टीका मानी जाती है. इसके माध्यम से उन्होंने देश को कर्मयोग की प्रेरणा दी.
गीतारहस्य को तिलक जी ने महज पांच महीने में पेंसिल से ही उन्होंने लिख डाला था. लेकिन एक दौर में लगता था कि शायद ब्रिटिश हुकूमत उनके लिखे को जब्त ही कर लें. हालांकि उन्हें अपनी याददाश्त पर बहुत भरोसा था. इसलिए उन्होंने कहा था, “डरने का कोई कारण नहीं. अभी बहियां सरकार के पास हैं. लेकिन ग्रंथ का एक-एक शब्द मेरे दिमाग में है. विश्राम के समय अपने बंगले में बैठकर मैं उसे फिर से लिख डालूंगा.”
क्या है गीता रहस्य
गीता रहस्य नामक पुस्तक की रचना लोकमान्य तिलक ने मांडले जेल (बर्मा) में की थी. इसमें उन्होंने श्रीमद्भागवतगीता के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की. उन्होंने अपने ग्रन्थ के माध्यम से बताया कि गीता चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है, जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठ कर पुस्तक पढ़ने लगते हैं. गीता रहस्य में यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए. इस ग्रंथ में उन्होंने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है.
दरअसल तिलक मानने को तैयार नहीं थे कि गीता जैसा ग्रन्थ केवल मोक्ष की ओर ले जाता है. उसमें केवल संसार छोड़ देने की अपील है. वह तो कर्म को केंद्र में लाना चाहते थे. वही शायद उस समय की मांग थी, जब देश गुलाम हो, तब आप अपने लोगों से मोक्ष की बात नहीं कर सकते. उन्हें तो कर्म में लगाना होता है. वही तिलक ने किया और गीता के रहस्य को पूरी दुनिया के सामने ले आए. गांधी जी भी गीता के अत्यन्त प्रशंसक थे, उसे वह अपनी माता कहते थे. उन्होंने भी गीतारहस्य को पढ़ कर कहा था कि गीता पर तिलक जी की यह टीका ही उनका शाश्वत स्मारक है. यह भी पढ़ें : Guru Purnima 2021 Messages: गुरु पूर्णिमा के इन शानदार WhatsApp Greetings, Facebook Wishes, Quotes, SMS, HD Images के जरिए दें शुभकामनाएं
शिवाजी महाराज उत्सव और दूसरा गणेशोत्सव की शुरुआत
जेल से छूटने के बाद उन्होंने दो उत्सव आरंभ किये. एक शिवाजी महाराज उत्सव और दूसरा गणेशोत्सव. तिलक जी की लेखनी से बौद्धिक वर्ग में तो क्रांति आ ही रही थी कि इन उत्सवों के आयोजन से अन्य वर्गों में भी चेतना का संचार हुआ, जो आज विराट रूप ले चुकी है. तिलक जी ने इन दोनों उत्सवों का आरंभ मनौवैज्ञानिक तरीके से किया. समाज का जो वर्ग धार्मिक भावना वाला था, वह गणेशोत्सव से जुड़ा और जो सांस्कृतिक और सामाजिक रुझान वाला वर्ग था वह शिवाजी महाराज उत्सव से जुड़ा. तिलक जी के इन प्रयत्नों से समाज का प्रत्येक वर्ग जाग्रत हुआ और स्वाधीनता संघर्ष का वातावरण बनने लगा. यह उस समय के वातावरण का ही प्रभाव था कि 1905 में यदि तिलक जी ने देवनागरी को सभी भारतीय भाषाओं की संपर्क भाषा बनाने का अव्हान किया, तो पूरे देशभर में समर्थन मिला और जगह-जगह संस्थाएं बनने लगी भाषाई आयोजन होने लगे.
‘आधुनिक भारत का निर्माता’
तिलक जी ने 1907 में पूर्ण स्वराज्य का नारा दिया. तिलक जी का मानना था कि स्वतन्त्रता भीख की तरह मांगने से नहीं मिलेगी. उन्होंने नारा दिया – स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर ही रहेंगे और 1908 में सशस्त्र क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाको जैसे आंदोलन कारियों का खुलकर समर्थन किया. यही कारण था बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारी समूह तिलक जी से जुड़ गये. तिलक जी 1916 में ऐनी बेसेन्ट द्वारा गठित होमरूल सोसायटी से जुड़े. उनका निधन 1 अगस्त 1920 को मुम्बई में हुआ. तिलक जी का व्यक्तित्व कितना विशाल था इसका उदाहरण उनके निधन पर गांधी जी की प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है. तिलक जी के निधन पर गांधी जी ने कहा था कि ” वे आधुनिक भारत का निर्माता थे”.