Sargi time: जाने करवा चौथ 2024, सरगी का समय, चंद्रोदय का समय और पूजा का मुहूर्त: रानी वीरावती की कहानी से लेकर चंद्रमा के दर्शन से  व्रत समाप्ति तक
Karwa Chauth (Photo Credits: File Image)

Sargi time: भारत में करवा चौथ केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि इस बढ़कर है. ये एक सैकड़ो वर्षो से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा का प्रतिनिधित्व भी करता है. माना जाता है की इससे वैवाहिक जीवन की शक्ति बढ़ती है. भारत में महिलाएं इस त्यौहार को मनाने की तैयारी कर रही है.

करवा चौथ, उत्तर भारत का विवाहित महिलाओं के बीच एक पसंदीदा और बड़ा त्योहार, इस वर्ष रविवार, 20 अक्टूबर, 2024 को ये मनाया जाने वाला है.पूर्णिमा कैलेंडर के अनुसार, यह शुभ अवसर हिंदू माह के कार्तिक में पूर्णिमा (पूर्णिमा) के चौथे दिन पड़ता है. इसके विपरीत, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिणी भारत जैसे क्षेत्र में इसको अमांत कैलेंडर के अनुरूप मनाते है, जहां करवा चौथ अश्विन महीने के दौरान मनाया जाता ह. इन विभिन्नताओ के बावजूद, यह त्योहार पूरे देश में एक ही दिन मनाया जाता है, जो विविधता में एकता का प्रतीक है. ये भी पढ़े:करवा चौथ 2024: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, चांद निकलने का समय और व्रत खोलने का सही तरीका

इस बार करवा चौथ 2024 की तारीख रविवार को है, लेकिन करवा चौथ के लिए सरगी का क्या समय है? करवा चौथ 2024 पर चंद्रोदय का समय क्या है? किस समय व्रत तोड़ना चाहिए? त्योहार के दिन रानी वीरावती कथा के पाठ समेत पूजा शुभ मुहूर्त और अन्य महत्वपूर्ण अनुष्ठानों का पालन क्या किया जाना चाहिए? यदि आप पहली बार या कई वर्षों से करवा चौथ का व्रत रख रहे हैं, तो यहां इस त्योहार के बारे में सारी जानकारी दी जा रही है जो आपको बिना किसी परेशानी के इस त्यौहार को मनाने में मदद करेगी.

करवा चौथ 2024 की तारीख, सरगी और चंद्रोदय का समय

तिथि: रविवार, 20 अक्टूबर, 2024

पूजा मुहूर्त: शाम 05:46 बजे से शाम 07:02 बजे तक

करवा चौथ के लिए सरगी का समय: सूर्योदय से 2 घंटे पहले, यानी, 04:34 पूर्वाह्न

उपवास का समय: सुबह 06:25 बजे से शाम 07:54 बजे तक

अक्टूबर में चंद्रोदय का समय 20: 07:54 PM

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2024 को सुबह 06:46 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2024 को सुबह 04:16 बजे

करवा चौथ की रस्में

करवा चौथ, जिसे करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व से समृद्ध है. "करवा" शब्द एक मिट्टी के बर्तन को संदर्भित करता है, जो शाम की पूजा अनुष्ठानों का केंद्र है. समारोह के दौरान, महिलाएं इस बर्तन का उपयोग करके चंद्रमा को जल अर्पित करती हैं, जिसे अर्घा के रूप में जाना जाता है. अनुष्ठान के बाद, करवा को अक्सर किसी ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान के रूप में दान कर दिया जाता है.

महिलाएं इस दिन जल्दी उठ जाती है, जो सूर्योदय से पहले का भोजन जिसे सरगी कहते हैं, खाती हैं. पारंपरिक रूप से सास द्वारा तैयार और उपहार में दी जाने वाली सरगी में फल, मिठाइयां और स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं, जो दिन भर के व्रत के लिए पोषण प्रदान करते हैं. इस भोजन के बाद, महिलाएं पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन करती हैं, रात के आकाश में चंद्रमा दिखाई देने तक भोजन और पानी से परहेज करती हैं.

पंजाबी में करवा चौथ व्रत का गाना (वीडियो देखें)

जैसे-जैसे शाम होती है, महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, आमतौर पर महिलाएं लाल रंग के कपड़े पहनती है, जो खुशहाल वैवाहिक जीवन का प्रतीक है. महिलाएं इस दिन आभूषणों और मेहंदी से खुद को सजाती हैं और शाम की पूजा के लिए दूसरी महिलाओं के साथ इकट्ठा होती हैं. इसके साथ ही महिलाएं इस दिन ग्रुप में बैठती है, एकदूसरे से कहानियां साझा करते हैं और करवा चौथ के गाने गाती हैं, जिससे महिलाओं में अपनेपन की भावना और भक्ति भाव का निर्माण होता है.

प्रेम और भक्ति का दिन

करवा चौथ मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पतियों की लंबी उम्र, समृद्धि के लिए मनाया जाने वाला एक व्रत है. कठोर व्रत, जिसे निर्जला व्रत के नाम से जाना जाता है, पत्नियों द्वारा अपने जीवनसाथी के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम का प्रतीक है. यह दिन संकष्टी चतुर्थी के साथ भी मेल खाता है, जो भगवान गणेश को समर्पित एक उपवास दिवस है. इस प्रकार, पूजा के दौरान, महिलाएं भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय जैसे देवताओं की पूजा करती हैं, अपने पतियों की लंबी उम्र और खुशी के लिए आशीर्वाद मांगती हैं.

व्रत खत्म करना

चांद दिखने के बाद ही व्रत खोला जाता है. महिलाएं परंपरागत रूप से उसी छलनी के माध्यम से अपने पति के चेहरे को देखने से पहले एक छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखती हैं,ये महिलाओं के विश्वास को जताती है की उनका पति ही उनका ब्रह्मांड है. चंद्रमा को जल अर्घ्य देने के बाद, पति अपनी पत्नियों को पानी का पहला घूंट और भोजन का एक निवाला प्रदान करते हैं, जो आपसी प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रतीक है.

लोकप्रियता और विभिन्न जगहों पर इसका महत्व 

करवा चौथ विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में मनाया जाता है,इसको दक्षिण भारत में कम मनाया जाता है. फिर भी इस त्योहार का महत्व और अनुष्ठान भक्ति, प्रेम और वैवाहिक बंधन की पवित्रता को बनाएं रखता है.

करवा चौथ सिर्फ एक त्योहार से कहीं ज्यादा है. यह एक हमारे समाज में जड़े जमा चुकी सांस्कृतिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जो वैवाहिक संबंधों की शक्ति को दिखाता है. जैसे ही महिलाएं में इस महत्वपूर्ण दिन को मनाने की तैयारी करती हैं, वे प्रेम, भक्ति और समुदाय की विरासत को आगे बढ़ाती हैं, परिवारों और समाज को एकजुट करने वाले संबंधो को मजबूत करती हैं.

डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत करवा चौथ व्रत कथा पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक कथाओं पर आधारित है. इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना और पाठकों को इस पर्व के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व से अवगत कराना है.