कारगिल (Kargil) युद्ध यादगार त्रासदियों में से एक रहा है, जिसे हर भारतीय याद रखना चाहेगा. इस युद्ध में भारतीय शूरवीरों ने अपनी बहादुरी दिखाते हुए विजय का परचम तो लहराया, लेकिन हमें भारी नुकसान भी हुआ. जीत के प्रतीक के रूप में, कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2022) हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है. यह भी पढ़ें: Kargil Vijay Diwas 2022: जानें कैसे भारतीय जांबाजों के चौतरफा हमलों से भागने को मजबूर हुई जनरल मुशर्रफ की पाकिस्तानी सेना!
फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ, जिसके अनुसार दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने पर प्रतिबद्ध थे. भारत ने कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया ना ही किसी देश की भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया. भारत की शांति नीति को पाकिस्तान ने शायद दूसरे अर्थों में लिया. समझौते के ढाई माह के अंदर भीतरघात किया. इस बार पाकिस्तानी सेना का मार्गदर्शन ज. परवेज मुशर्रफ कर रहे थे. उन्होंने शातिराना सोच के साथ कारगिल को इसलिए चुना क्योंकि यह देश की सबसे ऊंची सीमा रेखा थी. शीतकाल में अत्यधिक ठंड के कारण यहां जीवन लगभग शून्य रहता है. लिहाजा भारतीय सैनिक ज्यादातर नीचे रहते थे. मुशर्रफ को लगा कि उन्होंने ऊंचाई पर अपने सशस्त्र सैनिक लगा दिये तो भारत की भूमि पर आसानी से कब्जा कर लेंगे. पाकिस्तानी सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए स्वयं मुशर्रफ भी एक रात कारगिल में रुके, लेकिन मुशर्रफ भारत की सैन्य क्षमता और शक्ति का आकलन करने में गच्चा खा गए. शुरुआती झटकों के बाद भारतीय वायु सेना, जल सेना और थल सेना ने अपना पुराना तेवर दिखाया. पहले ऑपरेशन विजय फिर ऑपरेशन सफेद सागर के जरिये पाकिस्तानी सैनिकों पर चौतरफा प्रहार हुआ. अमेरिका ने पाकिस्तानी सैनिकों को जिंदा वापस जाने देने की प्रार्थना की. भारत ने एक बार फिर युद्ध के नीति-नियमों का सम्मान किया, लेकिन अमेरिका समेत तमाम देशों ने कारगिल युद्ध में भारत की शक्ति और क्षमता देख लिया. यहां कारगिल युद्ध के बारे में कुछ रोचक तथ्य दिए गए हैं, जिन्हें हर देशवासियों को जानना चाहिए.
* कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के जरिये आतंकवादियों के बहाने सैनिकों को घुसपैठ करने की साजिश पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख परवेज मुशर्रफ के इशारे पर रचा गया था.
* भारतीय सेना ने एलओसी पार करके भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को ठिकाने लगाने के लिए सात लाख सैनिक तैनात किया हुआ है.
* कारगिल युद्ध जो भारत एवं पाकिस्तान के बीच कारगिल में लड़ा गया था. यह शुरू में बाल्टिस्तान नामक जिला कहलाता था और कश्मीर के प्रथम युद्ध के बाद एलओसी (नियंत्रण रेखा) के माध्यम से अलग हो गया था.
* 3 मई को कुछ स्थानीय चरवाहों ने कारगिल की पहाड़ियों पर कुछ संदिग्ध गतिविधियां देखी, उन्होंने तुरंत भारतीय सेना को सूचना दी. घुसपैठिये कारगिल पर्वत पर संतरी पोस्ट तैयार कर रहे थे, और हथियारों का जखीरा खड़ा कर रहे थे.
* मई 1999 के दूसरे सप्ताह में पाकिस्तान ने जाट रेजिमेंट के छह सैनिकों कैप्टन सौरभ कालिया एवं स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा समेत का क्षत-विक्षत शव भारत भेजा. इस घटना ने भारतीय सैनिकों के मन में पाकिस्तान से बदला लेने के लिए आग में घी का काम किया.
* कारगिल युद्ध के शुरुआती दिनों में पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल अग्रिम चौकियों पर तैनात भारतीय सेना के राशन और हथियारों की उपलब्धता को रोकने के लिए NH 1A पर हमला कर किया था. गौरतलब है कि NH 1A कश्मीर को जम्मू से जोड़ता है. हालांकि बाद में NH 1A का नाम बदलकर NH 44 कर दिया गया.
* साल 1999 मई में कारगिल युद्ध से पूर्व 1999 फरवरी में भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते पर दोनों देश ने हस्ताक्षर किया था, समझौते के मुताबिक दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ हथियारों का इस्तेमाल नहीं करना तय हुआ था. मगर आदत से मजबूर पाकिस्तान ने समझौते का उल्लंघन किया.
* भारतीय वायुसेना को ऑपरेशन ‘सुरक्षित सागर’ को अंजाम देने के लिए सिर्फ एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया गया था. केवल एक सप्ताह का प्रशिक्षण कर भारतीय वायुसेना ने 1999 में कारगिल युद्ध में दुश्मनों को देश से बाहर खदेड़ा था.
* ऑपरेशन ‘सुरक्षित सागर’ के तहत भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों और मुजाहिदीनों की पलटन को 32 हजार फीट की ऊंचाई से सटीक निशाने पर लेकर जमींदोज किया था.
* सूत्रों के अनुसार इस युद्ध में भारतीय सेना ने लगभग 500 भारतीय जांबाजों को खोया, जबकि पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार उन्होंने 3000 से अधिक सैनिकों, मुजाहिदीनों और घुसपैठियों को खोया.
* कारगिल युद्ध के शूरवीरों की स्मृति में द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक बनाया गया है, जिसमें युद्ध में शहीद हुए सभी सैनिकों के शिलालेख हैं. एक इनबिल्ट संग्रहालय भी है, जिसमें कारगिल के मूल तस्वीरें, दस्तावेज, रिकॉर्डिंग एवं अन्य सामान हैं, जो भारतीय सैनिकों के योगदान को चिह्नित करते हैं.
* शुरु-शुरु में घुसपैठियों को कश्मीरी आतंकवादी समझा जाता था, लेकिन कुछ लोगों को पकड़े जाने पर उनके पास पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा उपलब्ध कराये दस्तावेजों आदि से पता चला कि वे वास्तव में पाकिस्तानी अर्धसैनिक बल के थे, जिसका नेतृत्व जनरल अशरफ राशिद कर रहा था.