पुरी स्थित विश्वविख्यात भगवान जगन्नाथ की रथ-यात्रा के संदर्भ में कई किवदंतियां प्रचलित हैं. लेकिन रथयात्रा का मूल उद्देश्य एक ही है कि भगवान उन सच्चे भक्तों तक स्वयं पहुंचना चाहते हैं, जो किन्हीं वजहों से उनका दर्शन करने में असमर्थ होते हैं. गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ का रथ किसी किसी हाथी या घोड़े आदि की मदद से नहीं खींचा जाता. इस रथ को कृष्ण-भक्त स्वयं खींचते हैं. मान्यता हैं कि रथ खींचने वाले भक्त के जीवन में कभी भी संकट नहीं आते, एवं मृत्योपरांत उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. इस रथयात्रा का वर्णन पद्म पुराण, नारद पुराण और स्कंद पुराण आदि धर्म ग्रंथों में मिलता है. आइये जानें इस रथ- यात्रा के संदर्भ में कितनी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.
1 जुलाई को शुरु होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा!
ओडिशा स्थित पुरी से निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा हमेशा की तरह इस वर्ष भी वैशाख मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया के दिन शुरू होगी. इन तीनों रथों में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर पहुंचेंगे. यहां सात दिन तक विश्राम करने के पश्चात देवशयनी एकादशी के दिन भगवान तीनों रथों में सवार होकर पुनः अपने महल में लौट आयेंगे. यह भी पढ़ें : Mystery Deep-Sea Creature Found: समुद्र में मिला सबसे बदसूरत रहस्यमयी जीव, तस्वीर देख कांप जाएगी रूह
कंस ने रचा था कृष्ण और बलभद्र की हत्या का षड़यंत्र!
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण एवं उनके बड़े भाई बलभद्र को उनके मामा जान से मारना चाहते थे. कंस ने षड़यंत्र करके कृष्ण एवं बलभद्र को आमंत्रित करने के लिए अक्रूर को गोकुल भेजा. कृष्ण अंतर्यामी थे, सारा माजरा समझ गये थे. दोनों भाई अक्रूर के रथ पर बैठकर मथुरा के लिए निकल पड़े. रथ यात्रा को इस घटना से भी जोड़कर देखा जाता है
आकाशवाणी पर मिला रथ यात्रा का आदेश!
स्कंद पुराण के उत्कल खण्ड में वर्णित है कि राजा इंद्रयुम्न भगवान जगन्नाथ का विशाल और भव्य मंदिर निर्माण करवाने के बाद गर्भगृह प्रतिमा स्थापित करने ही जा रहे थे, तभी एक आकाशवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ मथुरा की यात्रा पर जाना चाहते हैं. इंद्रयुम्न ने आकाशवाणी का पालन करते हुए तीन रथ का निर्माण करवाकर, उसमें प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं बहन को बिठा कर मथुरा ले गए थे. इसके बाद से यह परंपरा बन गई.
राधा से मिलने की चाह में की श्रीकृष्ण ने की थी रथ यात्रा!
भगवद् पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण, राधा जी से मिलने वृंदावन पहुंचे, तो वृंदावन के गोप-गोपियां खुशी से झूम उठे. प्रसन्नता के आवेग में वे अपने हाथों से रथ को खींचते हुए पूरे नगर में कृष्ण का भ्रमण करवाया. मान्यता है कि जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा भगवान श्रीकृष्ण के वृंदावन यात्रा की स्मृति में निकाली जाती है. ज्ञात हो कि भगवान द्वारिकाधीश यानी भगवान कृष्ण को सारे जग का नाथ मानते हुए वृंदावन के वासियों ने ही उनका जगन्नाथ नाम से नामकरण किया था.
श्रीकृष्ण का मृत देह!
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने इस नश्वर संसार को त्याग कर हमेशा के लिए वैकुण्ठ धाम चले गये थे. उनके देह त्यागने के पश्चात मथुरावासी उनके पार्थिव शरीर को समुद्र तट पर ले जाकर दाह संस्कार कर रहे थे, कि अचानक समुद्र में तूफान आ गया. कहते हैं कि तेज तूफान से उनका अधजला शरीर पुरी के समुद्र तट पर पहुच गया. पुरी के राजा ने श्रीकृष्ण के देह को रथ में आसीन कर पूरे नगर वासियों को दर्शन करवाया. मृत शरीर के साथ दारू लकड़ी भी पुरी पहुंचा था. कहते हैं कि राजा न उसी दारू लकड़ी का बॉक्स बनाकर भूमि को समर्पित कर दिया. बाद में इसी स्थान पर भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर बनवाया गया. इसके बाद से ही भगवान श्रीकृष्ण की खंडित प्रतिमा को रथ से यात्रा निकालने की परंपरा बन गई.