International Women’s Day 2019: ज्यादातर महिलाओं को नहीं पता संविधान में उन्हें मिले हैं ये सभी अधिकार
भारतीय संविधान, (Wikimedia Commons)

आकाश से लेकर जमीन और समंदर पर भारत ने अपनी सफलता का पंचम लहराया है. बहुत कम समय में हमने काफी उपलब्धियां हासिल की है. हिंदुस्तान के नजरिए से देखें तो इस कामयाबी में पुरुष के साथ-साथ स्त्रियों की भी समान भागेदारी रही है. कल्पना चावला, बछेंद्रीपाल, आरती साहा से लेकर लता मंगेशकर तक अनगिनत महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने दमखम पर अपनी कामयाबी की कहानी लिखी है. लेकिन ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है, जो बहुत कुछ हासिल करना चाहती हैं मगर मूलभूत जानकारी के अभाव में वह पीछे छूट जाती हैं. भारतीय संविधान ने महिलाओं को क्या कुछ संवैधानिक अधिकार दिए हैं, आइए हम आपको बताते हैं...

ब्रिटिश हुकूमत में नौकरी-व्यवसाय के क्षेत्र में जहां पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को कमतर समझा जाता रहा है, भारतीय संविधान ने लिंग के आधार पर बिना कोई भेदभाव किए स्त्री-पुरुष को समान वेतन अथवा मजदूरी देना तय किया है.

पिता द्वारा अर्जित अथवा पुस्तैनी जायदाद पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत जायदाद पर बेटे या बेटी का समान हक बनता है, वह चाहे विवाहित हो अथवा अविवाहित.

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कार्य क्षेत्र में मानसिक अथवा शारीरिक किसी भी प्रकार के उत्पीड़न अथवा सेक्सुअल हरैसमेंट पर अपराधी के खिलाफ पीड़िता को शिकायत दर्ज कराने का पूरा अधिकार है, भले ही अपराधी कितने भी ऊंचे रसूख वाला क्यों न हो.

घर में रह रही किसी भी महिला सदस्य के साथ उसका पति अथवा लिव इन रिलेशन में रह रहे पुरुष सदस्य द्वारा शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने पर महिला अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस थाने में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवा सकती है, अगर वह किसी भी वजह से पुलिस स्टेशन जाने में अक्षम है तो उसकी ओर से कोई भी महिला सदस्य उसकी शिकायत दर्ज करवा सकती है.

अगर कोई महिला अथवा लड़की किसी की ज्यादती का शिकार हुई है तो उसकी पहचान और गोपनीयता को छिपाकर अपनी शिकायत किसी महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज करवा सकती है. अगर किसी वजह से उसे सहयोग नहीं मिल रहा है तो उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है.

अगर किसी कंपनी, फैक्टरी अथवा दुकान में काम करने वाली कोई कामकाजी स्त्री मां बनती है तो मातृत्व लाभ के अंतर्गत प्रसव के बाद वह 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश प्राप्त कर सकती है. इस अवकाशकाल का पूरा वेतन उसे समय-समय पर प्राप्त होगा. अवकाश बाद वह पुनः अपना कार्य शुरु कर सकती है.

भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि हर नागरिक का यह दायित्व है कि वह एक महिला को उसकी इच्छा से जीने का सुख प्राप्त करने दे. लिंग में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाए, इसके लिए कोख में पल रहे शिशु की लिंग जांच करने अथवा करवाने वाले को अपराध के दायरे में लिया गया है.

अगर कोई महिला बलात्कार की शिकार हुई है और वह आरोपी को इसकी सजा दिलवाना चाहती है तो संविधान में उसे मुफ्त कानूनी सहायता दिए जाने का प्रावधान है. वह किसी लीगल सर्विस अथॉरिटी से उसके पक्ष में मुकदमा लड़ने के लिए वकील की व्यवस्था करने के लिए कह सकती है.

अगर किसी महिला से जाने या अनजाने में कोई अपराध हुआ है, अथवा उस पर शक है तो सूर्यास्त के पश्चात उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. विशेष परिस्थितियों में थानाधिकारी को संबंधित मामले में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट का लिखित आदेश प्राप्त करना आवश्यक होगा.

हमारे संविधान में महिला की शालीनता को विशेष अधिकार दिया गया है. अगर किसी केस में आरोपी महिला है और परिस्थितिवश उसकी मेडिकल अथवा शारीरिक जांच की आवश्यकता है तो यह चिकित्सा जांच अथवा शारीरिक जांच एक महिला द्वारा ही करवायी जा सकती है.