थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रोग है, जो अमूमन बच्चे में जन्म से ही मौजूद होता है. यह कितनी गंभीर और मर्मस्पर्शी बीमारी है, इसकी त्रासदी जनक वाली कहानी इसके आंकड़े बया करते हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 4 करोड़ थैसेसीमिया वाहक हैं, जिसमें इलाज की कमी के कारण हर वर्ष करीब एक लाख बच्चे युवा की दहलीज पर कदम रखने से पूर्व ही मृत्यु के मुंह में समा जाते हैं. यही वजह है कि भारत को थैलेसीमिया की राजधानी के नाम से जाना जाता है. आइये जानें क्या है थैलेसीमिया और मरीज को जीवन जीने के लिए किस हद तक जूझना पड़ता है. Immunity Booster: इम्यूनिटी बढ़ाने में कितनी कारगर हैं विटामिन्स की गोलियां? जानें क्या कहते Experts.
इतिहास
विश्व थैलेसीमिया दिवस 08 मई 1994 से नियमित रूप से मनाया जा रहा है. इस दिन थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन, अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के लिए कई विविध कार्यकर्मों का आयोजन भी करता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य आम लोगों, रोगी संस्थाओं, लोक प्राधिकरणों, स्वास्थ्य पेशेवरों, और उद्योग के प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए, रोग की रोकथाम, प्रबंधन या उपचार से संबंधित एक विशेष विषय पर विचार-विमर्श को बढ़ावा देने के साथ-साथ कार्यों को भी बढ़ावा देना है
क्या है रक्त?
थैलेसीमिया एक तरह का रक्त विकार है, जो आनुवंशिक माना जाता है. इसे समझने से पहले हमें जानना चाहिए कि रक्त क्या है? इंसान का रक्त ब्लड सेल्स और प्लाज्मा से मिलकर बनता है. ब्लड सेल्स (Blood Cells) तीन तरह के होते हैं, पहला रेड ब्लड सेल (RBC), दूसरा व्हाइट ब्लड सेल (WBC), तीसरा प्लेट्लेट्स (Platelets), जबकि प्लाज्मा (Plasma) खून का तरल हिस्सा है. इसी तरल पदार्थ में ब्लड सेल्स तैरते हुए शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचते हैं. प्लाज्मा ही आंतों से अवशोषित पोषक तत्वों को भी शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाता है. यानी शरीर का हर अंग प्लाज्मा के जरिये ही अपना भोजन प्राप्त करता है.
कैसे होती है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया दो तरह के होते हैं, पहला माइनर थैलेसीमिया, दूसरा मेजर थैलेसीमिया, अब बच्चे में माइनर थैलेसीमिया होगा या मेजर थैलेसीमिया, यह माता-पिता के क्रोमोजोम पर निर्भर करता है. अगर मां या पिता दोनों में से किसी एक के शरीर में क्रोमोजोम खराब होते हैं, तो बच्चे में माइनर थैलेसीमिया की संभावना रहती है. लेकिन माता-पिता दोनों के क्रोमोजोम खराब होते हैं, तब मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनती है.
ऐसे में बच्चे में जन्म के तीन से 6 महीने के बाद खून बनना बंद हो सकता है, और तब बच्चे को हर 21 से 30 दिन के भीतर रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है, जबकि माइनर थैलेसीमिया वाले बच्चों में खून कभी भी सामान्य स्तर तक नहीं पहुंच पाता, यह हमेशा कम रहता है, लेकिन ये स्वस्थ जीवन जी लेते हैं.
कैसे सुरक्षित करें नवजात शिशु के जीवन को?
अगर माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो उन्हें चाहिए कि वे किसी गायनकोलॉजिस्ट से सलाह मशविरा बच्चा पैदा करने की योजना बनाएं. इसका एक तरीका यह भी है कि शादी से पूर्व लड़के और लड़की को अपने रक्त की जांच करवाकर सुनिश्चित करें कि दोनों ही माइनर थैलेसीमिया से पीड़ित ना हों. माता या पिता में से किसी एक को भी मेजर थैलेसीमिया है, तो गर्भधारण के चार महीने के अंदर भ्रूण की जांच कराई जा सकती है.