दुनिया में अलग-अलग जलवायु और पर्यावरण के हिसाब से कई अलग-अलग बीमारियां हैं. लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो दुनिया के सभी देशों में किसी न किसी तरह से मौजूद हैं. इनमें से कुछ वंशानुगत बीमारियां भी हैं, जो कई बार जानकारी के अभाव में एक से दूसरे में संक्रमित होती रहती हैं और कई बार मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं. उनमें से ही एक है थैलेसीमिया. थैलेसीमिया के बारे में लोगों को जागरूक करने, पीड़ितों को याद करने और बीमारी से जूझने वालों का मनोबल बढ़ाने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है.
थैलेसीमिया रक्त से जुड़ा एक आनुवंशिक रोग है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन अणु है जो ऑक्सीजन को वहन करता है. इस बीमारी में बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और कई बार समय पर रक्त न चढ़ने या उचित इलाज नहीं मिलने पर मृत्यु हो जाती है.
थैलेसीमिया दिवस मनाने का कारण
- बीमारी, इसके लक्षण और इसके साथ जीने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए.
- यदि व्यक्ति थैलेसीमिया से पीड़ित है, तो विवाह से पहले डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है.
- खून की जांच करवाए बिना ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही अपने डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए.
- बच्चों के स्वास्थ्य, समाज और पूरे विश्व में टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए.
- टीकाकरण के बारे में गलत धारणाओं का निवारण.
थैलेसेमिया के लक्षण
थैलेसेमिया एक वंशानुगत बीमारी है लेकिन कई बार बीटा थैलेसीमिया और अल्फा थैलेसीमिया से पीड़ित अधिकांश शिशुओं में 6 महीने की उम्र के लक्षण नहीं नजर आते हैं. क्योंकि नवजात शिशुओं में एक अलग प्रकार का हीमोग्लोबिन होता है, जिसे भ्रूण हीमोग्लोबिन के रूप में जाना जाता है और 6 महीने के बाद सामान्य हीमोग्लोबिन भ्रूण के प्रकार को बदलना शुरू कर देता है और लक्षण दिखाई देने लगते हैं: अनिद्रा और थकान,सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, ग्रोथ रुक जाना, सिरदर्द, पेट में सूजन, डार्क यूरिन, त्वचा का रंग पीला पड़ सकता है.
थैलेसीमिया के प्रकार
थैलेसीमिया दो तरह का होता है, माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया. थैलेसीमिया मेजर के रोगियों में गंभीर एनीमिया होता है, जिसे उपचार के लिए नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है.
माइनर का शिकार व्यक्ति सामान्य जीवन जीता है और उसे कभी इस बात का आभास तक नहीं होता कि उसके रक्त में कोई दोष है. हांलाकि आगे चल कर शादी करने के बाद उसके बच्चों में थैलेसीमिया मेजर रूप में भी आ सकता है. यह पुरुष और महिलओं दोनों में पाया जाता सकता है.
यह बीमारी भारत सहित यूरोप और एशिया के कई देशों में पायी जाती है. 2013 तक, लगभग 280 मिलियन लोगों में थैलेसीमिया पाया गया, जिसमें लगभग 439,000 गंभीर रूप से इस रोग से ग्रस्त थे. यह इटली, ग्रीक, मध्य पूर्वी, दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी मूल के लोगों में यह आम बीमारी है.
भारत में तथ्य और आंकड़े
भारत हर महीने 40 मिलियन थैलेसीमिया कैरियर और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर के साथ दुनिया में थैलेसीमिया की एक तरह से राजधानी है. देश भर में 1,00,000 से अधिक रोगियों की मृत्यु 20 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है. जबकि भारत में हर साल थैलेसीमिया से पीड़ित 10,000 बच्चे पैदा होते हैं. भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था.
थैलेसीमिया का इलाज रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है. कई बार दवाएं और सप्लीमेंट्स या बोन मैरौ ट्रांसप्लांट या सर्जरी की जरूरत पड़ती है. लेकिन ज्यादातर थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है. भारत में भी ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा है.
भारत में नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के अनुसार 2023 ब्लड बैंक हैं जो ब्लड डोनर से 78 प्रतिशत रक्त प्राप्त करते हैं. लेकिन कोरोना संकट के दौर में न सिर्फ ब्लड बैंक प्रभावित हुए बल्कि थैलेसीमिया के मरीजों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है. जिसके बाद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वायरस के संक्रमण से बचने के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रक्तदान शिविरों तक जाने की अनुमति दे दी है. इंडिया रेड क्रॉस सोसाइटी के निदेशक डॉ वंशी सिंह कहते हैं, "हमें लोगों को यह बताने की ज़रूरत है कि ब्लड डोनेशन से Covid19 का संक्रमण नहीं होता.