नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (आईएएनएस). एक शोध में पता चला है कि 50 वर्ष से कम आयु के लोगों में मोटापे के कारण पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा 20 प्रतिशत बढ़ सकता है. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के वेक्सनर मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि अधिकांश लोगों का मानना है कि पैंक्रियाटिक की बीमारी केवल बुजुर्गों को प्रभावित करती है और उनके जोखिम को कम करने के लिए वे कुछ नहीं कर सकते हैं.
विश्वविद्यालय की जोबेदा क्रूज-मोनसेरेट ने कहा, ''हालांकि पैंक्रियाटिक कैंसर की दर सालाना लगभग एक प्रतिशत बढ़ रही है और हम 40 की उम्र के लोगों में इस बीमारी को अधिक नियमित रूप से देख रहे हैं. यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है और इसके लिए शोध की आवश्यकता है ताकि पता लगाया जा सके कि ऐसा क्यों होता है.''
अध्ययन के लिए, टीम ने 4 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक अमेरिका में 1,004 उत्तरदाताओं के नमूनों के सर्वेक्षण किए, जिनसे पैंक्रियाटिक कैंसर (अग्नाशय के कैंसर) के जोखिम कारकों के बारे में पूछा गया था.
परिणामों से पता चला कि 50 वर्ष से कम आयु के आधे से अधिक (53 प्रतिशत) वयस्कों ने कहा कि वे बीमारी के शुरुआती संकेतों या लक्षणों को नहीं पहचान पाएंगे, और एक-तिहाई से अधिक (37 प्रतिशत) का मानना है कि पैंक्रियाटिक कैंसर के अपने जोखिम को बदलने के लिए वे कुछ नहीं कर सकते.
एक-तिहाई से ज्यादा (33 प्रतिशत) लोगों का मानना है कि सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों को ही यह जोखिम है. क्रूज-मोनसेरेट ने कहा कि अग्नाशय के कैंसर के जोखिम को कम करने की शुरुआत स्वस्थ वजन बनाए रखने से हो सकती है. सिर्फ मोटापा ही व्यक्ति के अग्नाशय के कैंसर के जोखिम को 20 प्रतिशत तक बढ़ा देता है.
दूसरी ओर, अमेरिकन कैंसर सोसायटी (एसीएस) का अनुमान है कि केवल 10 प्रतिशत अग्नाशय कैंसर आनुवंशिक जोखिम (परिवारों के माध्यम से पारित आनुवंशिक मार्कर) से जुड़े होते हैं, जिनमें बीआरसीए जीन, लिंच सिंड्रोम और अन्य शामिल हैं.
क्रूज-मोनसेरेट ने कहा, "आप अपने जीन नहीं बदल सकते, लेकिन आप अपनी जीवनशैली बदल सकते हैं. ज्यादातर लोगों के लिए मोटापा कम करना बेहद आसान काम है. यह व्यक्ति में टाइप 2 डायबिटीज, अन्य कैंसर और हृदय रोग के जोखिम को भी बढ़ाता है.''