Guru Ravidas Jayanti 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार संत रविदास जी का जन्म 1377 सीई में माघ मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था. इसीलिए इसी दिन गुरु रविदास की जयंती (Guru Ravidas Jayanti 2022) भी मनाई जाती है. पंजाब में इन्हें रविदास और शेष उत्तर भारत में इन्हें कवि रैदास के नाम से जाना जाता हैं. वे भक्तिकाल के श्रेष्ठ दार्शनिक, कवि और महान समाज सुधारक थे. उन्होंने सामाजिक सुधार और जाति व्यवस्था के पूर्वाग्रहों को खत्म करने की दिशा में आध्यात्मिक तरीके से काम किया, क्योंकि वे ईश्वर पर विश्वास करते थे. उन्होंने अनगिनत भजन लिखे. वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के संत थे, इसीलिए उनके भजन गुरुग्रंथ साहब से प्रेरित होते थे. रविदास जयंती उत्तर भारत के मुख्य प्रदेशों में बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है. इस साल उनकी जयंती 16 फरवरी को मनाई जायेगी. यह भी पढ़ें: Guru Ravidas Jayanti 2022 Wishes: गुरु रविदास जयंती पर ये हिंदी विशेज WhatsApp Status, GIF Images और HD Wallpapers के जरिए भेजकर दें बधाई
रविदास के संदर्भ में कुछ भ्रांतियां
रविदासजी के जन्म के संबंध में तमाम भ्रांतियां हैं. उनके संदर्भ में जो भी जानकारियां उपलब्ध हैं, अधिकांश प्रामाणिक नहीं हैं. कुछ जानकारों के अनुसार उनका जन्म 1377 सीई में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के गोवर्धनपुर नामक गांव में हुआ था. जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म 1482 से 1527 के मध्य हुआ था. पिता संतोखदास जूते बनाने के कार्य करते थे, और माँ कलसा देवी गृहिणी थीं. रविदास की पत्नी का नाम लोना देवी था. लोना देवी और रविदास की एक संतान भी थी, जिसका नाम विजय दास था. माना जाता है कि गुरु रविदास जी के कहने पर ही स्वामी रामानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया था, हांलाकि यह भी प्रमाणिक नहीं है.
बालपन से था आध्यात्म की ओर रुझान
रविदास जी का आध्यात्म में रुझान बचपन से होने लगा था. वे बचपन से बुद्धिमान, बहादुर, होनहार और भगवान के प्रति भक्ति रखने वाले थे. उनका ज्यादा समय भजन-कीर्तन में बीतता था. ज्यों-ज्यों वे बड़े होने लगे, आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक सहकार्यों में भी उनकी रुचि बढ़ने लगी. वे पाखंड के खिलाफ भी खुलकर आवाज उठाते थे.
धार्मिक होकर भी कुरीतियों एवं पाखंड के विरोधी थे!
संत रविदास 15वीं सदी के महान समाज सुधारक, दार्शनिक कवि और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के संत थे. उनके काव्यों में ईश्वर के प्रति आस्था, प्रेम और विश्वास स्पष्ट झलकता है. अपनी रचनाओं के माध्यम से वह ईश्वर से प्रेम के बारे में बताते थे और उनमें लिप्त रहने की सलाह भी देते थे. वहीं वे समाज की कुरीतियों एवं पाखंड की भी धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आते थे. मध्यकालीन कवियों के बीच उन्होंने ब्राह्मणवाद को खुली चुनौती देते हुए कहा था कि कोई भी इंसान जन्म नहीं बल्कि अपने कर्मों से पूज्यनीय बनता है.
मन चंगा तो कठौती में गंगा!
संत रविदास आध्यात्मिक होने के बावजूद धर्म से ऊपर कर्म को स्थान देते थे. एक बार गंगा स्नान के दिन वह दुकान पर चमड़े का जूता बना रहे थे. उनके एक शिष्य ने उनसे गंगा स्नान के लिए कहा, इस पर रविदास ने कहा कि मेरी भी बड़ी इच्छा कर रही है, गंगा स्नान की, किंतु मैंने अपने ग्राहक को वचन दिया है कि उसे उसका जूता आज ही बनाकर दे दूंगा. अगर मैं गंगा स्नान करने जाता हूं तो मेरा वचन भंग होगा, और अगर जबर्दस्ती जाता हूं तो मेरा मन यहां लगा रहेगा, ऐसे में मुझे पुण्य की प्राप्ति कैसे होगी. मेरा मानना है कि अपना मन जो काम करने के लिए अंतःकरण से तैयार हो, वही कार्य करना उचित है. अगर मेरा मन सच्चा है तो इस चमड़े की कठौती के जल से ही गंगाजल का पुण्य प्राप्त हो सकता है. इस संदर्भ में उनकी यह पंक्ति काफी लोकप्रिय है, कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'.