Ganesh Visarjan 2023: समय का चक्र रुकता नहीं है, फिर वह चाहे इंसान हो या भगवान. कल गणेश चतुर्थी पर हम अपने घरों एवं पंडालों में ढोल-ताशे के साथ गणपति बप्पा का स्वागत कर रहे थे, आज अश्रुओं के साथ उनकी पहली विदाई करेंगे. गणपति की प्रतिमा का यह पहला विसर्जन होगा. बता दें कि परंपराओं के अनुसार गणपति प्रतिमा की दूसरे दिन, तीसरे दिन अथवा पांचवें दिन बप्पा की मूर्तियों के विसर्जन का नियम है. गणेश जी का प्रतिमा का विसर्जन नदी, तालाब अथवा सरोवरों में किया जाता है. यहां हम जानेंगे कि गणेशजी की प्रतिमा का विसर्जन क्यों जरूरी है और उन्हें जल में ही क्यों विसर्जित किया जाता है, साथ जानेंगे विसर्जन से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों के बारे में... यह भी पढ़ें: हैप्पी गणेश चतुर्थी! भेजें ये WhatsApp Stickers, GIF Images, Photo SMS, HD Wallpapers और दें बधाई
गणेश-विसर्जन के नियम!
गणपति के विसर्जन से पूर्व उनकी विधि-विधान से पूजा करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें, दूर्वा, लाल पुष्प, रोली, सिंदूर, अक्षत, पान, सुपारी गुलाल, हल्दी, अबीर, मौली, कुमकुम, नारियल अर्पित करें, भोग में मोदक चढ़ाएं. यह मोदक विसर्जन तक उनके साथ रहता है. एक पाटे पर हल्का-सा गंगाजल छिड़कें, रोली से स्वास्तिक बनाएं. भगवान गणेश से हाथ जोड़कर पूजा आदि में जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए छमा याचना करें. अगले बरस पुनः आने की प्रार्थना करें. इसके बाद प्रतिमा को अपनी जगह से थोड़ा हिलाकर पाटले पर बिठाएं. पूरे रास्ते गणेश भक्तों को प्रसाद बांटे. प्रतिमा का विसर्जन, नदी, तालाब, सरोवर अथवा स्वच्छ टब या बाल्टी में करें. ध्यान रहे प्रतिमा पूरी तरह से पानी के भीतर होना चाहिए.
विसर्जन जल में क्यों किया जाता है?
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन जल में किया जाना चाहिए. इस संदर्भ में किंवदंती यह है कि एक बार वेदव्यास जी ने गणेश जी को गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत की कथा सुनानी शुरू की. गणेश जी पूरी महाभारत निरंतर लिखते जा रहे थे. व्यास जी ने पूरे दस दिन तक महाभारत की कथा सुनाते रहे, इस दरम्यान उन्होंने आंखे भी बंद कर ली थी. लेकिन गणेश जी का लिखना रुका नहीं. दसवें दिन कथा समाप्त होने पर जब व्यास जी ने आंखें खोली, तो देखा गणेशजी का बदन बुखार से तप रहा था. तब व्यास जी ने गणेश जी को एक सरोवर में डुबकी लगाई और देर तक पानी में रखा, जिससे गणेश जी का बुखार उतर गया. इसके बाद गणेश चतुर्थी को गणेश जी की स्थापना के बाद विसर्जन के समय उन्हें जल में विसर्जित करने की परंपरा आज भी जारी है.
क्यों जरूरी है विसर्जन?
गणेश विसर्जन एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है. इसके पीछे एक संदेश यह है कि इस दुनिया में कुछ भी चिरायु नहीं है. कोई भी चीज उत्पन्न होती है, तो उसे जल अथवा जमीन में समाना ही होता है. इसलिए जीवन चक्र की नियति के अनुसार गणेशजी का विसर्जन जरूरी होता है. इसकी मुख्य वजह है पर्यावरण. श्रावण और भाद्रपद मास में बरसाती मौसम के कारण जगह-जगह जलभराव हो जाता है, इसमें प्रतिमा विसर्जित होने से यह पानी शुद्ध हो जाता है, क्योंकि ये प्रतिमा चिकनी मिट्टी की बनी होती है, जो आसानी से पानी में घुल जाता है.