Vaikuntha Chaturdashi 2019: वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2019) एक हिंदू त्यौहार है, जो कार्तिक मास की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस दिन लोग भगवान विष्णु और शिव की पूजा करते हैं. वाराणसी, ऋषिकेश, महाराष्ट्र और गया में दोनों देवताओं की अलग-अलग या एक साथ पूजा की जाती है. महाराष्ट्र के लोगों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी मां जीजाबाई द्वारा इसके पालन के लिए रीति-रिवाजों को निर्धारित किया गया था. वैकुंठ चतुर्दशी आज 11 नवंबर 2019 से 12 नवंबर देव दीपावली तक मनाया जाएगा.
शिव पुराण के अनुसार भगवान विष्णु कार्तिक चतुर्दशी पर भगवान शिव की पूजा करने के लिए वाराणसी गए थे. भगवान विष्णु ने एक हजार कमलों के साथ भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया, लेकिन उन फूलों में एक फूल गायब था, हजार फूलों को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी एक आंख निकालकर शिव को चढ़ा दी, क्योंकि उनकी आंख की तुलना कमल से की जाती है और उन्हें कमलनयन भी कहा जाता है. भगवान विष्णु की इस भक्ति ने शिव को इतना प्रसन्न कर दिया कि उन्होंने न सिर्फ उनकी आंख ठीक कर दी बल्कि भगवान विष्णु को सबसे शक्तिशाली और पवित्र हथियारों में से एक सुदर्शन चक्र का उपहार दिया. वैकुंठ चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के रूप में भी मनाया जाना जाता है, इस दिन भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल के फूल अर्पित करते हैं.
वैकुंठ चतुर्दशी 2019 तिथि
11 नवंबर
वैकुंठ चतुर्दशी तिथि और पूजा विधि:
वैकुंठ चतुर्दशी निशीतककाल - 11 नवंबर प्रातः 11: 05 से सुबह 12: 4 तक,
अवधि -12 घंटे 51 मिनट
देव दीपावली मंगलवार, 12 नवंबर, 2019
चतुर्दशी तिथि आरंभ - 10 नवंबर शाम 04:33 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - 11 नवंबर 2019, संध्या 06:02 बजे
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा वैकुंठ चतुर्दशी के दिन की जाती है, इस दिन दोनों की दो अलग-अलग समय पर पूजा करते हैं. भगवान विष्णु के भक्त निशिथ को पसंद करते हैं जो मध्यरात्रि है, जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदय में पूजा करते हैं, जिसे भोर कहते हैं. शिव के भक्त कार्तिक चतुर्दशी पर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदय के दौरान सुबह स्नान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु शिव को तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं और भगवान शिव इस दिन भगवान विष्णु को बेल के पत्ते चढ़ाते हैं.