Vaikunth Chaturdashi 2019: कब है वैकुंठ चतुर्दशी? इस दिन भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा का है विधान, जानें शुभ मुहूर्त और इसका महत्व
भगवान विष्णु और भगवान शिव (Photo Credits: wikimedia commons/ Facebook)

Vaikunth Chaturdashi 2019: हिंदू धर्म में कार्तिक महीने (Kartik Month) का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है. इस महीने को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का प्रिय मास माना जाता है. मान्यता है कि इस महीने तुलसी पूजन (Tulsi Pujan), दीप दान, गंगा स्नान, दान-पुण्य जैसे कर्म करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उस पर लक्ष्मी-नारायण की कृपा होती है. कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि (Chaturdashi Tithi) को वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikunth Chaturdashi) के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रत रखने के साथ ही भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) और भगवान शिव (Bhagwan Shiv) की पूजा का विधान है.

इस साल वैकुंठ चतुर्दशी की पावन तिथि 10 नवंबर को पड़ रही है. इस दिन मध्य रात्रि में पूजा का विधान है. मान्यता है कि जो भी मनुष्य वैकुंठ चतुर्दशी को शिव और नारायण की पूजा करता है उसके सारे पाप कट जाते हैं. चलिए विस्तार से जानते हैं कि वैकुंठ चतुर्दशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि.

शुभ मुहूर्त-

वैकुंठ चतुर्दशी तिथि- 10 नवंबर 2019 (रविवार)

चतुर्दशी तिथि प्रारंभ- 10 नवंबर 2019 को शाम 04.33 बजे से,

चतुर्दशी तिथि समाप्त- 11 नवंबर 2019 को शाम 06.02 बजे तक.

पूजा विधि-

वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का विधान है, इसलिए इस दिन भगवान विष्णु का दूध, दही, मिश्री इत्यादि से अभिषेक करते हुए षोडशोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए. धूप-दीप, श्वेत कमल, चंदन, पीले पुष्प, फल और मिठाई से उनकी विधिवत पूजा करें और आखिर में आरती करें. इस दिन श्रीमद्भगवत गीता और श्रीसुक्त का पाठ करना चाहिए.

भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के बाद भगवान शिव जी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. उन्हें प्रसन्न करने के लिए गाय के दूध या गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें. फिर पुष्प, बेलपत्र, धूप, दीप, चंदन इत्यादि से षोडशोपचार पूजन करें. इसके बाद ओम् नम: शिवाय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए. यह भी पढ़ें: Kartik Purnima 2019: कार्तिक पूर्णिमा कब है? इस दिन गंगा स्नान और दीपदान से नष्ट होते हैं सारे पाप, जानें इसका महत्व

क्या है इसका महत्व?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने काशी (बनारस) में भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प अर्पित करने का संकल्प लिया. भगवान शिव ने श्रीहरि की परीक्षा लेने के लिए उन फूलों में से एक फूल कम कर दिया. एक पुष्प कम होने पर अपनी इस परीक्षा में सफल होने के लिए भगवान विष्णु ने कमल के समान सुंदर अपने नयन को शिवजी को अर्पित करने का निर्णय लिया, वे अपने कमल नयन को अर्पित करने वाले ही थे कि भगवान शिव प्रकट हो गए और उनकी इस भक्ति को देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने श्रीहरि को कहा कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि वैकुंठ चौदस के नाम से जानी जाएगी. उन्होंने कहा कि इस दिन जो भी मनुष्य व्रत करके आपका पूजन करेगा, उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी.

एक अन्य मान्यता के अनुसार, वैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध करवाया था, इसिलए इस दिन श्राद्ध और तर्पण कार्य का भी विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और शिवजी की विधि-विधान से पूजा करने पर मनुष्यों के पाप कटते हैं और उन्हें मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.