ज्योतिष शास्त्र में सभी नौ ग्रहों में शनि का विशेष महत्व वर्णित है. हिंदू धर्म शास्त्रों में शनि को कर्मदाता बताया गया है. वह अच्छे कर्मों का अच्छा पुण्य-फल देते हैं और बुरे कर्मों की कड़ी सजा देते हैं. पौराणिक कथाओं में भी बताया गया है कि शनि की जिस पर कृपा बरसती है, वह रंक से राजा तक बन सकता है, लेकिन जिस पर शनि की टेढ़ी दृष्टि होती है, उसे बुरे फल भुगतने पड़ते हैं. इसलिए हर कोई शनि को प्रसन्न रखने के तरह-तरह के प्रयास करता है. इस वर्ष वैशाख अमावस्या (20 अप्रैल 2023) के दिन शनि जयंती मनाई जायेगी. शनि जयंती के इस अवसर पर आइये जाने इस दिवस का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि इत्यादि.. यह भी पढ़ें: Akshaya Tritiya 2023: कंगाली से बचना है तो जान लें अक्षय तृतीया के दिन क्या करना है और क्या नहीं!
शनि जयंती का महात्म्य
सूर्य-पुत्र शनि देव के संदर्भ में मान्यता है कि शनि जयंती के दिन भगवान शनि की पूजा करने वालों पर शनि मेहरबान रहते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव की विधि-विधान के साथ पूजा एवं अनुष्ठान करने से जीवन के सारे कष्ट और पाप मिट जाते हैं. शनि जयंती के दिन शनि देव का वैदिक मंत्र जाप, पूजा-पाठ, गरीबों एवं असहाय व्यक्ति को दान अथवा मदद करने से शनि की महादशा, शनि की साढ़े साती, अथवा अढैय्या आदि से राहत मिलती है. इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार एक या ज्यादा से ज्यादा लोगों को भोजन कराने से अक्षुण्य फल प्राप्त होता है.
साल में दो बार शनि जयंती क्यों मनाई जाती है?
विभिन्न कारणों से साल में दो बार शनि जयंती मनाई जाती है. उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या (19 मई 2023) के दिन और दक्षिण भारत में बैसाख माह (20 अप्रैल 2023) की अमावस्या के दिन शनि देव का जन्मोत्सव मनाया जायेगा. इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार बहुत सारे जातक इस दिन अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनका पिण्डदान आदि कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
बैसाख शनि जयंती का मुहूर्त!
वैशाख अमावस्या प्रारंभ: 11.23 A.M. (19 अप्रैल 2023) से
वैशाख अमावस्या समाप्त: 09.41 P.M. (20 अप्रैल 2023) तक
उदयाकाल के अनुसार 20 अप्रैल को शनि जयंती मनाई जायेगी. इस बार 20 अप्रैल को सूर्य ग्रहण भी लग रहा है. लेकिन यह ग्रहण भारत में नजर नहीं आयेगा, इसलिए सूतक के कोई नियम लागू नहीं होंगे, ना ही पूजा-पाठ प्रभावित होंगे.
इस विधि से करें पूजा-अनुष्ठान
वैशाख अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें. भगवान सूर्य को जल अर्पित करें. अब करीब स्थित किसी शनि मंदिर जायें और भगवान शनि की प्रतिमा के समक्ष सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें. अब सरसों का तेल, पुष्प, एवं प्रसाद अर्पित करें. इस दिन शनि देव को काली उड़द की दाल एवं काला तिल अर्पित करने से भगवान शनि प्रसन्न होते हैं. निम्न मंत्र का जाप करें.
ॐ शमग्निभि: करच्छन: स्थापंत सूर्य शाम्वतोवा त्वरपा अपसनिधा:
इसके पश्चात शनि चालीसा पढ़ें और पूजा का समापन शनि देव की आरती से करें. पूजा के पश्चात तिल, तेल एवं काली उड़द का दान करें और हो सके तो किसी गरीब को भोजन भी करायें.