Pitru Paksha 2025: गया में पितृ-पक्ष के दरम्यान श्राद्ध का क्या और क्यों महत्व है? जानें कुछ ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व!
पितृ पक्ष 2025 (Photo Credits: File Image)

Pitru Paksha 2025: सनातन धर्म में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के दौरान हरिद्वार, गया जी, प्रयागराज और वाराणसी में श्राद्ध एवं तिल-तर्पण आदि कर्म किये जाते हैं, लेकिन मान्यताएं यही कहती हैं कि श्राद्ध कर्म के लिए गया जी का विशेष महत्व है. क्योंकि यहां एक बार श्राद्ध कर्म करने से पितरों की पांच पीढ़ियां तर जाती हैं, और उन्हें मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त होता है. पितृ पक्ष के दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों का 'पिंडदान' और 'श्राद्ध कर्म' करने गया जी पहुंचते हैं. अब जबकि 8 अगस्त 2025, सोमवार से पितृ पक्ष का पर्व शुरू हो रहा है, आइये जानें गया जी में श्राद्ध आदि कर्म करने के क्या लाभ है, और कैसे करते हैं सारी प्रक्रिया… यह भी पढ़ें: Shraddh Paksh 2025: क्यों मनाया जाता है, पितृपक्ष? जानें श्राद्ध पक्ष का महत्व एवं 15 दिवसीय शेड्यूल!

गया जी में श्राद्ध का विशेष महत्व क्यों है?

पौराणिक मान्यता:  श्राद्ध कर्म के लिए गया जी का उल्लेख तमाम पुराणों मसलन गरुण पुराण, विष्णु पुराण और वायु पुराण आदि में प्रमुखता से मिलता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहां के पवित्र स्थल पर अपने पैरों के निशान छोड़े थे, जिसे वर्तमान में विष्णुपद मंदिर के नाम से जाना जाता है. गया जी को मुक्ति का प्रतीक माना जाता है.

पितरों को मोक्ष की प्राप्ति: हिंदू मान्यताओं के अनुसार गया में श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों (पूर्वजों) को पूर्ण मोक्ष (मुक्ति) मिलता है, इस कारण से वे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है, गया जी में श्राद्ध करने से मृत्यु के पश्चात भटकती आत्माओं को शांति मिलती है. वे प्रसन्न होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं.

भगवान राम का गया से से संबंध: एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने पिता का पिंडदान आदि कर्म गया जी में ही किया था, इसलिए भी श्राद्ध आदि के लिए गया जी को अत्यंत पुण्यदायी और प्रभावशाली स्थान माना जाता है.

पितृपक्ष मेला: प्रत्येक वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष (सितंबर–अक्टूबर) के दौरान पितृपक्ष के अवसर पर लाखों श्रद्धालु गया जी आते हैं, और अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं. यहां भव्य मेला लगता है. इस दौरान स्थानीय पुरोहितों के सहयोग से वे विशिष्ट विधियों से पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण-भोज आदि करवाते हैं.

88 वेदियों पर पिंडदान: गया जी में 88 से अधिक स्थान (यानी वेदियां) हैं, जहां अलग-अलग पिंडदान किये जाते है, जैसे, फल्गु नदी, अक्षयवट, विष्णुपद मंदिर इत्यादि.

अक्षय फल: गया जी के पवित्र स्थानों में कुछ प्रमुख स्थान हैं, मसलन धर्म पृष्ठ, ब्रह्म सप्त, गया शीर्ष, और अक्षयवट के पास पितरों का तर्पण करने से उन्हें अक्षय फल प्राप्त होता है, और पितृ दोष खत्म होते हैं.

सात पीढ़ियों का उद्धार: पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने से कुल 108 कुलों और सात पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है. उनकी आत्मा को शांति मिलती है.

पांडव द्वारा किया गया श्राद्ध: महाभारत काल में भी पांडवों ने इसी स्थान पर अपने कुल पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किया गया था.

गयासुर का वरदान: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा था कि जो भी लोग यहां किसी का तर्पण करने की इच्छा से पिंडदान करते हैं, उन्हें पूर्ण मुक्ति मिले.