Navratri 2019: शारदीय नवरात्रि में इस मुहूर्त पर करें घट स्थापना, जानें कब करें किस शक्ति की पूजा और व्रत के दौरान रखें किन बातों का ख्याल
नवरात्रि 2019 कलश स्थापना (Photo Credits: File Image)

Navratri 2019 Kalash Sthapana: ‘या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते’ अर्थात हे देवी माँ सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप तुम्हीं व्याप्त हो’. नौ दुर्गा की पूजा और व्रत रखने वाले इस बात का ध्यान रखें कि नवरात्रि (Navratri) को नौ दिनों तक माँ दुर्गा (Maa Durga) की आराधना इस श्लोक के साथ ही शुरू होती है.

सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व साल में दो बार, बसंत ऋतु (चैत्र माह) और शरद ऋतु (अश्विन माह) में मनाया जाता है. बसंत ऋतु की नवरात्रि को चैत्रीय नवरात्रि और आश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि (Sharad Navratri) कहते हैं. नवरात्रि का सामान्य अर्थ होता है यानी 9 रात्रियों की विशेष अवधि वाला पर्व. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से नवरात्रि के प्रयोजन एवं उद्देश्य के बारे में भगवान शिव ने माता पार्वती को बताते हुए कहा था, ‘हमारी चेतना के अंदर तीन गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण व्याप्त हैं. प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते हैं. इन 9 दिनों में पहले 3 दिन तमोगुणी, दूसरे 3 दिन रजोगुणी और आखिरी 3 दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं.’

शुभ मुहूर्त में करें घट स्थापना

घट स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए, तभी उचित फल की प्राप्ति होती है. इस बार हिंदी पंचांग के अनुसार घट स्थापना का शुभ मुहूर्त अश्विन शुक्लपक्ष 1 को प्रातः 6 बजकर 12 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक है. इसी शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करना चाहिए. यह भी पढ़ें: Navratri 2019: शारदीय नवरात्रि पर घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, शुभ या अशुभ जानिए कैसा होगा इसका प्रभाव

ऐसे करें कलश स्थापना 

जिस स्थान पर घट स्थापना करनी है, वहां की भूमि अच्छी तरह साफ कर लें. वहां पीली एवं स्वच्छ मिट्टी की परत इस तरह बिछाएं कि कलश को बीचो-बीच स्थापित किया जा सके. अब कलश को मिट्टी के बीचो बीच जमाकर रखें और इसके चारों तरफ फैली मिट्टी में हलका सा जल का छिड़काव कर उसमें जौ छिड़क दें. जौ छिड़कने के पश्चात ऊपर से भुरभुरी मिट्टी छिड़क कर पुनः जल से छिड़काव करें. अब कलश पर स्वास्तिक बनाएं, उसे चारों से मौली बांधें. कलश में थोड़ा सा गंगा जल डालने पश्चात उसे शुद्ध जल से ऊपर तक भर दें. कलश में सुपारी, फूल, दूर्वा, इत्र और सिक्का रखें. अब कलश के चारों तरफ इस तरह से आम का पत्ता लगाएं कि उसके ऊपर दीये का ढक्कन रखने से पत्ते का आधा से ज्यादा हिस्सा बाहर नजर आये. ढक्कन में अक्षत अर्थात चावल भरें. अब पानी युक्त जटा वाले नारियल को लाल रंग के कपड़े से लपेट कर नारियल को कलश पर इस तरह से रखें कि उसका मुंह आपकी तरफ हो. नारियल का मुंह ऊपर होने से घर में रोग बढ़ता है, तथा नीचे की तरफ होने से शत्रु बढ़ते हैं. पूर्व की ओर रखने से धन हानि होती है. यहां नारियल के मुंह से आशय नारियल का वह हिस्सा जो पेड़ से जुड़ा होता है. अब कलश को बीचो बीच में रखते हुए सभी देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि हे समस्त देवी-देवता आप सभी नौ दिनों के लिए कृपया कलश में विराजमान हों.

पूजन विधि

कलश पर रोली का टीका करें, फूल और अक्षत चढाते हुए फूलों का हार पहनाएं. इसके पश्चात इत्र, नैवेद्य, फल मिठाई आदि चढ़ाएं. प्रत्येक दिन शक्ति की पूजा की शुरूआत में दुर्गा सप्तशती का पाठ दुर्गास्तुति करें. स्तुति के बाद दुर्गा मां की आरती कर प्रसाद वितरित करें. इसके बाद फलाहार ग्रहण करें. प्रतिपदा के दिन जो जौ बोए गये थे, नवमी तक इनमें से पौधे विकसित हो जाते हैं. नवमी के दिन इन जौ के पौधों का किसी नदी या तालाब में विसर्जन कर देना चाहिए. अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं. इन दोनों दिनों पारायण के बाद हवन अवश्य करें फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराएं. यह भी पढ़ें: Navratri 2019 Colours List: शारदीय नवरात्रि के 9 दिन पहने इन रंगों के कपड़े, मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की करें आराधना

प्रथमा से नवमी तक इन देवियों का क्रमानुसार करें पूजन

नवरात्रि के प्रथम दिन 29 सितंबर को घट स्थापना (कलश स्थापना) के साथ ही नवरात्रि के व्रत-पूजन शुरू हो जाएंगे. इन 9 दिनों में माता के 9 स्वरुपों की पूजा-अर्चना की जाएगी. घट स्थापना के दिन श्री शैलपुत्री की पूजा करें. द्वितीया के दिन श्री ब्रह्मचारिणी, तृतीया को श्री चंद्रघंटा, चतुर्थी को श्री कुष्मांडा माता, पंचमी को स्कंदमाता, षष्ठी को श्री कात्यायिनी, सप्तमी को श्री कालरात्रि, अष्टमी को श्री महागौरी की तथा नवमी के दिन श्रीसिद्धिदात्री की पूजा का विधान है. इसी दिन आयुध पूजा भी की जाती है. लेकिन अगर आप आयुध पूजा के विधि-विधान से अपरिचित हैं तो किसी पुरोहित से ही आयुध पूजा करवाएं. दशमी यानी 8 अक्टूबर को विजयादशमी का पर्व होगा.

व्रती इन बातों का रखे ध्यान

व्रतियों को पूरे नौ दिनों तक जमीन पर सोना चाहिए. ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पूरे नौ दिनों तक फलाहार ही करना चाहिए. व्रत रखने वाले को संकल्प लेना चाहिए कि वह हमेशा क्षमा, दया व उदारता का भाव रखेगा. इन नौं दिनों तक व्रती को क्रोध, मोह, लोभ आदि दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना होगा. देवी का आह्वान, पूजन, विसर्जन, पाठ आदि सभी कुछ प्रात:काल में ही शुभ होते हैं, अत: इन्हें इसी दौरान पूरा करना चाहिए. यदि घटस्थापना करने के बाद सूतक हो जाए, तो कोई दोष नहीं होता, लेकिन अगर पहले हो जाए, तो पूजा करना वर्जित हो जाता है.