Narad Jayanti 2020: जानें पिता ब्रह्मा ने क्यों दिया था नारद मुनि को शाप! जाने कैसे करें पूजा-अर्चना?
आज है नारद जयंती (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Narad Jayanti 2020: पौराणिक कथाओं के अनुसार वैशाख कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन नारद मुनि का जन्म हुआ था. महर्षि नारद देवताओं के संदेशवाहक और त्रैलोक के खबरी के रूप में भी जाने जाते हैं. इसीलिए बहुत-सी जगहों पर नारद जयंती के दिन ही 'पत्रकार दिवस' भी सेलीब्रेट किया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष (2020 में) दिनांक 8 मई को संपूर्ण भारत में नारद जयंती मनाई जायेगी.

नारद मुनि का स्वरूप

'नारद मुनि' शब्द सुनते ही हमारे मस्तिष्क पर एक ऐसे पीतांबरधारी ब्राह्मण की तस्वीर उभरती है, जिनके सिर पर शिखा, एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में करतार और मुंह से 'नारायण नारायण' के स्वर उभरते हैं. यूं तो महर्षि नारद का सभी देवी-देवता मान-सम्मान करते हैं, लेकिन स्वयं नारद मुनि भगवान श्रीहरि को ही अपना आराध्य देव मानते हैं, और हमेशा उन्हीं का ध्यान करते हैं. श्रीहरि और माता लक्ष्मी भी उनसे उतना ही स्नेह करते हैं.

कैसे करें पूजा-अर्चना

सूर्योदय से पूर्व स्नान-दान कर व्रत का संकल्प करें. साफ-सुथरा अथवा नवीन वस्त्र धारण कर मंदिर में पूजा-अर्चना करें. नारद मुनि की प्रतिमा अथवा तस्वीर पर चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फल-फूल अर्पित करें.

शाम को दुबारा पूजा करने के बाद श्रीहरि की आरती उतारें. इस दिन दान-पुण्य का भी विधान है. ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र एवं मुद्रा दान करें.

नारद मुनि के जन्म की पौराणिक कथा

नारद मुनि को भगवान ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि नारद जी ने ब्रह्मा जी का मानस पुत्र बनने के लिए उन्होंने पूर्व जन्मों में कड़ी तपस्या की थी. मान्यता है कि पूर्व जन्म में नारद गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और और उन्हें अपने रूप पर बहुत घमंड हो गया था. उस समय उनका नाम उपबर्हण था. एक दिन कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत-नृत्य करते हुए ब्रह्मा जी की उपासना-अर्चना कर रहे थे. तभी उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां पहुंचे.

उन्हें इस रूप में देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उपबर्हण को श्राप दे दिया कि वह ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेगा. ब्रह्मा जी के शाप से अगले जन्म में उपबर्हण ने शूद्र दासी के पुत्र के रूप में जन्म लिया. बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर-भक्ति में लगाने का संकल्प लिया और ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई. बालक के लगातार तप के बाद एक दिन उसने आकाशवाणी सुनी कि इस जन्म में उसे ईश्वर के दर्शन नहीं हो सकते, लेकिन अगले जन्म में उसे ईश्वर का पार्षद बनकर उनका सामीप्य हासिल कर पाएगा.