Mahaparinirvan Diwas 2023: प्रत्येक वर्ष 6 दिसंबर को पूरे देश में संविधान के जनक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि बड़ी शिद्दत के साथ मनाई जाती हैं. इसी दिन महापरिनिर्वाण दिवस भी मनाया जाता है. आखिर 6 दिसंबर को डाक्टर भीमराव आंबेडकर के निधन के दिन ही महापरिनिर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है? इन दोनों अवसरों का 6 दिसंबर से क्या संबंध है? और इनका क्या महत्व है? आइये जानते हैं विस्तार से..यह भी पढ़ें: 59th Years of BSF 2023: देश की सुरक्षा सुनिश्चित करनेवाली विश्व की सबसे बड़ी ताकत बीएसएफ! जानें इसकी हैरतअंगेज कहानी!
क्या है महापरिनिर्वाण?
परिनिर्वाण का हिंदी में शाब्दिक अर्थ है मृत्यु के पश्चात निर्वाण. वस्तुत: महापरिनिर्वाण बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों एवं लक्ष्यों में से एक है. गौरतलब है कि अपने निधन से पूर्व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म में स्वीकार कर लिया था, इस कारण से भीमराव आंबेडकर का अंतिम संस्कार भी बौद्ध धर्म की विधि से हुआ था. बौद्ध धर्म के कई सिद्धांतों एवं लक्ष्यों में से एक परिनिर्वाण दिवस, इसके मुताबिक जो व्यक्ति निर्वाण करता है, वह दुनिया भर के सांसारिक मोह, माया, इच्छा, जीवन की पीड़ा से मुक्त रहता है, तथा जीवन चक्र से भी मुक्त रहता है. आम व्यक्ति के लिए निर्वाण को हासिल करना आसान नहीं है, इसे हासिल करने के लिए सदाचारी एवं धर्म सम्मत जीवन व्यतीत करना पड़ता है. बौद्ध धर्म में 80 साल के भगवान बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वाण कहा जाता है.
महापरिनिर्वाण दिवस सेलिब्रेशन !
भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष एवं संविधान के रचयिता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि 6 दिसंबर को मनाई जाती है. महापरिनिर्वाण दिवस के दिन श्रद्धालु भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर फूल चढ़ाते हैं और दीपक अथवा मोमबत्तियां जलाकर उन्हें याद करते हैं, इसके पश्चात उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. इस दिन बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने मुंबई में लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं. इस दिन बौद्ध भिक्षुओं समेत कई लोग पवित्र गीत गाकर बाबासाहेब के नाम की जय जयकारा लगाते हैं इस तरह मुंबई के साथ- साथ पूरे भारत में 6 दिसंबर को महा परिनिर्वाण मनाया जाता है.
अंबेडकर की पुण्य-तिथि पर महापरिनिर्वाण दिवस क्यों मनाते हैं ?
गरीब एवं दलित वर्ग की स्थिति और जीवन में सुधार लाने में भीमराव अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उन्होंने समाज सेवा सहित रूढ़िवादी प्रथाओं को समाप्त करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि उनके बौद्ध गुरु डॉक्टर भीमराव अंबेडकर एक सदाचारी थे, भीमराव अंबेडकर के अनुयायियों के मुताबिक डॉ भीमराव भी अपने कार्यों से निर्वाण प्राप्त कर चुके थे, इसलिए उनकी पुण्य-तिथि के अवसर को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है. गौरतलब है, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कई सालों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन कर 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपनाया था. मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियम के मुताबिक हुआ था. मुंबई के दादर चौपाटी में जिस जगह डॉक्टर अंबेडकर का अंतिम संस्कार किया गया था, चैत्यभूमि के नाम से जाना जाता है. आज के दिन यहां बाबासाहेब आंबेडकर के लाखों श्रद्धालुओं का मेला लगता है.