Kabir Das Jayanti 2022 Quotes: आज यानी 14 जून 2022 को देशभर में संत कबीर दास जी की जयंती (Kabir Das Jayanti) मनाई जा रही है, जबकि हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (Jyestha Purnima) तिथि को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है. प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक, उनका जन्म काशी के समकक्ष लहरतारा ताल में सन 1398 में हुआ था. उनके जन्म को लेकर कुछ मतभेद मिलते हैं, कुछ विद्वानों का मानना है कि रामानंद गुरु के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उनका जन्म हुआ था, लेकिन लोक-लाज के डर से ब्राह्मणी ने कबीर दास को काशी के लहरतारा तालाब में छोड़ दिया था. जब दो राहगीर नीमा और नीरू विवाह करके बनारस जा रहे थे और विश्राम करने के लिए इस तालाब के पास रूके तो उन्हें कबीर दास जी (Sant Kabir Das) कमल के फूल में लिपटे हुए मिले थे. इस दंपत्ति ने उनकी परवरिश अपने पुत्र की तरह की. वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर दास जी जन्म से मुस्लिम थे और उन्हें गुरु रामानंद से राम नाम का ज्ञान प्राप्त हुआ था.
कबीर दास जी एक ऐसे संत थे, जिन्होंने अपने दोहों और विचारों के माध्यम से मध्यकालीन भारत के जनमानस को प्रभावित किया था. इतना ही नहीं उन्होंने तत्कालीन समाज में फैले अंधविश्वास, रुढ़िवाद और पाखंड का घोर विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा. ऐसे में संत कबीर दास जी की जयंती के इस पावन अवसर पर आप इन शानदार दोहों, कोट्स, वॉट्सऐप मैसेजेस, फेसबुक विशेज और जीआईएफ ग्रीटिंग्स के जरिए अपनों को कबीर जयंती की हार्दिक बधाई दे सकते हैं.
1- माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥
कबीर दास जयंती की बधाई
2- माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
कबीर दास जयंती की बधाई
3- दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥
कबीर दास जयंती की बधाई
4- बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
कबीर दास जयंती की बधाई
5- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
कबीर दास जयंती की बधाई
कहा जाता है कि हर धर्म के लोग कबीर दास जी को मानते थे, इसलिए जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष में विवाद होने लगा था. इस विवाद के बीच जब शव से चादर हटाई गई तो वहां केवल फूल ही मिले, जिसे दोनों समुदाय के लोगों ने आपस में बांट लिया और अपने-अपने धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया. संत कबीर दास जी के दोहे आज भी हमारे जीवन को प्रेरणा देकर सही मार्ग दिखाने का प्रयास करते हैं.