International Day of Innocent Children Victims of Aggression: आक्रामकता का शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस, जो बच्चों के अधिकारों और संरक्षण की करता है बात
मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (Photo Credits: Pixabay)

International Day of Innocent Children Victims of Aggression: हमारे आस-पास कई बार बहुत कुछ हमारे सामने होता है, लेकिन फिर भी हम उससे अनजान होते हैं. दिखने में छोटी लगने वाली कोई बात या परेशानी असल में अंदर से बहुत बड़ी हो सकती है. बच्चों के साथ भी कई बार ऐसा होता है. उनके साथ कभी अनजाने में तो कभी जानबूझ कर ऐसी घटनाएं होती हैं, जो उनको शारीरिक मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करती हैं. इन्ही पीड़ा को ध्यान में रखते हुए हर साल 4 जून को आक्रामकता के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस उन बच्चों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है जो पीड़ित हैं, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण का शिकार हैं.

मनाए जाने की वजह

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 को प्रतिवर्ष 4 जून को इस दिवस के रूप में घोषित किया था. इस दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य दुनिया भर में उन बच्चों की पीड़ा को स्वीकार करने के लिए विस्तारित हुआ जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं. यह संघर्ष की स्थितियों में बच्चों की सुरक्षा में सुधार के प्रयासों में एक ऐतिहासिक कदम था.

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बच्चों को सभी तरह की हिंसा से बचाने के लिए कड़े करने होंगे नियम

इसी के तहत 1997 में महासभा ने बाल अधिकारों पर 51/77 के प्रस्ताव को अपनाया. जिसमें बाल अधिकार और उसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल के सम्मेलन और बाल संकल्पों के वार्षिक अधिकार शामिल हैं. हाल के वर्षों में, कई संघर्ष क्षेत्रों में, बच्चों के खिलाफ हिंसा की संख्या में बढ़ी है. संघर्ष से प्रभावित देशों और क्षेत्रों में रहने वाले 250 मिलियन बच्चों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. हिंसक चरमपंथियों द्वारा बच्चों को निशाना बनाने से बचाने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय और मानव अधिकार कानून को बढ़ावा देने के लिए, बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास किया जाना चाहिए.

बच्चों के खिलाफ हिंसा

> दुनिया भर में 1 बिलियन से अधिक बच्चों को प्रभावित करती है .

> दुनिया के 50% बच्चे हर साल हिंसा का अनुभव करते हैं.

> हर 5 मिनट में, दुनिया में कहीं न कहीं एक बच्चे की मौत हिंसा से होती है

>18 वर्ष की आयु से पहले 10 में से एक बच्चे का यौन शोषण किया जाता है.

> कोई भी बच्चा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हो सकता है.

>दुनिया भर में 246 मिलियन बच्चे हर साल स्कूल-संबंधित हिंसा से प्रभावित होते हैं.

> हर तीन में से एक छात्र को उसके साथियों द्वारा धमकाया जाता है, और 10 में से कम से कम 1 बच्चा साइबरबुलिंग का शिकार होता है. (संयुक्त राष्ट्र, 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार)

>10 में से 9 बच्चे ऐसे देशों में रहते हैं जहां शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है, 732 मिलियन बच्चों को कानूनी संरक्षण के बिना छोड़ दिया गया है.

भारत में बाल संरक्षण के कड़े नियम

भारत में भी पिछले कुछ सालों में बाल हिंसा को रोकने के लिए कई कानून में बदलाव किए गए हैं. प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट – पोक्सो एक्ट लागू किया गया. इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. इसके अलावा बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरूकता और क्षमता निर्माण के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये कहा गया है. बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा को भी परिभाषित किया गया है. ऐसे मामलों में बच्चों को हर स्तर पर क्या जरूरी सहायता देनी है ये भी विस्तार से दिया गया है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है.

सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा

अंतरराष्ट्रिय समुदाय ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के माध्‍यम से 17 सतत् विकास लक्ष्‍यों की ऐतिहासिक योजना शुरू की है जिसका उद्देश्‍य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्‍न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्‍व की रचना करना है. नए एजेंडे में पहली बार बच्चों के खिलाफ हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए एक विशिष्ट लक्ष्य शामिल है, और बच्चों के दुर्व्यवहार, उपेक्षा और शोषण को समाप्त करने के लिए कई अन्य हिंसा-संबंधी लक्ष्यों को मुख्य धारा में शामिल किया गया है.