क्रिसमस से पूर्व ईस्टर एकमात्र पर्व है जब क्रिश्चियन समाज के लोग चर्च में इकट्ठा होते हैं और क्रिसमस की तरह खुशियां सेलीब्रेट करते हैं. एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं, केक काटते हैं, नृत्य करते हैं, लेकिन हैरानी तब होती है जब इस पर्व पर अंडों को विशेष अहमियत दी जाती है. आखिर खुशियों के इस पर्व में रंग-बिरंगे अंडों की क्या भूमिका होती है, आइये जानें...
मान्यता है कि गुड फ्राइडे के दिन सूली पर लटकाने से हुई मृत्यु के तीन दिन बाद यीशू को पुनर्जीवन मिला था. चूंकि शुक्रवार को हुई मृत्यु के तीसरे दिन रविवार को यीशु दुबारा पैदा हुए थे, इसीलिए हर वर्ष रविवार के दिन ही ईस्टर मनाया जाता है. ईस्टर क्रिसमस की तर्ज पर नहीं मनाया जाता लेकिन क्रिश्चियन समाज में इस दिन का विशेष महत्व होता है.
ईस्टर यीशू के पुनर्जीवन का पर्व है. इस दिन लोग चर्च और घरों में मोमबत्तियां जलाते हैं और प्रभु-भोज का आयोजन करते हैं. इस दिन विशेष रूप से रंग बिरंगे अंडों, खरगोश, मेमने भी पर्व के महत्वपूर्ण हिस्से बनते हैं, जो अब परंपरा बन चुकी है.
रंग-बिरंगे अंडे का महत्व
ईस्टर का मुख्य प्रतीक एक अंडा होता है. दरअसल यह पर्व नवीनीकरण, उत्सव, कायाकल्प एवं पृथ्वी वासियों की उन्नति का प्रतीक है. कहते हैं कि जिस तरह से एक पक्षी अपने घोसले में अंडा देती है, अंडे से चूजा निकलता है, ठीक उसी तरह से यीशू ने भी पृथ्वी पर जन्म लिया तथा सुख एवं शांति का मार्ग प्रशस्त करने का संदेश दिया था. यह शुभता और विकास का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए इस दिन क्रिश्चयन समाज के लोग घरों में रंग-बिरंगा अंडा रखते हैं. मोमबत्तिया जलाते हैं.
अंडों का खेल
क्रिश्चयन समाज के लोगों का कहना है कि क्रिसमस और ईस्टर का सबसे बड़ा फर्क यह अंडा ही होता है. रंगीन अंडों के बिना ईस्टर का मजा ही नहीं होता. कहीं-कहीं इस दिन अंडों के साथ घर-परिवार के लोग एक लुकाछिपी का खेल भी खेलते हैं. इस खेल के तहद माता-पिता जहां इन रंगीन अंडों को छिपाते हैं, वहीं बच्चों को इन अंडों को ढूंढ कर लाना होता है. कहा जाता है कि ये अंडे एक खरगोश लेकर आता है. पूर्व में यही अंडे मुर्गियां अथवा सारस लेकर आते बताया जाता था. वस्तुतः क्रिश्चियन समाज में अंडा पुनरुत्थान का सिंबल माना जाता है.
यीशू की मृत्यु एवं पुनर्जीवन की कहानी
दरअसल यीशु के चमत्कारों से कुछ धर्म विशेष के लोग रुष्ठ थे, क्योंकि इससे उनकी प्रभुसत्ता खतरे में पड़ रही थी. उन लोगों ने यीशु के खिलाफ षड़यंत्र रचकर उन्हें सूली पर चढ़ाकर मार डाला. इसके पूर्व उन्हें शारीरिक प्रताड़ना भी दी गयी. लेकिन यीशु ने इस पर कभी कोई शिकवा-शिकायत नहीं की. तमाम प्रताड़नाओं के बावजूद वह ईश्वर से यही प्रार्थना करते थे कि वह इन्हें क्षमा कर देना. यीशू की मृत्यु से अधिकांश लोग दुखी थे. सलीब पर लटके यीशु को देखकर लोग गम मना रहे थे. बाद में उन्हें कब्र में दफना दिया गया.
कहा जाता है कि तीन दिन बाद कुछ महिलाएं जब यीशू के कब्र पर मोमबत्तियां जलाने गयीं थीं तो उन्होंने पाया कि यीशू के कब्र के ऊपर का पत्थर खिसका हुआ है. उन्हें कब्र खाली दिखी. वहीं उन्हें दो देवदूत भी मिले. उन्होंने बताया कि यीशु पुनः जीवित हुए हैं. इसके बाद लोगों ने यीशु को परमेश्वर का दर्जा दिया. कहा जाता है कि इसके बाद ही यीशू के शिष्यों ने उनके नये धर्म का प्रचार-प्रसार करना शुरू किया, जिसे आज ईसाई धर्म कहा जाता है.