Hanuman Jayanti 2020: साल में दो बार क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती, जानें पूजा विधान एवं हनुमान जन्म की रोचक कथा!
हनुमान जयंती

Diwali 2020: हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है. प्रथम चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन और दूसरी कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन. कार्तिक मास के हनुमान जयंती के संदर्भ में वाल्मिकी रामायण में भी उल्लेखित है. ज्योतिषियों के अनुसार हनुमानजी का जन्मोत्सव साल में दो तिथियों में मनाया जाता है. चैत्र मास को जयंती के रूप में तो कार्तिक मास को अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि जब रावण से युद्ध जीतकर श्रीराम अयोध्या वापस लौटते हैं तो अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया था.

माता सीता ने हनुमान की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया. हनुमान जी ने इसे अपना दूसरा जन्म माना था. कार्तिक मास में अमूमन चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती मनायी जाती है, लेकिन इस वर्ष तिथियों में उलट-फेर के कारण हनुमान जयंती धनतेरस के ही दिन मनाई जायेगी. हनुमान जयंती के दिन बजरंगबली की विधिवत पूजा पाठ करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और हनुमान जी सभी की मनोकामनाएं पूर्ति होती हैं.

व्रत एवं पूजा विधि

हनुमान जयंती के व्रतियों को इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है. हनुमान जयंती के दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर श्री राम, मां सीता एवं हनुमानजी का ध्यान कर स्नान करें. इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कर पूरे विधि के साथ पूजन करें. धूप-दीप जलाकर हनुमान की प्रतिमा पर लाल रंग का पुष्प, केसर युक्त चंदन, अक्षत, रोली, सिंदूर, लड्डू चढ़ाएं. इसके बाद हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें. अंत में हनुमान जी की आरती उतारें. इस दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से सारे मनोकामना की पूर्ति होती है.

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हनुमान जी की जन्मकथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार हैं. हनुमान जी के जन्म के संदर्भ में उल्लेखित है कि देवता एवं असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो उससे निकले अमृत को असुरों ने छल करके छीन लिया. इस पर देव और असुर आपस में लड़ने लगे. असुरों के हाथ से अमृत कलश हासिल करने के लिए भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धर कर देवताओं और असुरों के बीच उपस्थित हुए. कहा जाता है कि भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव भी विचलित हो गये. इससे शिव जी ने जो वीर्य त्याग त्याग किया, उसे पवन देव वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ठ करवा दिया. इस तरह माता केसरी के गर्भ से केसरी मारुती संकट मोचन श्रीरामभक्त हनुमान जी का जन्म हुआ.

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इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है. एक दिन मारुती जब सुबह जागे तो उन्हें बहुत तेज भूख लगी. उन्होंने पास के वृक्ष पर एक पका हुआ लाल फल देखा. मारुती फल तोड़ने के लिए लपके. वास्तव में जिसे वे फल समझ रहे थे, वह वस्तुतः सूर्यदेव थे. वह अमावस्या का दिन था. इसी समय राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे, लेकिन उसके पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया. राहु परेशान थे कि ये क्या हो गया. उन्होंने इंद्र से बात की. इंद्र ने पहले तो मारुति को समझाया. तब इंद्र ने बज्र से मारुति के मुख पर प्रहार किया, तब जाकर सूर्यदेव मुक्त हुए. लेकिन बज्र के प्रहार से मारुति मुर्छित होकर आकाश से पृथ्वी पर आ गिरे. इंद्र की इस हरकत से क्रोधित हो पवनदेव मारुती के साथ एक गुफा में जाकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. पवनदेव के अंतर्ध्यान होते ही पृथ्वी पर जीव-जंतुओं के बीच त्राहि-त्राहि मच जाती है. सारे देवताओं ने पवन देव से प्रार्थना करने लगे कि वे अपना क्रोध त्याग कर पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें. सभी देवताओं ने मारुति को वरदान स्वरूप तमाम दिव्य शक्तियां प्रदान करते हैं, साथ ही उन्हें हनुमान नाम से पूज्यनीय होने का वरदान देते हैं. इसके बाद से ही वह मारुति के बजाय हनुमान पड़ा. इसका उल्लेख तुलसीदास की हनुमान चालीसा में भी किया गया है.