Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023: स्वर्ण मंदिर का नींव रखने वाले गुरू अर्जुन देवकी शहादत की मर्मांतक गाथा!

गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें धर्म गुरु थे. गुरु परंपराओं का पालन करते हुए वह कभी झुके नहीं, कभी रुके नहीं. उन्होंने शरणागत की रक्षा का जो संकल्प लिया था, उससे वह कभी डिगे नहीं, भले ही इस संकल्प के लिए उन्हें शहादत देनी पड़ी...

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Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023: स्वर्ण मंदिर का नींव रखने वाले गुरू अर्जुन देवकी शहादत की मर्मांतक गाथा!

गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें धर्म गुरु थे. गुरु परंपराओं का पालन करते हुए वह कभी झुके नहीं, कभी रुके नहीं. उन्होंने शरणागत की रक्षा का जो संकल्प लिया था, उससे वह कभी डिगे नहीं, भले ही इस संकल्प के लिए उन्हें शहादत देनी पड़ी...

त्योहार Rajesh Srivastav|
Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023: स्वर्ण मंदिर का नींव रखने वाले गुरू अर्जुन देवकी शहादत की मर्मांतक गाथा!
Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023 (Photo: Twitter)

Guru Arjun Dev Martyrdom Day 2023: गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें धर्म गुरु थे. गुरु परंपराओं का पालन करते हुए वह कभी झुके नहीं, कभी रुके नहीं. उन्होंने शरणागत की रक्षा का जो संकल्प लिया था, उससे वह कभी डिगे नहीं, भले ही इस संकल्प के लिए उन्हें शहादत देनी पड़ी. गौरतलब है कि मुगल बादशाह अकबर के बेटे जहांगीर ने गुरुजी की बढ़ती लोकप्रियता से चिढ़कर ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (15 अप्रैल 1563) को उनकी हत्या करवा दी थी. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 23 मई 2023 को सिख धर्म के लोग गुरु अर्जुन देव की शहादत दिवस मनायेंगे. आइये जानें गुरु अर्जुन देव के संदर्भ में कुछ प्रेरक जानकारियां..यह भी पढ़ें: Chattrasal Jayanti 2023: जब छत्रपति की छत्रछाया में महाराजा छत्रपाल का मुगलों को नेस्तनाबूद करने का लिया संकल्प!

धार्मिक एवं सामाजिक कार्य

गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल (पंजाब) में गुरु रामदास एवं बीबी भानी जी के घर हुआ था. गुरु अर्जुन देव जी बहुत शांत स्वभाव मगर कुशाग्र बुद्धि के थे. 1581 में उन्हें नाना गुरु अमरदास जी (सिखों के तीसरे गुरु) से गुरुमत की शिक्षा मिली थी. वे 18 साल के थे, जब उन्हें गुरु गद्दी संभालनी पड़ी. उन्होंने अपने पिता द्वारा शुरू किये कार्य पूरे करने शुरू किए. वह अपनी कमाई का दसवां हिस्सा सामाजिक कार्यों में लगाते थे, गरीबों के लिए गुरुद्वारों में दवाखाने खुलवाये, गुरु घर की गुल्लक (दानपेटी) के पैसों को परोपकारी कार्यों में खर्च किये. 1597 में लाहौर में जब अकाल पड़ा, जिसमें कई लोग महामारी के शिकार हुए, तब गुरूजी ने अपने हाथों से रोगियों का इलाज किया. इसके साथ ही वह सिख धर्म का प्रचार भी करते रहे. उनका विवाह 1579 में माता गंगा से हुआ था. उन्हीं के पुत्र हरगोविंद सिंह थे, जो बाद में सिखों के छठे गुरू बने. 1601 में उनकी पहल पर काफी लोगों को अकाल पुरख से जोड़ा गया. आद ग्रंथ साहिब का लेखन भी गुरू जी ने ही शुरू करवाई थी, जिसकी जिम्मेदारी भाई गुरुदास जी को सौंपी गई. अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे का नक्शा बनवाया और उसकी नींव रखवाई थी, जो आज स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार करवाया

अकबर की मृत्यु के बाद 1605 में जहांगीर बादशाह बना. जहांगीर के बादशाह बनते ही कुछ चाटुकार उसे गुरु अर्जुन देव के खिलाफ भड़काने लगे. उधर जहांगीर का बेटा शहजादा खुसरो ने पिता के खिलाफ बगावत कर पंजाब गया तो गुरु अर्जुन देव ने उसका स्वागत करते हुए उसे संरक्षण दिया. जहांगीर को जब यह बात पता चली तो वह अर्जुन देव पर से बुरी तरह नाराज हो गया. उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. गुरु अर्जुन देव बालक हरगोबिंद जी को गुरु गद्दी सौंप कर लाहौर पहुंचे. पुत्र की बगावत से चिढ़ा जहांगीर ने गुरु अर्जुन पर बगावत का आरोप लगाकर गिरफ्तार करवा लिया और उन्हें यातनाओं के साथ मृत्युदंड का आदेश दिया.

इस तरह शहादत दिया गुरु अर्जुन देव ने

गुरु अर्जुन देव जी को निरंतर यातनाएं दी जाने लगीं. जहांगीर ने उन्हें जून के झुलसते माह में गरम तवा पर बिठाया, उन पर गर्म रेत डाला गया, फिर गरम तेल डाला गया. लगातार प्रताड़नाएं झेलते हुए गुरू अर्जुन देव बेहोश हो गये, और अंततः उन्होंने शहादत दे दी. तब उनके मृत शरीर को रावी नदी में बहा दिया गया.

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