नए साल में जर्मनी में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की बने, उसका सामना समान चुनौतियों से होगा. विदेशियों का मुद्दा, साइबर हमलों से बचाव और देश में कानून का शासन तथा लोकतांत्रिक संस्थानों को सुरक्षित रखने पर देना होगा ध्यान.दिसंबर में माग्देबुर्ग क्रिसमस मार्केट के हमले के बाद से जर्मनी में जैसा राजनीतिक तनाव पैदा हुआ, उसने साफ दिखा दिया कि जर्मनी की अगली सरकार के लिए घरेलू सुरक्षा और चरमपंथ के मुद्दे कितने महत्वपूर्ण होंगे.
इसके साथ ही अन्य मुद्दे भी अहम बने हुए हैं. सरकार के लिए एक चुनौती यह भी होगी कि कुशल श्रमिकों के आप्रवासन को बढ़ावा देते हुए किस तरह से अनियमित आप्रवासन को नियंत्रित किया जाए. अवैध और अनियमित आप्रवासन भी जर्मनी के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
जर्मनी के सामने कई और भी महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं. जैसे, साइबर हमलों से बचाव करना, कानून का पालन करवाना और लोकतंत्र को मजबूत बनाना. इन सभी चुनौतियों का सामना जर्मनी की अगली सरकार को करना पड़ेगा, चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी हो.
विदेश नीति को लेकर 2025 में भी बनी रहेंगी जर्मनी की चुनौतियां
इसके अलावा, अगर आप बुंडेस्टाग के सदस्यों यानी जर्मन सांसदों से पूछें, तो वे कहेंगे कि इन सभी चुनौतियों को दरकिनार किया जाना चाहिए और सबसे पहले देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी समस्या को हल किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारना बहुत जरूरी है. जर्मनी की बड़ी कंपनियां, जैसे कि फोक्सवागन मुश्किलों का सामना कर रही है. लोग अपनी नौकरियों को लेकर चिंतित हैं. वे महंगाई और घरों के बढ़ते किराये से जूझ रहे हैं. इसलिए, इन सब समस्याओं को पहले हल करना चाहिए.
ऊर्जा की बढ़ती कीमतें और कुशल श्रमिकों की कमी
सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के मार्को वंडरवित्स 2021 तक पूर्वी जर्मन राज्यों के संघीय आयुक्त थे. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "इस समय हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. इससे देश की बुनियाद और भविष्य पर असर पड़ रहा है. एक बड़ी समस्या यह भी है कि लोग आर्थिक मामलों को देखने वाले नेताओं पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं.”
सरकार को ऊर्जा की बढ़ती कीमतों, ज्यादा मजदूरी, खराब हो रहे बुनियादी ढांचों, कुशल श्रमिकों की कमी और अत्यधिक नौकरशाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
ग्रीन पार्टी के पूर्व नेता ओमिद नूरीपुर के मुताबिक, देश में डिजिटलीकरण बहुत धीमी गति से हो रहा है, जो इस बात को साबित करता है कि देश में अत्यधिक नौकरशाही है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे सामने दो बड़ी समस्याएं हैं. पहली समस्या यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था की हालत सही नहीं है. दूसरी समस्या संरचनात्मक है, यानी कि हमारे देश में बहुत सारी चीजें पुरानी हो गई हैं. उदाहरण के लिए, सरकारी कार्यालयों में अभी भी फैक्स मशीन का इस्तेमाल होता है. जबकि, अब संचार के बेहतर साधन उपलब्ध हैं. इसके अलावा, देश में बहुत कम निवेश हो रहा है, जो देश के विकास के लिए बहुत जरूरी है.
देश के पावर ग्रिड जैसे बुनियादी ढांचों पर बाहरी साइबर हमलों की वजह से ये समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं. इनमें से कई हमले रूस से किए गए हैं. नूरीपुर ने कहा, "महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों की सुरक्षा करना काफी जरूरी है. इस क्षेत्र में हम कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाते हैं और इसी का फायदा उठाकर बाहरी लोग या दूसरे देश हमारे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर दबाव डाल रहे हैं.” यही वजह है कि नए साल में पुलिस और खुफिया सेवाओं को मजबूत करना एक अहम काम होगा.
आप्रवासन पर कड़ा रुख अपनाने की संभावना
दो और बड़ी समस्याएं हैं जो भविष्य की सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन सकती हैं. पहली समस्या है आप्रवासन यानी किस तरीके से आप्रवासन को नियंत्रित किया जाए. दूसरी समस्या यह है कि देश को लोकलुभावनवाद और दक्षिणपंथी चरमपंथ की बढ़ती समस्या से कैसे निपटना चाहिए. माग्देबुर्ग क्रिसमस मार्केट पर हमले ने दिखाया कि यह समस्या कितनी गंभीर है.
जर्मनी के अस्पतालों में भाषा के चलते होती है दिक्कत
हाल के वर्षों में शरण के लिए आवेदनों की संख्या और अनियमित अप्रवासियों यानी बिना अनुमति के देश में आने वाले लोगों की अनुमानित संख्या में वास्तव में कमी आई है. हालांकि, यूरोपीय सीमा सुरक्षा एजेंसी ‘फ्रॉन्टेक्स' का अनुमान है कि 2024 के पहले नौ महीनों में लगभग 1,66,000 लोगों ने यूरोपीय संघ में अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश की थी.
जर्मनी ने फिर से अपनी सीमाओं पर सख्ती बढ़ा दी है. रूढ़िवादी सीडीयू भी अब शरणार्थियों को सीमा पर वापस भेजने के पक्ष में है. संभावना जताई जा रही है कि फरवरी में होने वाले चुनाव के बाद सीडीयू अगले सरकार का नेतृत्व कर सकती है.
आप्रवासियों को लेकर स्थानीय अधिकारियों ने खड़े किए हाथ
कई स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि उनकी क्षमता सीमित है. अब उनके पास जगह और संसाधन नहीं बचे हैं. वे अब और शरणार्थियों को नहीं रख सकते हैं और उनकी देखभाल नहीं कर सकते हैं.
देश के उत्तरी भाग में जर्मनी के फ्रिसियन और डेनिश अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी ‘एसएसडब्ल्यू' के स्टीफन साइडलर ने कहा कि उन्होंने इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मेरे हिसाब से नगरपालिकाओं को इस समय काफी ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें केंद्र सरकार से मदद मिलनी चाहिए.”
वंडरवित्स फिर से बुंडेस्टाग का सदस्य बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. वह साइडलर की बात से असहमत हैं. उनका मानना है कि आप्रवासन को नियंत्रित किया जा सकता है. हालांकि, वह जानते हैं कि यह मुद्दा कितना ज्यादा ध्रुवीकरण वाला है. उन्होंने बताया, "अवैध तरीके से आने वाले अप्रवासियों की संख्या कम हो गई है. मुझे लगता है कि समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. मैं वैसे स्थानीय राजनेताओं को जानता हूं जो कहते हैं कि 2014 या 2015 की तुलना में स्थिति कम खराब है. इसके बावजूद, सभी ने हाथ खड़े कर दिए हैं. लोगों को ऐसा लग रहा है कि अब कुछ नहीं किया जा सकता है.”
नूरीपुर का मानना है कि जर्मनी आने वाले शरणार्थियों की संख्या फिर से बढ़ सकती है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "हम जानते हैं कि यूक्रेन की स्थिति के कारण शरणार्थियों की संख्या और बढ़ सकती है. हम देख सकते हैं कि मध्य पूर्व में फिर से नए संघर्ष शुरू हो सकते हैं.”
संघीय संवैधानिक न्यायालय की सुरक्षा
इस बीच, फरवरी के चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) को बढ़त मिलने की उम्मीद है. साइडलर ने चेतावनी दी, "हम इस समय दक्षिणपंथी विचारधारा से बहुत दबाव महसूस कर रहे हैं. हमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा की चिंता है. हम इस समय उन लोगों को आगे बढ़ते हुए देख रहे हैं जो सोचते हैं कि सिर्फ बहुसंख्यक ही कोई फैसला लेता है. हालांकि, अल्पसंख्यक राजनेता के तौर पर मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि एक अच्छे लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों का भी ध्यान रखा जाता है.”
यही वजह है कि साइडलर ने विपक्षी सीडीयू/सीएसयू ब्लॉक, सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट (एसपीडी) और ग्रीन्स तथा उनके पूर्व गठबंधन सहयोगी नवउदारवादी फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) की ओर से संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्वतंत्रता को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए बुंडेस्टाग में पेश किए गए प्रस्ताव का समर्थन किया.
इस सुधार से अदालत के नियमों को बदलना मुश्किल हो जाएगा और नियमों को बदलने के लिए ज्यादा वोट चाहिए होंगे. जर्मन संसद में जरूरी दो-तिहाई बहुमत से इस पर सहमति बन सकती है, यहां तक कि चुनाव अभियान के दौरान भी. सभी राजनेता इस बात पर सहमत हैं कि 2025 एक और कठिन वर्ष होगा, जिसमें भयंकर विवाद होंगे और कई संकटों से निपटना होगा.