Eid-e-Milad un Nabi 2019: ईद-ए-मिलाद है कहीं खुशी तो कहीं गम का मिला-जुला पर्व
प्रतीकात्मक तस्वीर, (Photo Credits: Facebook)

Eid-e-Milad-2019: पवित्र कुराऩ के अनुसार ‘ईद-ए-मिलाद’ अथवा ‘मिलाद-उन-नबी’ को ‘मौलिद मावलिद’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है पैगंबर मुहम्मद के जन्म का दिन. यानी यह दिन हम पैगंबर मुहम्मद के जन्म दिन के उपलक्ष्य में सेलीब्रेट करते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पैगंबर मुहम्मद का जन्म-दिन रबी अल-अव्वल तीसरे महीने मनाया जाता है. ‘मिलाद-उन-नबी’ का यह उत्सव 11वीं सदी में फातिमी राजवंश अथवा शाही घराने के समय से ही मनाया जा रहा है. मान्यता है कि पवित्र कुरान के विषय में पैगंबर मुहम्मद से पता चला था और उसी दिन को पवित्र पैगंबर का जन्म दिवस माना जाता है.

यह उत्सव मुहम्मद पैगंबर के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं की भी याद दिलाता है. मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 10 नवंबर 2019 को मनाया जाएगा.

क्या है मौलिद

‘मिलाद उन नबी’ के इस्लामिक पर्व को ही ‘मौलिद’ भी कहा जाता है, क्योंकि पैगंबर मुहम्मद के जन्म-दिन की ख़ुशी में जो गीत गाया जाता है उसे ही ‘मौलूद’ कहते हैं. मध्यकालीन समय से यह मान्यता रही है कि मौलूद संगीत को सुनने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

मिलाद-उन-नबी शिया और सुन्नी दोनों मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाता है. उनका मानना है कि इसी दिन गाधिर-ए-खुम में पैगंबर मुहम्मद ने हजरत अली को अपना उत्तराधिकार चुना था. ईद-ए-मिलाद (पैगंबर मुहम्मद का जन्म दिन) और ईद-अल-गाधिर (पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु) दो ऐसी घटनाएं हैं जिसे एक ही दिन सेलीब्रेट किया जाता है, बस इनके मनाने का तरीका और कारण अलग-अलग होते हैं.

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सुन्नी द्वारा मिलाद-उन-नबी का समारोह

परंपरा और मान्यताओं के अनुरूप 12वें दिन सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोग पवित्र पैगंबर और उनके द्वारा दिए गए सही मार्ग और विचारों को याद करते हैं. इस दिन वे शोक नहीं मनाते, क्योंकि वे विश्वास करते हैं कि 3 दिन से ज्यादा शोक मनाने से मृतक की आत्मा को ठेस पहुंचती है.

मिलाद-उन-नबी का इतिहास

ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद का जन्म सन् 570 में सऊदी अरब में हुआ था. इस्लाम के ज्यादातर विद्वानों की जांच के बात पता चला है कि मुहम्मद का जन्म इस्लामी पंचांग के तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ है. अपने जीवनकाल के दौरान, मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की और एकमात्र साम्राज्य के रूप में सऊदी अरब का निर्माण किया, जो अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित था. सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद, कई मुसलमानों ने विविध अनौपचारिक उत्सवों के साथ उनके जीवन और उनकी शिक्षाओं का जश्न मनाना शुरू किया था.

जन्म दिन की परंपरा और उत्सव

मुस्लिम समुदाय अपनी मान्यताओं एवं प्राथमिकताओं के आधार पर पैगम्बर मुहम्मद के जन्म और मृत्यु को याद करते हैं. कुछ लोग मिलाद-उन-नबी को खुशहाल उत्सव के रूप में मनाते हैं, वहीं कुछ लोग इसे शोक दिवस के रूप में याद करते हैं. पैगंबर मुहम्मद के जन्म-दिन मिलाद-उन-नबी के अवसर पर एक दूसरे के मिठाइयाँ और अऩ्य पकवान बांटते हैं. लेकिन इस अवसर पर जो चीज सबसे ज्यादा बांटी जाती है वह है शहद. शहद इसलिए कि मान्यता है कि पैगंबर मुहम्मद को शहद बहुत प्रिय था.

इस दिन बहुत से मुस्लिम मस्जिदों में जाते हैं, वहां विद्वानों के मुख से प्रवचन सुनते हैं और अपने प्रिय पैगंबर मुहम्मद और अल्लाह के लिए नमाज पढ़ते हैं. बहुत से मुस्लिम लोग सार्वजनिक स्थानों पर गाने गाते हैं. तमाम लोकप्रिय गानों में सबसे ज्यादा जो गाना लोकप्रिय है उसे मौलूद कहते हैं. इस्लाम के अऩुसार मौलूद गीत व्यक्ति को भाग्यशाली बनाता है और अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी प्रकट करता है.