हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध जयंती मनाई जाती है. बौद्ध धर्म के अनुयायियों का यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, महापरिनिर्वाण हुआ था, यहां तक कि उन्हें इसी दिन 'बोधि' की भी प्राप्ति हुई थी, इसलिए बौद्ध संप्रदाय के लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार बुद्ध पूर्णिमा 5 मई 2023, शुक्रवार के दिन पड़ रहा है. आइये जानते हैं, सिद्धार्थ से संन्यासी और फिर भगवान का दर्जा पाने वाले गौतम बुद्ध के जीवन के रोचक और प्रेरक कहानियां...यह भी पढ़ें: Buddha Purnima 2023 Quotes: मन को शांति और जीवन को नई दिशा प्रदान करते हैं गौतम बुद्ध के ये 10 महान विचार, अपनों संग करें शेयर
क्रोध पर बुद्ध का विचार!
एक बार अपने उपदेश में बुद्ध कह रहे थे, -‘क्रोध करने वाला व्यक्ति जहर खुद पीता है, लेकिन मरने की आशा किसी और से करता हैं. बुद्ध का यह विचार वहीं बैठे एक सनकी व्यक्ति को अच्छा नहीं लगा. बुद्ध ‘क्रोध’ पर बोल रहे थे, जबकि उनका चित्त शांत था, इससे उस सनकी व्यक्ति गुस्सा गया. उसने बुद्ध के चेहरे पर थूक दिया. उसकी इस कृत्य पर वहां उपस्थित लोग भड़क उठे. बुद्ध ने सभी को शांत कर सनकी व्यक्ति से पूछा, तुम्हें कुछ और कहना है? वह व्यक्ति वहां से चला गया. बुद्ध ने सभी को समझाते हुए कहा, -जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति मेरी बातों का अनुसरण करे ही. हम उस पर क्रोध क्यों करें? अगली सुबह वह व्यक्ति बुद्ध के पास आया, और बुद्ध के चरणों में गिरकर छमा मांगते हुए कहा, मेरी कल की कृत्य पर छमा मांगता हूं. बुद्ध ने उसे अपने गले से लगा लिया.
पशु-पक्षियों के प्रति दया सुरक्षा!
सिद्धार्थ वृद्ध एवं कमजोर व्यक्तियों के साथ पशु-पक्षियों के प्रति भी काफी दया-भावना रखते थे. एक बार जंगल में भ्रमण करते समय सिद्धार्थ ने देखा कि एक लड़का सांप को डंडे से पीट रहा था. सिद्धार्थ ने उसे रोकते हुए कहा, -मासूम प्राणी की जान लेने का तुम्हें क्या अधिकार है? इसे जाने दो. लड़का सिद्धार्थ से प्रभावित होकर सांप को आजाद कर सिद्धार्थ से छमा याचना करते हुए कहा कि आज से वह किसी भी प्राणी को नहीं सतायेगा. एक बार सिद्धार्थ अपने मित्रों के साथ बगीचे में खेल रहा था. इसी में उसका चचेरा भाई देवदत्त भी था. देवदत्त ने खेल-खेल में एक हंस पर तीर चलाकर घायल कर दिया. सिद्धार्थ ने घायल हंस को गोद में लेकर जड़ी-बूटी से उसका इलाज किया. हंस उड़ने योग्य हुआ, तब देवदत्त ने कहा, यह मेरा शिकार है, मुझे दो. दूर खड़े राजा शुद्धोधन ने देवदत्त से कहा मारने वाले से बचाने वाले का हंस पर ज्यादा अधिकार है.
अमृत की खेती!
एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा लेने एक किसान के घर पहुंचे. किसान ने कहा, -बाबा मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं. तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए, तभी खाना खाना चाहिए. बुद्ध ने कहा, -महाराज! मैं भी खेती करता हूं. किसान ने पूछा,- तुम्हारे पास ना हल है, ना बैल और ना ही कोई खेत. आप कहां और कैसे खेती करते हैं? कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाइए. बुद्ध ने कहा, -मेरे पास श्रद्धा के बीज हैं, तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूपी जोत और हल है. पापभीरूता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पैनी है. मैं इस खेती को खर-पतवार से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काटने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं. बाधाओं से भागता नहीं हूं, वह मुझे सीधा शांति धाम ले जाता है. इस तरह मैं अमृत की खेती करता हूं.
दान का महात्म्य
भगवान बुद्ध पाटलिपुत्र आये तो राजा बिंबिसार ने ढेर सारे कीमती हीरे, मोती, और रत्न उन्हें पेश किये. बुद्ध ने राजा और मंत्रियों के दिये उपहारों को स्पर्श कर स्वीकार किया. तभी एक वृद्धा आई, और बुद्ध को प्रणाम कर बोली, भगवन, मुझे जब आपके आने की खबर मिली, उस समय मैं अनार खा रही थी. मेरे पास आपको देने योग्य यह आधा खाया अनार ही लेकर आ गई. आप मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करेंगे? बुद्ध ने दोनों हाथों से फल ग्रहण किया. बिंबिसार ने बुद्धदेव से कहा, भगवन छमा करें. हम सभी ने आपको कीमती उपहार दिये आपने उसे स्पर्श किया, लेकिन जूठे फल अपने दोनों हाथों से ग्रहण किया. बुद्ध ने कहा, राजन आप सभी के उपहार बहुमूल्य थे, किंतु यह आपकी संपत्ति का दसवां हिस्सा भी नहीं था, इसके विपरीत इस वृद्धा ने अपने मुंह का कौर ही मुझे दे दिया. इसलिए मैंने इसे प्राथमिकता से स्वीकार किया.