14 November: आज के दिन भारत ने सबसे पहले चंद्रमा पर पानी होने का संकेत दिया था! जानें कैसे यह श्रेय अमेरिका ने लेने की नाकाम कोशिश की!
चन्द्रमा - प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay

14 November: 14 नवंबर का दिन भारत और भारतीयों के लिए बहुत अहमियत रखता है. इसी दिन आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का प्रयागराज (इलाहाबाद) में जन्म हुआ था. 14 नवंबर का ही दिन था, जब महान शक्तिशाली देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत के इसरो द्वारा भेजे चंद्रयान ने न केवल चंद्रमा पर कदम रखा, बल्कि पहली बार चंद्रमा पर पानी यानी जीवन की संभावनाओं का संकेत दिया. आइये देखें भारत के गौरवशाली इतिहास के इस पन्ने को विस्तार से...

गौरतलब है कि चंद्रयान-1 इसरो के चंद्रमा मिशन का पहला यान था. चंद्रयान-1 को चांद तक पहुंचने में पांच दिन और उसका चक्कर लगाने के लिए कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लगे थे. MIP की कल्पना पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी. उनके सुझाव पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने MIP को बनाया था. वह चाहते थे कि भारतीय वैज्ञानिक चांद के एक हिस्से पर अपना निशान छोड़ें और इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें निराश नहीं किया. इस घटना के बाद भारत चांद पर झंडा फहराने वाला (अमेरिका, रूस और जापान के बाद) चौथा देश बना था. यह भी पढ़े: Water on the Lunar Surface: नासा ने चंद्रमा की सतह पर पाए पानी के निशान

इस तरह चंद्रमा पर पानी होने का पता चला

14 नवंबर 2008 को, चंद्रयान-1 ऑर्बिटर ऑन-बोर्ड मून इंपैक्ट प्रोब (MIP) 100 किमी की ऊंचाई पर उससे अलग हो गया, और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से टकराया. अंततः उस पर नियंत्रण पाने में सफलता मिली. जांच निर्धारित स्थान पर पहुंची. प्रभावित होने वाला स्थान शेकल्टन क्रेटर था. इस बिंदु को ‘जवाहर प्वाइंट’ नाम दिया गया. यहां की मिट्टी को स्पर्श किया गया तो MIP ने चंद्र मिट्टी (जिसे रेगोलिथ कहते है) को जमीन से बाहर निकाला, तब पानी में बर्फ की उपस्थिति का पता चला. चंद्रमा पर 25 मिनट की उपस्थिति के दौरान, यान के चंद्रा के एल्टीट्यूडिनल कंपोजिशन एक्सप्लोरर (CHACE) ने वर्णक्रमीय रीडिंग से पानी के प्रमाण दर्ज किए गये.

अमेरिका ने भी चंद्रमा पर पानी खोजने का खोखला दावा किया था!

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और इसरो के बीच पानी की खोज के श्रेय को लेकर विवाद हुआ. 24 सितंबर 2009 को, नासा ने साइंस जर्नल में प्रकाशित किया कि उसके मून मिनरलोजी मैपर (M3) उपकरण, जो चंद्रयान ऑर्बिटर पर भी था, ने कक्षा से चंद्रमा पर पानी का पता लगाया था. अगले ही दिन, इसरो ने घोषणा की कि MIP ने M-3 से तीन महीने पहले पानी की खोज की थी. बताया गया कि खोज की घोषणा नहीं की गई, क्योंकि इसरो ने खोज का दावा करने से पहले नासा द्वारा पानी की पुष्टि होने तक इंतजार किया था. एक दशक बाद, 2017 में, M3 उपकरण के डेटा का पुन: विश्लेषण किया गया और चंद्र ध्रुवों के पास क्रेटरों के छायांकित क्षेत्रों में पानी की उपस्थिति के पुनः और अधिक ठोस सबूत सामने आए.