पांच दिवसीय दुर्गा पूजा के पांचवे दिन ‘सिंदूर खेला’ जिसे ‘सिंदूर उत्सव’ भी कहते हैं कि परंपरा निभाई जाती है. यह उत्सव दुर्गा पूजा के समापन दिवस (02 अक्टूबर 2025, गुरुवार) का प्रतीक है. सिंदूर खेला के पश्चात मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है. पांच दिवसीय यह पर्व दुष्ट राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का स्मरण कराता है. सिंदूर खेला मुख्य रूप से बंगाली महिलाओं (सुहागनों) द्वारा मनाया जाता है, जो सिंदूर खेलती हैं, और एक दूसरे को सिंदूर लगाकर रस्म अदा करती हैं, गीत-नृत्य का आनंद लेती हैं. आइये जानते हैं सिंदूर खेला रस्म के उद्देश्य. महत्व एवं इसे सेलिब्रेशन आदि के बारे में...
सिंदूर खेला 2025 कब है?
इस वर्ष सिंदूर खेला 2025, 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा. यह उत्सव विजयादशमी को दुर्गाजी की फाइनल पूजा के समापन के बाद मनाया जाता है. बंगाल विजयादशमी के दिन, दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, जिसके साथ ही दुर्गा पूजा उत्सव का समापन होता है. इसके बाद सिंदूर उत्सव मनाया जाता है, जिसे बंगाल की विवाहित महिलाएँ बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाती हैं. बहुत सी जगहों पर पुरुष भी इस उत्सव में शामिल होते हैं, जिसे कोलाकुली कहा जाता है. यह भी पढ़ें : World Heart Day 2025: दिल के हाथों क्यों हार रहा है आज का युवा? विश्व ह्रदय दिवस पर जानें युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक के कारण और निवारण!
सिंदूर खेला का महत्व
सिंदूर खेला का यह उत्सव विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. वे इस दिन सिंदूर लगाकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती हैं. सिंदूर खेला का रस्म देवी दुर्गा की विदाई के साथ जुड़ा होता है, जो स्वयं नारी शक्ति की प्रतीक हैं. यह उत्सव महिलाओं की एकता और उनके अंदर की शक्ति का भी प्रतीक है. इस अवसर पर सुहागन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर प्रेम, सौहार्द और एकता का संदेश देती हैं. विजयादशमी के दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. सिंदूर खेला, माँ दुर्गा को ससम्मान विदा करने का एक भावनात्मक रस्म है.
सिंदूर खेला की रस्में
दुर्गा पूजा के अंतिम दिन सिंदूर खेला एक प्राचीन रस्म है. इस दिन सुहागन महिलाएं पारंपरिक लाल और सफेद किनारे वाली साड़ी पहनती हैं. सर्वप्रथम वे मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं. उनके चरणों का सिंदूर अपनी मांग में लगाकर अखण्ड सौभाग्यवती होने की कामना करती हैं. इसके पश्चात वहां उपस्थित सभी महिलाएं एक दूसरे को मिठाई खिलाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देती हैं. इसके बाद अश्रुपुरित आंखों से मां दुर्गा की विदाई करती हैं. इसके बाद ही दुर्गा जी की प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है.













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