Durga Puja, Sindur Khela 2023: कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है सिंदूर खेला उत्सव? जानें इसका इतिहास एवं महोत्सव!
दुर्गा पूजा 2023 (Photo Credits: File Image)

Durga Puja, Sindur Khela 2023:  पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महापर्व का एक स्वस्थ एवं पारंपरिक रस्म है सिंदूर खेला. यूं तो देश भर में जिन-जिन पंडालों में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, उसी पंडाल में सिंदूर खेला की रस्म भी विधि-विधान से मनाई जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इस रस्म का एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है. सिंदूर खेला की रस्म माँ दुर्गा की नवमी की पूजा के अगले यानी दशमी (विजयदशमी) के सुहागन स्त्रियों द्वारा दिन किया जाता है. इस रस्म के पश्चात अश्रुपूरित आंखों से माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है. इस वर्ष सिंदूर खेला का यह रस्म 24 अक्टूबर 2023, मंगलवार के दिन किया जाएगा. यह भी पढ़े: Durga Puja 2023 Greetings: नवरात्रि के छठे दिन दुर्गा पूजा की इन हिंदी WhatsApp Messages, GIF Images, Facebook Wishes के जरिए दें बधाई

सिंदूर खेला का इतिहास

  दुर्गा पूजा के अंतिम अनुष्ठान के रूप में सिंदूर खेला का रस्म सदियों पुरानी परंपरा है. बताया जाता है कि यह रस्म लगभग साढ़े चार सौ साल पूर्व बंगाल की भारतीय बंगाली महिलाओं द्वारा शुरू किया गया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष माँ दुर्गा नवरात्रि काल में अपने मायके आती हैं, और दस दिन रुककर पुनः अपने ससुराल (कैलाश पर्वत) के लिए प्रस्थान करती हैं. मायके में प्रवास काल में विभिन्न स्थानों पर स्थानीय परंपराओं के अनुसार दुर्गा पूजा मनाया जाता है. सुहागन महिलाएं मां दुर्गा की विदाई से पूर्व उन्हें सिंदूर लगाकर और मिठाई खिलाकर उनसे सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. मां दुर्गा की हंसी-खुशी विदाई के लिए महिलाएं धुनुची नृत्य भी करती हैं.

क्या है सिंदूर खेला का रस्म

   नवरात्रि (चैत्र और आश्विन मास) की नवमी को प्रातःकाल दुर्गा पूजा के पश्चात और प्रतिमा विसर्जन से पूर्व सिंदूर खेला का रस्म निभाया जाता है. इस रस्म में विवाहित महिलाएं हाथों में पान के पत्ते लेकर उन्हें मां दुर्गा के गालों से स्पर्श करती हैं. इसके बाद पान के पत्तों में सिंदूर रखकर मां दुर्गा की मांग भरी जाती है. माता के मस्तक पर भी सिंदूर लगाया जाता है. अंत में माँ के पैरों में सिंदूर लगाया जाता है. फिर पैरों पर लगे सिंदूर को ही एक दूसरे की मांग में भरती हैं, इसके पश्चात ये महिलाएं अन्य सुहागन महिलाओं के गालों पर सिंदूर लगाती हैं. पश्चिम बंगाल के कोलकातासिलीगुड़ी व जलपाईगुड़ी के साथ देश भर में जगह-जगह पंडालों में सिंदूर खेला का यह रस्म पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. मान्‍यता है कि इस रस्म को निभाने से महिलाएं सौभाग्यवती रहती हैं. उनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि सिंदूर के इस खेला में जिस महिला के चेहरे पर जितना ज्यादा सिंदूर लगा होता हैउसका दांपत्य जीवन उतना ही लंबा होता है. सिंदूर खेला के बाद महिलाएं अश्रुपुरित भाव से माँ दुर्गा की विदाई करते हुए पुनः मायके आने की प्रार्थना करती हैं.