चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था. आज सारा देश इस आजादी के दीवाने की 115वीं वर्षगांठ मना रहा है. आज हम बात करेंगे आजादी के दीवाने आजाद के जीवन के कुछ रोचक एवं प्रेरक प्रसंगों की, जो हमें देशभक्ति की भावना से उद्वेलित करते हैं.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा गांव (अब चंद्र शेखर आजाद नगर) में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के परिवार में हुआ था. उस समय उनका नाम चंद्र शेखर तिवारी था, बाद में तिवारी उपनाम हटाकर आजाद कर दिया. उनका बचपन भील बच्चों के साथ निशानेबाजी करते हुए बीता.
बनना था संस्कृत विद्वान बन गये क्रांतिकारी!
चंद्रशेखर तिवारी जब स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उनकी माँ चाहती थीं कि चंद्रशेखर भी अपने पिता की तरह संस्कृत का विद्वान बने, इसी सोच के साथ उन्होंने अपने पति से कहा था कि वे चंद्रशेखर को संस्कृत पढ़ने और विद्वान बनने के लिए काशी (वाराणसी) स्थित काशी विद्यापीठ में प्रवेश दिलायेंगे, लेकिन स्कूली शिक्षा के दरम्यान (1921) ही चंद्रशेखर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे. यह भी पढ़ें : Guru Purnima 2021: जानें गुरू पूर्णिमा का महात्म्य! मुहूर्त एवं किन दो विशेष योगों में मनाया जायेगा यह पर्व?
भील बच्चों के साथ सीखी निशानेबाजी!
जानकारों के अनुसार चंद्रशेखर आजाद की निशानेबाजी अचूक होती थी. वस्तुतः उन्होंने निशानेबाजी की ट्रेनिंग भील बच्चों के साथ खेल-खेल में आजाद ने धनुष बाण खूब चलाए थे. जलियांवाला बाग नरसंहार के वक्त चंद्रशेखर आजाद बनारस (वाराणसी) में पढ़ाई कर रहे थे. 13 अप्रैल, 1919 को हुई जलियांवाला बाग की घटना से आजाद बहुत द्रवित थे. इसीलिए जब गांधीजी ने सन 1921 में असहयोग आंदोलन का फरमान जारी किया तो अन्य छात्रों की तरह आजाद भी सड़कों पर उतर आए.
जब जज ने खोया आपा!
असहयोग आंदोलन में शामिल होने एवं सरकार विरोधी नारों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. महज 25 साल की आयु में पहली बार जब अदालत में उऩ्हें पेश किया गया और जज द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और पता ‘जेल’ बताया, तो जज ने क्रोधित होकर उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई.
क्यों नाराज थे आजाद गांधीजी से!
1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण चंद्रशेखर आजाद एवं दूसरे क्रांतिकारी क्रोधित हो उठे. जाहिर है उन्हें गांधी जी का यह निर्णय पसंद नहीं आया था. वे रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा गठित संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ ((HRA) से जुड़ने के बाद खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में लिप्त हो गये.
ऐसे लिया लाला लाजपत राय की हत्या का बदला!
लाला लाजपत राय के हत्यारे जे.पी. सांडर्स से बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने 17 दिसंबर, 1928 को शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर के इर्द-गिर्द छिप गये, ज्यों ही साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल से बाहर निकला, योजनाबद्ध तरीके से राजगुरु ने सांडर्स के माथे पर गोली मारी, सांडर्स गिरा तो भगत सिंह उसके करीब आकर पूरी पिस्टल उस पर खाली कर वहां से भाग निकले, जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने सांडर्स पर हमला कर उसे वहीं ढेर कर दिया.
खुद को गोली मारकर ‘आजाद’ मरने की कसम पूरी की!
साण्डर्स को मारने के बाद लाहौर की हर दीवारों पर पम्पलेट चिपकाकर संदेश दिया कि लालाजी (लाजपतराय) की मृत्यु का बदला पूरा हुआ. अंग्रेज पुलिस ने तत्क्षण मुस्तैदी दिखाते हुए भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को अरेस्ट कर लिया. अदालत ने तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई. कहते है कि फांसी रुकवाने हेतु आजाद ने नेहरूजी-गांधीजी से अपील की, लेकिन उन्हें टका सा जवाब मिला. 23 फरवरी, 1931 को प्रयागराज (इलाहाबाद) में नेहरूजी के आवास, आनंद भवन के करीब अल्फ्रेड पार्क से गुजर रहे थे, तभी किसी की मुखबिरी से पुलिस ने उन्हें घेर लिया. आजाद एक पेड़ की आड़ छिप गये. उस समय आजाद की पिस्टल में केवल छह गोलियां थी. उन्होंने पांच गोलियों से 5 सिपाहियों को ढेर किया. वे पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए छठी गोली अपनी कनपटी पर मारकर शहीद हो गये, इस तरह उन्होंने आजाद मरने की कसम भी पूरी कर ली.