Chanakya Niti: संतान के कौन से गुण कुल की मान-मर्यादा को बढ़ाती है? जानें क्या कहती है आचार्य चाणक्य की नीति?
Chanakya Neeti (Photo Credit: Wikimedia Commons)

मानवीय स्वभाव एवं कल्याण के आधार पर आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में ऐसी कई नीतियों की रचना की, जो जीवन को सफल बनाने में अमोघ शस्त्र जैसा प्रभावशाली साबित हो सकता है. चाणक्य ने समाज सुधारक, सलाहकार, दार्शनिक एवं गुरू की उपाधि हासिल किया है. अनुमानतः 376-283 ईसा पूर्व चाणक्य ने जिन नीतियों की रचना की थी, आज हजारों साल बाद भी सामयिक लगते हैं, जिसकी वजह से इनका महत्व बढ़ जाता ही. यहां हम आचार्य चाणक्य के श्लोक के माध्यम से उनकी उन नीतियों पर चर्चा करेंगे, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि संतान की परवरिश किस तरह की जाए कि वह अपने परिवार का नाम रौशन करे, ना कि उनके विनाश का कारण बनें.

एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना .

दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा ॥

अर्थात

किसी वन मे एक सूखा वृक्ष भी आग पकड्ने और फैलने पर संपूर्ण वन को जला कर नष्ट कर देता है, उसी प्रकार जैसे कि एक दुष्ट पुत्र अपने संपूर्ण परिवार और कुल की प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है.

चाणक्य के अनुसार सूखे वृक्ष में आग लगने के कारण पूरे जंगल का विनाश हो सकता है. ठीक वैसे ही जैसे एक कपूत की करनी से पूरे कुल का नाश हो सकता है. जैसे अगर संतान दुष्ट और आज्ञा न मानने वाली हो तो वह पूरे घर की इज्जत और मान प्रतिष्ठा को नष्ट कर सकती है. इसे एक अन्य उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, ठीक एक कुपुत्र भी परिवार के आत्म सम्मान को डुबा सकता है. यह भी पढ़ें : New Year 2024 In Advance Messages: हैप्पी न्यू ईयर इन एडवांस! शेयर करें ये हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और Images

संतान को अच्छे संस्कार देना जरूरी है

आचार्य चाणक्य के अनुसार संतान की परवरिश के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि वह बुरे संगत में ना पड़ने पाए, और अगर बुरी संगत में फंस गया है तो उसे समय रहते सुधारने की कोशिश करनी चाहिए. माता-पिता का यही दायित्व होता है. एक आज्ञाकारी पुत्र अथवा पुत्री ही कुल के मान-मर्यादा को आगे बढ़ाती है.

किसी ने सही कहावत लिखा है

‘पूत कपूत तो क्यो धन संचय, पूत सपूत तो क्यो धन संचय’

इसका अर्थ है, -यदि पुत्र कपूत (दुष्ट प्रवृत्ति का) है तो उसके लिए धन संचय करने की जरूरत नहीं, क्योंकि वह उसे गलत कार्यों में बर्बाद कर देगा, और अगर पुत्र सपूत (संस्कारी और शिक्षित) है, तब भी धन क्यों जमा किया जाये, वह अपनी योग्यता से ही धन अर्जित कर लेगा.