आचार्य चाणक्य श्रेष्ठ विद्वान, महान रणनीतिकार और कुशल अर्थशास्त्री ही नहीं, बल्कि सुयोग्य शिक्षक भी थे. गौरतलब है कि आचार्य ने विश्वविख्यात तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों का मार्गदर्शन भी किया था. उन्होंने अपने जीवन में विषम से विषम परिस्थितियों का सामना किया, परंतु कभी हार नहीं मानी. अंततः अपने लक्ष्य को हासिल किया. अगर कोई व्यक्ति उनकी बातों का जीवन में अनुसरण करता है, तो वह सफल मुकाम पर पहुंच ही जाता है. आचार्य ने अपनी नीतियों से हमेशा समाज का मार्गदर्शन किया है. आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से बताना चाह रहे हैं कि किसी भी इंसान को अपने जीवन में अत्यधिक सीधा-सरल होना घातक भी हो सकता है. आइये जानें क्या है वह श्लोक.. यह भी पढ़ें : Govardhan Puja 2024 Wishes: गोवर्धन पूजा पर भेजें ये प्यारे हिंदी WhatsApp Stickers, Photo Messages और GIF Images
नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥‘
अर्थात इंसान को अपना भाव-व्यवहार इतना सरल या सीधा नहीं रखना चाहिए, क्योंकि जंगल सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं, और टेढ़े-मेढ़े पेड़ छोड़ दिये जाते हैं.
आचार्य चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से कहना चाहते हैं. कि किसी भी व्यक्ति को अत्यंत अत्यंत सरल और सहज स्वभाव का नहीं होना चाहिए. ऐसे लोगों को दुनिया सबसे कमजोर और मूर्ख व्यक्ति समझती है, और हर कोई उसे प्रताड़ित और परेशान करने की कोशिश करता है, क्योंकि सीधा-सादा व्यक्ति हर व्यक्ति के लिए सुगम होता है, जबकि टेढ़े-मेढ़े व्यक्ति से हर कोई बचने या दूर रहने की कोशिश करता है, इसलिए इस श्लोक में चाणक्य ने स्पष्ट कर दिया है, कि अगर समाज में जीना है तो परिस्थितियों के अनुसार चलकर ही अपने स्वाभिमान को बचाया जा सकता है, वरना वह अपनी ही बर्बादी का कारण बनता है.